गुरुवार 17 अप्रैल 2025 - 10:02
सभी मुंजी के आने के इंतजार में हैं

हौज़ा / सभी धर्मों के शिक्षाओं में मुंजी (मसीहा) के आने का वादा मिलता है, लेकिन शिया मुसलमानों के अनुसार, मुंजी ए आलमे बशरीयत अभी लोगों के बीच रह रहा है, पर उसे कोई नहीं जानता। और वह तब तक छुपा रहेगा जब तक अल्लाह उसे ज़ाहिर होने की अनुमति नहीं देता। इसलिए, शिया मानते हैं कि "ज़ोहूर" का मतलब मुंजी का पहचाना जाना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, शायद आपने खुद से पूछा होगा कि हमारी दुनिया, जो प्यार और सहानुभूति से भरी होनी चाहिए, वह इतनी अन्याय और अत्याचार से क्यों भरी हुई है? इंसान कब तक इस अन्याय और भेदभाव को सहता रहेगा?

क्यों कुछ लोग अत्याचारी लोगों की वजह से पूरी गरीबी में जी रहे हैं और अपनी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते? क्यों कुछ लोग सिर्फ अपनी त्वचा के रंग के कारण अन्याय झेलते हैं? हमें ऐसे बच्चों को क्यों देखना चाहिए जिनकी हड्डियां भूख के कारण बाहर निकल आई हैं? कब तक निर्दोष लोगों के घर तबाह होते रहेंगे? कब तक माता-पिता अपने घायल बच्चों को अपने हाथों में लेकर रोते रहेंगे?

इन समस्याओं को कौन दूर करेगा? किसके भरोसे ये समस्याएं खत्म होंगी? कौन इन अत्याचारों के लिए जिम्मेदारों को जवाब देगा? इस दुनिया के किस अदालत में इन पीड़ितों का हक मिलेगा? और भी कई सवाल जो हर आजाद इंसान के दिमाग में आते हैं।

लेकिन दुनियावी मसाइल (समस्याओ) के अलावा भी ऐसे सवाल हैं जो एक सोचने-समझने वाले इंसान का ध्यान खींचते हैं।

जैसे कि, इस ज़िंदगी की कहानी क्या है? उस खुदा का, जिसने इस अजीब और पेचीदा दुनिया के तमाम हिस्सों को इतने व्यवस्थित तरीके से बनाया और हर एक के लिए एक खास ज़िम्मेदारी निर्धारित की, मेरा (इंसान) से क्या रिश्ता है? यानी कि अपनी हिदायत और इस रिश्ते को लेकर हम बेखबर नहीं रह सकते।

ये सवाल ऐसे नहीं हैं जिन्हें आसानी से नज़रअंदाज़ कर दिया जाए। क्योंकि हमे अर्थात इंसान को अक्ल (विवेक) से नवाज़ा गया हैं। यही अक्ल हमें सोचने पर मजबूर करती है। और कितना बुरा होगा अगर इंसान की पूरी मौजूदगी सिर्फ जानवरों जैसी इच्छाओं और शहवात में डूब जाए, और उसके अंदर सोच-विचार और समझ की रोशनी बिल्कुल खत्म हो जाए। यह कितना बड़ा और अजीब नुकसान होगा!

ये सवाल और बातें हमें एक खोज में लगा सकती हैं, कुछ ऐसा या किसी ऐसे को तलाशने के लिए जो हमारे सवालों का जवाब बन सके और हमारे दर्द की दवा बन सके।

और यही वह चीज़ है जिसे "उम्मीद" कहा जाता है। सही राह मिलने की उम्मीद, निजात पाने की उम्मीद, एक अच्छे भविष्य की उम्मीद।

यही उम्मीद और निजात एक "मुंजी (मसीहा)" के रूप में, एक "राहनुमा और हिदायत देने वाले" के रूप में सामने आती है। वह निजात देने वाला और हिदायत देने वाला जिसके आने की खुशखबरी सभी धर्मों में दी गई है।

यहूदी, ईसाई, मुसलमान, ज़रतुश्ती, हिंदू, बौद्ध और यहाँ तक कि वे लोग भी जो किसी धर्म को नहीं मानते, वे भी मुंजी (मसीहा) के आने की उम्मीद को अपने अटूट विश्वास का हिस्सा मानते हैं। यह वह यक़ीन है जो मुश्किलों और तंगियों के वक़्त उनके लिए सुकून और उनके दर्दों का मरहम बनता है।

इस्लाम में मुंजी के आने की खुशखबरी

इस्लाम और शियावाद में मुंजी के आने की खुशखबरी का ज़िक्र बार-बार मिलता है। वह आएगा और ज़मीन को, जो ज़ुल्म से भर चुकी है, इंसाफ़ और न्याय से भर देगा। वह दुनिया के मज़लूमों की उम्मीद और ज़ालिमों का दुश्मन होगा। वह ऐसा होगा कि अल्लाह उसके ज़ोहूर के साथ अपने बंदों पर अपनी मेहरबानी को पूरा कर देगा। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि शिया मानते हैं कि मुंजी ए बशरीयत (इमाम महदी अ) अभी भी लोगों के बीच मौजूद है, लेकिन उन्हे कोई नही पहचानता, जब तक अल्लाह उन्हें ज़ाहिर होने की इजाज़त नहीं देता। इसलिए शिया मत के अनुसार, "ज़ोहूर" का मतलब मुंजी का पहचाना जाना है।

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