बुधवार 1 जनवरी 2025 - 14:18
इमाम ए ज़माना (अ) का नमक खाने वाले को केवल इमाम का ही खिदमत गुज़ार होना चाहिए

हौज़ा / आलिम बा अमल शेख़ अब्बास कुम की की इमाम ए ज़माना अ.ज.से वफादारी को उनके दो सुनहरे जुमलों में समेटा जा सकता है वह न केवल खुद को हमेशा इमाम-ए-ज़माना अ.ज. का नमकखोर मानते थे बल्कि एक दिन भी इमाम की सेवा से गाफ़िल रहना कबूल नहीं करते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,आलिम बा अमल शेख़ अब्बास कुम की
की इमाम ए ज़माना अ.ज.से वफादारी को उनके दो सुनहरे जुमलों में समेटा जा सकता है वह न केवल खुद को हमेशा इमाम-ए-ज़माना अ.ज. का नमकखोर मानते थे बल्कि एक दिन भी इमाम की सेवा से गाफ़िल रहना कबूल नहीं करते थे।

शेख अब्बास क़ुमी की इमाम-ए-ज़माना अ.ज. से वफादारी उनके दो सुनहरे वाक्यों में झलकती है। वह हमेशा खुद को इमाम-ए-ज़माना अ.ज. का नमकखोर मानते थे और कभी भी उनकी सेवा से लापरवाह नहीं होते थे।

मरहूम आयतुल्लाह मर्वारीद ने किताब मफातिह अलजनान के लेखक हाजी शेख अब्बास क़ुम्मी का एक दिलचस्प वाकया बयान किया है, जो उनकी इमाम-ए-ज़माना अ.ज. की राह में सेवा के संकल्प को दर्शाता है।

मशहद के एक व्यापारी ने हाजी शेख अब्बास क़ुमी को अपने बाग में दोपहर या रात के खाने के लिए आमंत्रित किया शेख अब्बास क़ुम्मी बाग में दाखिल होने के बाद हमेशा की तरह लिखने पढ़ने में व्यस्त हो गए।

मेज़बान ने कहा,आप आज यहां तफरीह के लिए आए हैं काम छोड़ दीजिए।

शेख अब्बास ने जवाब दिया,मैं इमाम-ए-ज़माना अ.ज. का नमकखोर हूं यह उचित नहीं कि उनके लिए काम न करूं।

मेज़बान ने कहा,आप आज मेरे नमकखोर हैं।

शेख अब्बास ने कलम रख दिया लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें पछतावा हुआ और उन्होंने दोबारा लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने फरमाया,यह नाइंसाफ़ी होगी कि मैं उम्रभर इमाम-ए-ज़माना अ.ज. का नमक खाता रहूं लेकिन जिस दिन उनका नमक न खाऊं उस दिन उनके लिए काम भी न करूं।

स्रोत: अल-ऐन अल-हुल्वा, पृष्ठ 137

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