गुरुवार 24 अप्रैल 2025 - 12:05
इमाम नियुक्त करने का अधिकार केवल अल्लाह को है

हौज़ा/इस्लामी मान्यता के अनुसार, ब्रह्मांड की संप्रभुता केवल अल्लाह तआला के लिए आरक्षित है और सभी प्राणी उसकी आज्ञा मानने के लिए बाध्य हैं। अतः यह स्पष्ट है कि अल्लाह तआला को यह अधिकार है कि वह जिसे चाहे अपनी ओर से मानवजाति पर शासक और इमाम नियुक्त कर सकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी| इस्लामी मान्यता के अनुसार, ब्रह्मांड की संप्रभुता केवल अल्लाह के लिए आरक्षित है और सभी प्राणी उसकी आज्ञा मानने के लिए बाध्य हैं। अतः यह स्पष्ट है कि अल्लाह तआला को यह अधिकार है कि वह जिसे चाहे अपनी ओर से मानवजाति पर शासक और इमाम नियुक्त कर दे, बशर्ते कि वह उसके सम्मान के योग्य हो और उसमें लाभ हो। जिस प्रकार पैगम्बर को अल्लाह तआला द्वारा चुना जाता है, उसी प्रकार इमाम को भी अल्लाह के आदेश से ही चुना जाता है तथा लोगों पर उसकी विलायत स्थापित होती है।

शिया मान्यता के अनुसार, इमाम और पैगम्बर का उत्तराधिकारी केवल अल्लाह के आदेश और चयन से होता है, तथा इस्लाम के पैगम्बर (स) अल्लाह के आदेश से ही अपने बाद इमाम की पहचान करते हैं। किसी भी व्यक्ति या समूह को इस मुद्दे में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

स्थापित इमाम की आवश्यकता के लिए तर्क

अ) إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ऐनिल हुक्मो इल्ला लिल्लाह पवित्र कुरान में कहा गया है कि ब्रह्मांड पर संपूर्ण संप्रभुता केवल अल्लाह की है:

“यह आदेश केवल अल्लाह के लिए है।” (सूर ए यूसुफ: 40)

इस आधार पर, परमेश्वर जिसे चाहता है उसे शासक बनाता है। इसलिए, जिस प्रकार पैगम्बरों की नियुक्ति अल्लाह की पसंद से होती है, उसी प्रकार इमामों की नियुक्ति भी अल्लाह के आदेश से होती है।

ख) एक इमाम के लिए इस्मत, ज्ञान और अन्य उच्च गुण आवश्यक हैं। और किसी मनुष्य के लिए ऐसे व्यक्ति को उसकी बुद्धि या राय से पहचानना संभव नहीं है। इन विशेषताओं की पहचान केवल अल्लाह के लिए संभव है, जो बाह्य और आंतरिक का ज्ञाता है।

कुरानिक तर्क

अल्लाह तआला ने कई पैगम्बरों के बारे में कहा है कि उसने स्वयं उन्हें इमाम या खलीफ़ा बनाया है:

पैग़म्बर इब्राहीम (अ) के बारे में:  إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامًا इन्नी जाऐलोका लिन्नासे इमामा

“मैं तुम्हें लोगों के लिए इमाम बनाने जा रहा हूँ।” (सूर ए बक़रा: 124)

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के बारे में: إِنِّي جَاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً इन्नी जाएलुन फ़िल अर्ज़े खलीफ़ा

“मैं ज़मीन पर अपने लिए एक खलीफा बनाने जा रहा हूँ।” (सूर ए बक़रा: 30)

हज़रत दाऊद (अलैहिस्सलाम) से: يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُم بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ या दाऊदो इन्ना जअलनाका खलीफ़तन फ़िल अर्ज़े फ़अहकुम बैनन नासे बिल हक़्क़े

"ऐ दाऊद! हमने तुम्हें धरती पर अपना नायब बनाया है। अतः तुम लोगों के बीच सत्य के साथ निर्णय करो।" (सूर ए साद 26)

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (उन पर शांति हो) के लिए:  يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا या अय्योहन नबीयो इन्ना अरसानाका शाहेदन व मुबश्शेरन व नज़ीरा

