शनिवार 14 दिसंबर 2024 - 18:47
उत्तर प्रदेश: मदरसों के 37,000 छात्रों का भविष्य अनिश्चित, सरकार से समाधान की उम्मीद

हौज़ा / सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मदरसा बोर्ड की "कामिल और फाजिल" डिग्रियों को यूजीसी के एक्ट से असंगत करार दिया था। उन्होंने सुझाव दिया कि जिन मदरसों के पास यूजीसी के मानकों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, उन्हें अस्थायी संबद्धता दी जाए और पांच से सात साल का समय दिया जाए ताकि वे मानकों को पूरा कर सकें।

हौज़ा न्यूज एजेंसी के अनुसार,  लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लगभग 37,000 छात्रों का भविष्य अभी भी अनिश्चित है, जो अनुमोदित और सहायता प्राप्त मदरसों में "कामिल और फाजिल" स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन छात्रों के भविष्य को लेकर राज्य सरकार और मदरसा संगठनों के बीच लगातार चर्चा जारी है, लेकिन अब तक इस मुद्दे का कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है।

उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने हाल ही में इस मुद्दे पर बैठक की, लेकिन इस बैठक में कोई निर्णायक हल नहीं निकल पाया। मदरसा संगठनों ने सुझाव दिया है कि इन मदरसों को लखनऊ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय से संबद्ध किया जाए, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) के मानकों को पूरा करने में कई समस्याएं आ रही हैं।

इन समस्याओं में प्रमुख है शिक्षकों की योग्यताएं, जो यूजीसी के मानकों के अनुरूप नहीं हैं। अधिकांश शिक्षक "कामिल और फाजिल" डिग्रीधारी हैं, जबकि यूजीसी के अनुसार, डिग्रीधारी शिक्षकों को नेट (नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) या पीएचडी पास होना चाहिए। इसके अलावा, मदरसों में बुनियादी ढांचे की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।

ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मौलाना तारेक शमसी ने 'इंकलाब' से बातचीत में बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मदरसा बोर्ड की "कामिल और फाजिल" डिग्रियों को यूजीसी के एक्ट से असंगत करार दिया था। उन्होंने सुझाव दिया कि जिन मदरसों के पास यूजीसी के मानकों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, उन्हें अस्थायी संबद्धता दी जाए और पांच से सात साल का समय दिया जाए ताकि वे मानकों को पूरा कर सकें।

इस मामले पर अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है, लेकिन यह देखा जाएगा कि राज्य सरकार और संबंधित संस्थाएं इस मुद्दे का समाधान कब तक निकाल पाती हैं।

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