गुरुवार 9 जनवरी 2025 - 07:01
अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के माध्यम से मानवता प्रगति कर सकती है

हौज़ा / दिल्ली के इमाम-ए-जुमा, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद मोहम्मद अली मोहसिन तक़वी ने क़ुम मुकद्दसा में हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के मुख्य कार्यालय का दौरा किया और हौज़ा न्यूज़ के संवाददाता के साथ समसामयिक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के इमाम-ए-जुमा, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद मोहम्मद अली मोहसिन तक़वी ने क़ुम मुकद्दसा में हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के मुख्य कार्यालय का दौरा किया और हौज़ा न्यूज़ के संवाददाता के साथ समसामयिक मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। इस मुलाकात में उन्होंने विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

अहले-बैत (अ) की शिक्षाएं आज के समय में इंसानियत को किस प्रकार सही और सच्चा मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।

इन शिक्षाओं से मानवता को वास्तविक और गहरा सबक मिलता है और इंसानियत का विकास होता है। इन्हीं शिक्षाओं के माध्यम से इंसान अपने सही और असली गुणों को पहचान सकता है और अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से प्राप्त कर सकता है। अगर समाज इन शिक्षाओं का अनुसरण करता है, तो दुनिया शांति का गहवारा बन सकती है। यही नहीं, दुनिया अपने लक्ष्यों को बिना किसी बाधा या रुकावट के हासिल कर सकती है। इस संदर्भ में केवल और केवल अहले-बैत (अ) का दिखाया हुआ मार्ग ही ऐसा है, जो इंसान को सही दिशा और मार्गदर्शन दे सकता है।

फ़ोटोः  दिल्ली के इमाम जुमा का हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के मुख्य कार्यालय का दौरा

नौजवानों को धर्म की ओर लाने के लिए प्रभावी और व्यावहारिक तरीके क्या हो सकते हैं।

इनमें से एक तरीका मिंबर है, जो हमारे समाज में एक पारंपरिक माध्यम के रूप में लंबे समय से चल रहा है। इसी तरह मजलिस-ए-अज़ा भी इस दिशा में काफी सफल रही हैं, बशर्ते इनमें कुछ जरूरी शर्तों का ध्यान रखा जाए। इसके अलावा, पत्रिकाएं और अखबार भी एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इन माध्यमों से भी इस दिशा में काफी काम हो रहा है।आज के दौर में इंटरनेट एक बहुत मजबूत माध्यम बन गया है। खासकर ईरानी वेबसाइट्स और संसाधनों के साथ संपर्क करने की जो कोशिशें नौजवान कर रहे हैं, उनके बहुत अच्छे नतीजे सामने आ रहे हैं। ईरान ने हमें यह समझाने में मदद की है कि इस वक्त दुनिया में क्या चल रहा है। इस्लाम के दुश्मनों द्वारा जो झूठ और प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है, उसका सही और सटीक जवाब देने के लिए ईरान की जानकारी और उनके प्रयासों को देखे बिना यह संभव नहीं है। इन सभी माध्यमों का समझदारी से इस्तेमाल करके नौजवानों को धर्म की ओर आकर्षित किया जा सकता है। 

सीरिया की स्थिति को समझना वास्तव में युवाओं के लिए काफी मुश्किल हो रहा था। यह अफवाहें फैलाई जा रही थीं कि सीरिया में शिया-सुन्नी युद्ध चल रहा है और बशर अल-असद सुन्नी समुदाय के खिलाफ अत्याचार कर रहे हैं। इस तरह की बातें यूट्यूब पर काफी वायरल हो रही थीं। लेकिन ईरान से जुड़ी वेबसाइट्स और इसी तरह के संस्थानों की वजह से असली स्थिति युवाओं के सामने साफ हुई। यह एक बहुत ही अच्छा कदम है। मैं मानता हूं कि इस मामले में इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्थान भी कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। जरूरत के हिसाब से लोगों को सही जानकारी और सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।

अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के माध्यम से मानवता प्रगति कर सकती है

आज के दौर में इस्लामी समाज को किन चुनौतियों का सामना है और उन चुनौतियो का समाधान क्या है तथा उलेमा -ए इकराम इस संबंध मे क्या भूमीका निभा सकते है।

आज के दौर में इस्लामी समाज को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें भारत की मौजूदा स्थिति को समझना बेहद जरूरी है। आज इस्लाम के पैग़म्बर मोहम्मद (स) और कुरआन को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, वह बहुत गंभीर समस्या है। अब तो भारत में स्थिति इतनी खराब हो गई है कि बहुत ही गलत, अशोभनीय और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह भाषा जानबूझकर मुसलमानों के बीच फैलाई जा रही है, ताकि उन्हें उकसाया जा सके और वे भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दें। इसका मकसद मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच नफरत बढ़ाना है, ताकि इसका फायदा कुछ राजनीतिक ताकतें उठा सकें।

इस स्थिति में हमें उनके आरोपों और सवालों का सही, तार्किक और समझदारी भरा जवाब देना होगा। यही इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है। हमें नफरत बढ़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जैसा कि कुछ राजनीतिक ताकतें कर रही हैं। वे समाज में नफरत फैलाकर अपने उद्देश्य पूरे करना चाहती हैं। लेकिन अब मुसलमानों में यह समझ आ रही है कि भावनात्मक और गुस्से भरी भाषा से समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। इससे तो स्थिति और भी जटिल हो जाएगी। भारत में हमें प्रेम की भाषा का इस्तेमाल करना होगा और अपने विचारों को तर्क और प्रमाण के साथ सामने रखना होगा, ताकि हमारी बात सही तरीके से दूसरों तक पहुंच सके। अब तक यही देखा गया है कि मुसलमानों, कुरआन और पैग़म्बर (स) के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाई जा रही हैं और बिना किसी आधार के बातें की जा रही हैं, जिससे मुसलमानों को परेशान किया जा सके। ऐसे में समझदारी और धैर्य से काम लेना ही सबसे सही रास्ता है।

अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के माध्यम से मानवता प्रगति कर सकती है

भारत विभिन्न संस्कृतियों का गहवारा है, जहां अलग-अलग धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। हर धर्म की अपनी अलग सोच और विचारधारा है। ऐसे में उनके बीच एकता और सामंजस्य कैसे स्थापित किया जाए, और इसमें उलेमा-ए इकराम की क्या जिम्मेदारी है।

भारत को धर्मों का संग्रहालय कहा जाता है। यह हमेशा से धर्मों का गहवारा रहा है, जहां कई धर्म सदियों से मौजूद हैं। लेकिन कभी भी धर्मों के बीच इतने गंभीर विवाद या झगड़े नहीं हुए थे। आज जो स्थिति पैदा की जा रही है, वह कुछ राजनीतिक ताकतों की वजह से है। ये ताकतें धर्म का नाम लेकर अपने राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए योजनाएं बना रही हैं। उदाहरण के तौर पर, हिंदू और मुसलमानों के बीच जो दंगे हो रहे हैं, वे आज की साजिशों का नतीजा हैं। यहां तक कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी इतने बड़े पैमाने पर दंगे नहीं हुए थे।

इस मौजूदा स्थिति में धर्मगुरुओं की जिम्मेदारी बहुत बड़ी हो जाती है। आज के हालात ने हमें सिखा दिया है कि हमें किस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए और कैसे आगे बढ़ना चाहिए। साथ ही, हमें अपने दुश्मनों का सामना किस तरीके से करना है। आज शिया और सुन्नी दोनों समुदायों में यह समझ पैदा हो चुकी है कि एकता और भाईचारे के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है। ऐसे में धर्मगुरुओं का यह कर्तव्य बनता है कि वे समाज को सही दिशा दिखाएं और एकता को मजबूत करें।

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