हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,हुज्जतुल इस्लाम फ़राज़ीनिया ने कहा कि हज़रत अली (अ.स.) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.ल.) का विवाह ऐसा ऐतिहासिक अवसर है जो न केवल धार्मिक बल्कि आत्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व रखता है।
उन्होंने इस मुबारक अवसर को हज के दिनों और अशरा-ए-ज़िलहिज्जा की रूहानी फिज़ाओं के साथ मेल खाता हुआ बताया और कहा कि यह दिन दो पवित्र घटनाओं की याद दिलाता है एक ओर हज का मौसम और दूसरी ओर सम्पूर्ण मानवता की सबसे महान शादी का दिन।
फ़राज़ीनिया के अनुसार यह निकाह आसमान पर फ़रिश्तों की मौजूदगी में और ज़मीन पर पैग़म्बर मुहम्मद (स.ल.व.) की निगरानी में सम्पन्न हुआ।
इस विवाह में तीन प्रकार का मेहर शामिल था:
आसमानी मेहर: यानी तमाम चश्मों (झरनों) का स्वामित्व।
दुनियावी मेहर: यानी पाँच सौ दिरहम।
आध्यात्मिक मेहर: जिसे हज़रत ज़हरा (स.ल.) ने उम्मते रसूल (स.ल.) की शिफ़ाअत के रूप में माँगा।
उन्होंने हज़रत ज़हरा (स.ल.) की सादगी, दरियादिली और बलिदान को मिसाली बताया और कहा कि ये सभी गुण मारिफ़त और अध्यात्मिक गहराई की पहचान हैं।
हुज्जतुल-इस्लाम फ़राज़ीनिया ने अशरा-ए-ज़िलहिज्जा को आत्मशुद्धि, तवस्सुल और सामूहिक दुआओं का बेहतरीन अवसर बताया और बल दिया कि मोमिनीन इस रूहानी ख़ज़ाने को एक-दूसरे के साथ साझा करें ताकि इस्लामी समाज उबूदियत (बंदगी) की ख़ुशबू से महक उठे।
आपकी टिप्पणी