रविवार 9 फ़रवरी 2025 - 16:46
ज़ाकिर की बात को क़ुरआन और शायर के कलाम को हदीस का दर्जा न दिया जाए

हौज़ा / इमाम जुमआ व जमात बाबुल इल्म ओखला, दिल्ली ने जुमा ख़ुत्बे में कहा कि विलादत की तारीख़ एक मुक़द्दस मौक़ा है और इसका हक़ है कि इस पर महाफ़िल और जश्न का एहतेमाम किया जाए लेकिन इसका तक़द्दुस बरक़रार रखना भी ज़रूरी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , ओखला दिल्ली मौलाना तस्दीक़ हुसैन इमाम-जुमआ व जमात बाबुल इल्म, ओखला ने जुमा के ख़ुत्बे में कहा कि विलादत की तारीख़ एक मुक़द्दस मौक़ा है और इसका हक़ है कि इस पर महाफ़िल और जश्न का एहतेमाम किया जाए लेकिन इसका तक़द्दुस बरक़रार रखना भी ज़रूरी है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ज़ाकिर की बात को क़ुरआन और शायर के कलाम को हदीस का दर्जा न दिया जाए, बल्कि हर बात को तहक़ीक़ और बसीरत के साथ परखना चाहिए। मजलिसों और महाफ़िल का अंदाज़ नबवी और अलवी होना चाहिए न कि सिर्फ़ जज़्बात पर आधारित हो।

मौलाना तस्दीक़ हुसैन ने आगे कहा कि हमें ग़ौर करने की ज़रूरत है कि कहीं हम दीन के असली पैग़ाम से दूर तो नहीं हो रहे है कुछ महाफ़िलों में ऐसे कलाम भी पेश किए जाते हैं, जिनका शीयत की तालीमात से कोई ताल्लुक़ नहीं होता इस पर संजीदगी से ग़ौर करने की ज़रूरत है।

इमाम जुमआ बाबुल इल्म ओखला ने कहा कि ये मुक़द्दस इजलास हैं, जिनमें ग़ैर-ज़रूरी जोश और जज़्बात के बजाय हक़ीक़त और मआरिफ़त को उजागर करना चाहिए।

अंत में मौलाना तस्दीक़ हुसैन ने कहा कि हमें चाहिए कि हम महाफ़िल और मजलिसों में असल तालीमात-ए-मासूमीन पर तवज्जो दें और उनके तक़द्दुस को बरक़रार रखें।

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