मंगलवार 28 जनवरी 2025 - 15:39
अहले सुन्नत की किताबो मे अम्बिया के भेजने का मक़सद

हौज़ा / सुन्नी प्रसिद्ध आलिम इब्न असाकिर लिखते हैं: एक दिन रसूल अल्लाह (स) ने अपने एक साथी से कहा: "ऐ अब्दुल्लाह! एक फरिश्ता मेरे पास आया और कहा: 'ऐ मुहम्मद! उन पैगंबरों से पूछो जो तुमसे पहले भेजे गए थे कि उन्हें क्यों भेजा गया?' हज़रत ने कहा: मैंने उन पैगंबरों से पूछा कि आप क्यों भेजे गए हैं? तो उन पैगंबरों ने जवाब दिया: 'हमारी पैगामबरी का उद्देश्य आपकी नबूवत और अली इब्न अबी तालिब की विलायत का पालन करना था।'"

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह लेख "अहले सुन्नत के स्रोतो मे अम्बिया की बेअसत" के बारे में है, जो यह बताता है कि पैगंबर इस्लाम (स) की बेअसत ब्रह्मांड की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इस घटना ने इंसान को शैतान की गुलामी से आज़ाद किया और उन्हें हिदायत के रौशन रास्ते पर चलने की दिशा दिखाई।

अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) के शब्दों में पैगंबरों की बेअसत के उद्देश्य को खूबसूरती से बयान किया गया है। वे कहते हैं:

"पैगंबर इसलिए भेजे गए थे ताकि वे इंसानियत की शुद्ध और असली प्रकृति को निखार सकें और उन नेमतों की याद दिला सकें जो अल्लाह ने इंसानियत को दी थीं, लेकिन लोग उन्हें भूल चुके थे। पैगंबरों ने समझ और दिमाग के खज़ाने को उजागर किया।"

वह आगे कहते हैं: "समय गुजरता गया, पीढ़ियाँ खत्म होती गईं और नई पीढ़ियाँ आईं, जब तक अल्लाह ने मोहम्मद (स) को भेजा, ताकि वादा पूरा हो सके और बेअसत का मुकम्मल उद्देश्य पूरा हो सके। अल्लाह ने पैगंबरों से यह भी वादा लिया था कि वे मोहम्मद (स) की नबूवत को मानेंगे।" (सय्यद रज़ी, नहजुल बलाग़ा, खुतबा 1, पृष्ठ 44)

दिलचस्प बात यह है कि मशहूर सुन्नी उलमा ने भी पैगंबर इस्लाम (स) से यह रिवायत करते हुए, पैगंबरों की भेजे जाने के उद्देश्य को हज़रत अली (अ) की विलायत के रूप में पेश किया है।

इब्न असाकिर ने इस बारे में लिखा है: एक दिन रसूल अल्लाह (स) ने अपने एक साथी से कहा: "ऐ अब्दुल्लाह! एक फरिश्ता मेरे पास आया और कहा: 'ऐ मुहम्मद! उन पैगंबरों से पूछो जो तुमसे पहले भेजे गए थे कि उन्हें क्यों भेजा गया?' हज़रत ने कहा: मैंने उन पैगंबरों से पूछा कि आप क्यों भेजे गए हैं? तो उन पैगंबरों ने जवाब दिया: 'हमारी पैगामबरी का उद्देश्य आपकी नबूवत और अली इब्न अबी तालिब की विलायत का पालन करना था।'" (इब्न असाकिर, तारीख़ मदीनत दमश्क, खंड 42, पृष्ठ 241, दार अल-फिकर, बेरुत - 1995)

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