मंगलवार 28 जनवरी 2025 - 09:01
बेअसते पैग़म्बर (अ) मानवीय मूल्यों के विकास का स्रोतः डॉ. शहवार हुसैन नक़वी

हौज़ा /शबे बेअसत और मेराजे पैगंबर (स) के अवसर पर, बेअसत की अहमियत का ज़िक्र करते हुए शोधकर्ता डॉ. शहवार हुसैन नक़वी ने कहा कि आज की तारीख़ इंसानियत के लिए बहुत खुशियों भरी तारीख़ है, क्योंकि आज ही के दिन अल्लाह तबारक व तआला ने हज़रत मुहम्मद (स) को रिसालत के लिए भेजा और इंसानी मूल्यों को एक नई ऊँचाई तक पहुँचाया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अमरौहा, भारत शबे बेअसत और मेराजे पैगंबर (स) के अवसर पर, बेअसत की अहमियत का ज़िक्र करते हुए शोधकर्ता डॉ. शहवार हुसैन नक़वी ने कहा कि आज की तारीख़ इंसानियत के लिए बहुत खुशियों भरी तारीख़ है, क्योंकि आज ही के दिन अल्लाह तबारक व तआला ने हज़रत मुहम्मद (स) को रिसालत के लिए भेजा और इंसानी मूल्यों को एक नई ऊँचाई तक पहुँचाया। जिस समय हज़रत मुहम्मद (स) इस ज़िम्मेदार पद पर आसीन हुए, वह समय जाहिलियत का था। पूरा समाज कुफ़्र और नास्तिकता के अंधेरे में डूबा हुआ था, ज़ुल्म और अत्याचार की आंधियाँ इंसानियत को हिला रही थीं, शर्म और लज्जा का कोई नाम नहीं था। हर तरफ़ बेहयाई और बेशर्मी का बोलबाला था, न बड़े आदमियों की इज्जत थी, न छोटे बच्चों से मोहब्बत थी, न पड़ोसियों के अधिकार का ख्याल था, न भाई-बहन के रिश्तों की अहमियत थी। इंसान इतना गिर चुका था कि हत्या, लूटमार, शराब पीना और जुआ खेलना उसके रोज़मर्रा के काम बन गए थे। इस बर्बर और अज्ञानता के माहौल में अल्लाह तबारक व तआला ने हज़रत मुहम्मद (स) को एक उम्मीद की किरण बना कर भेजा, और इस किरण ने पूरी दुनिया को ज्ञान, समझ, आत्मसमर्पण और इबादत से रोशन कर दिया। वह समाज जो जहन्नम बना हुआ था, हज़रत मुहम्मद (स) की हयात के बख़्तर से जन्नत जैसा बन गया।अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने अपने खुतबे में इस दौर का पूरी तरह से चित्रण किया है।

उन्होंने आगे कहा कि हमें चाहिए कि हम बेअसत की अहमियत को समझें और इस्लाम के प्रचार के लिए हज़रत मुहम्मद (स) ने जो कष्ट सहे, उन्हें याद रखें।

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