हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अहले सुन्नत इमामे जुमआ शहरे सनंदज और मजलिसे ख़बरगान-ए-रहबरी के सदस्य मौलवी फाएक़ रुसतमी ने कहा कि ईदुल-अज़हा न सिर्फ़ हज़रत इब्राहीम अ.स. की क़ुर्बानी और उनके त्याग की याद का दिन है, बल्कि यह दिन नफ़्स-ए-अम्मारा (मन की बुरी इच्छाओं) की क़ुर्बानी और अल्लाह की आज्ञापालन का व्यावहारिक सबक भी है।
आज सुबह सनंदज शहर की जामा मस्जिद में अहले सुन्नत वल जमाअत द्वारा ईदुल-अज़हा की नमाज़ जमाअत के साथ अदा की गई, जिसमें शहर के उलमा, आम लोग और विभिन्न वर्गों के लोगों ने भाग लिया। नमाज़ के ख़ुत्बे में मौलवी फाएक़ रुसतमी ने इस्लाम के बुनियादी उसूलों को इंसानी गरिमा और सच्चाई पर आधारित बताया और कहा कि इस्लाम इंसानियत को बराबरी इंसाफ़ और एकता का पैग़ाम देता है।
उन्होंने हज के अरकान और मक्का मुअज़्ज़मा में जारी महान इज्तिमा की ओर इशारा करते हुए कहा,हज, रंग, नस्ल और क़ौमियत से ऊपर उठकर पूरी उम्मते मुस्लिमा की एकता और यकजहती की शानदार निशानी है। यह मुक़द्दस इज्तिमा हमें याद दिलाता है कि हमारा ख़ुदा एक है और हम सबकी वापसी उसी की तरफ़ है।
मौलवी रुसतमी ने रसूल-ए-अकरम स.अ.व. के उस पैग़ाम को दोहराया कि कोई भी इंसान किसी दूसरे इंसान पर कोई बड़ाई नहीं रखता सब बराबर हैं, और यही उसूल इंसानी समाज में इंसाफ़, बराबरी और आपसी इज़्ज़त का ज़ामिन है।
अपने ख़ुत्बे में उन्होंने फ़िलिस्तीन और ग़ज़्ज़ा के मज़लूम लोगों पर जारी इस्राईली ज़ुल्म की सख़्त निंदा की और कहा,आज हम अपनी आंखों से देख रहे हैं कि मज़लूमों पर ज़ुल्म हो रहा है, और यह वक़्त है कि इंसानी ज़मीर जागे और मज़लूमों के साथ खड़ा हो।
उन्होंने आगे कहा,ख़ुदावंद मुतआल हर इंसान को इस दुनिया में आज़माता है, और हमें चाहिए कि इन इम्तिहानों में सब्र, ताअत और तक़वा (धार्मिकता) के साथ कामयाबी हासिल करें।
हज़रत इब्राहीम अ.स. की क़ुर्बानी के वाक़े का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा,हज़रत इब्राहीम अ.स. ने अल्लाह के हुक्म के आगे पूरी तरह सर झुकाते हुए अपने बेटे हज़रत इस्माईल अ.स. को क़ुर्बान करने की तैयारी की और यही उनका बुलंदी और कामयाबी का सबब बना। अल्लाह ने उन पर रहमत नाज़िल की।
ख़ुत्बे के आख़िर में मौलवी रुस्तमी ने कहा,ईदुल-अज़हा, हज़रत इब्राहीम अ.स. के त्याग और क़ुर्बानी की याद का दिन है। साथ ही यह हर मुसलमान के लिए एक मौका है कि वह अपनी नफ़्सानी ख्वाहिशों, खुदपरस्ती और नफ़्स-ए-अम्मारा को क़ुर्बान करके अल्लाह की बंदगी की सच्ची राह पर चले।
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