हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आयतुल्लाह मुहम्मद जवाद बलाग़ी क़ुरआन से संबंधित एक शंका का उत्तर देने के लिए तीन साल तक विस्थापित यहूदी के वेश में रहे। एक ऐसा संदेह जिसका उत्तर देने में मिस्र का अल-अजहर भी असहाय था। इस कहानी के वर्णन को हम अपने प्रिय शिक्षित पाठको के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है।
यहूदियों ने क़ुरआन में "सामरी" शब्द पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सामर्रा का निर्माण पैगंबर मूसा के 200 वर्ष बाद हुआ था।
क़ुरआन इस "सामर्रा" शहर को कैसे संदर्भित किया?
यह शंका और मुद्दा मिस्र के अल-अजहर तक पहुंचा।
उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था, वह नजफ़ आये और कोई जवाब नहीं दिया गया।
आयतुल्लाह मुहम्मद जवाद बलाग़ी एक यहूदी की वेशभूशा धारण करके सामर्रा के यहूदियों के बीच गये।
कई परीक्षणों के बाद, उन्होने यहूदियों का विश्वास हासिल कर लिया।
तीन वर्षों के भीतर ही उन्होंने उनकी भाषा और साहित्य में पूरी तरह से महारत हासिल कर ली। और तीन साल बाद नजफ़ लौट आये।
नजफ़ में उन्होंने इस संदेह पर एक ग्रंथ लिखा, जिसमें उन्होंने साबित किया कि सामरी, बनी शिमरोन जनजाति से संबंधित था, जो बनी इस्राईल की बारह जनजातियों में से एक थी, और उन्होंने अपना शोध मिस्र में अल-अजहर को भेजा।
स्रोत: मा समअतो मिम्मन रअयतो, भाग 1, पेज 241-242
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