"ऐ पैगम्बर! हमने आपको साक्षी, शुभ सूचना देने वाला और सचेत करने वाला बनाकर भेजा है।" (सूर ए अहज़ाब: 45)

और वह आगे कहता है:  وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ व जअलना मिंहुम आइम्मतन यहदूना बेअम्रेना लम्मा सबरू व कानू बेआयातेना यूक़ेतूना

“और हमने उनमें से कुछ को ऐसा नेता बनाया जो हमारे आदेश से मार्ग पर चले, क्योंकि उन्होंने धैर्य रखा और हमारी आयतों पर ईमान लाया।” (सूर ए सजदा: 24)

ये सभी तर्क इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि इमाम की नियुक्ति और स्थापना केवल ईश्वर का अधिकार है।

इमाम रज़ा (अ.स.) का जामेअ बयान

इमाम रज़ा (अ.स.) इमामत की वास्तविकता और इसकी महानता का वर्णन इस प्रकार करते हैं:

... هَلْ يَعْرِفُونَ قَدْرَ الْإِمَامَةِ وَ مَحَلَّهَا مِنَ الْأُمَّةِ فَيَجُوزَ فِيهَا اخْتِيَارُهُمْ؟ हल यअरेफ़ूना कदरल इमामते व महल्लहा मिनल उम्मते फ़यजूज़ो फ़ीहा इख़्तेयारोहुम ?

क्या लोग इमामत के महत्व और उम्माह में इसकी स्थिति को पहचानते हैं, ताकि उन्हें इसके लिए चुनाव करने का अधिकार हो?

إِنَّ الْإِمَامَةَ أَجَلُّ قَدْراً وَ أَعْظَمُ شَأْناً وَ أَعْلَى مَكَاناً... इन्नल इमामता अजल्लो क़दरन व आअज़मो शानन व आला मकानन...

वास्तव में इमामत का दर्जा बहुत ऊंचा है, उसका स्थान बहुत महान है, और उसका दर्जा बहुत महान है।

إِنَّ الْإِمَامَةَ أُسُّ الْإِسْلَامِ النَّامِي وَ فَرْعُهُ السَّامِي... इन्नल इमामतो उस्सेसल इस्लामिन नामी व फ़रओहुस सामी...

इमामत इस्लाम की जड़ और उच्चतम शाखा है। इमाम वह है जो नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज, जिहाद, हुदूद, सदक़ा और इस्लामी व्यवस्था स्थापित करता है।

الْإِمَامُ يَحِلُّ حَلَالَ اللَّهِ وَ يُحَرِّمُ حَرَامَ اللَّهِ... अल इमामो यहिल्लाो हलालल्लाहे व योहर्रेमो हरामल्लाह...

इमाम अल्लाह द्वारा हलाल (वैध) करार दिए गए कार्य को हलाल (वैध) तथा हराम (निषिद्ध) करार देते हैं, तथा अल्लाह के धर्म की रक्षा करते हैं।

الْإِمَامُ وَاحِدُ دَهْرِهِ، لَا يُدَانِيهِ أَحَدٌ، وَلَا يُعَادِلُهُ عَالِمٌ... अल इमामो वाहेदो दहरेहि, या योदानीहे अहदुन, वला योआदेलोहू आलेमुन...

एक इमाम अपने समय में अद्वितीय होता है; न तो कोई उसकी बराबरी कर सकता है और न ही कोई उसके जैसा विद्वान हो सकता है। उन्हें यह पद बिना मांगे ही दिया गया है, बल्कि यह सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर से एक उपहार है।

فَمَنْ ذَا الَّذِي يَبْلُغُ مَعْرِفَةَ الْإِمَامِ، أَوْ يُمْكِنُهُ اخْتِيَارُهُ...؟ फ़मन ज़ल लज़ी यबलोग़ो मअरेफ़तल इमामे, ओ युमकेनोहू इख़्तियारोहो...?

तो फिर वह कौन है जो इमाम का ज्ञान प्राप्त कर सकता है या किसके लिए इमाम चुनना संभव है?

(उसूले कॉफी, भाग 1, पेज 198)

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha