हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह सैय्यद अहमद ख़ातिमी जो तेहरान के कार्यवाहक इमाम ए जुमआ हैं ने पेशवा-ए-वरामिन में 15 ख़ुरदाद आंदोलन के शहीदों की याद में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति की 47 वर्षों की स्थायित्व और इस्तेकामत का राज़ वलायत-ए-फ़क़ीह की केंद्रीय रहबरी और जनता की विलायत-ए-फ़क़ीह से जुड़ी हुई बसीरत में छिपा है।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति ने युद्ध पाबंदियों साज़िशों और आंतरिक व बाहरी फितनों जैसे कठिन इम्तिहानों के बावजूद अपने रास्ते को जारी रखा जबकि दूसरी कुछ इस्लामी तहरीकें, जैसे कि इख़वानुल मुसलमीन, 80 साल की जद्दोजहद के बाद भी सिर्फ एक साल सत्ता में रह सकीं।
आयतुल्लाह ख़ातिमी ने 15 ख़ुरदाद के क़ियाम को इमाम ख़ुमैनी रह. की हिमायत में एक ऐतिहासिक और जन आंदोलन बताया और कहा कि यह दिन इस्लामी क्रांति की बुनियादों में से एक मज़बूत स्तंभ है, और यह क़ियाम आज भी ईरानी क़ौम के लिए एक रौशन चिराग़ और इलाही तहरीक की निशानी है।
उन्होंने कहा कि 15 ख़ुरदाद के शहीदों की वफ़ादारी, दीन और वलायत से गहरी वाबस्तगी (लगाव) का अमली (व्यावहारिक) नमूना है, जिन्होंने "या मौत या ख़ुमैनी" का नारा लगाते हुए अपनी जानों की कुर्बानी दी और दीन की राह में सीना सपर हो गए।
तेहरान के इमामे जुमा ने दुश्मनों की कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज कुछ सेकुलर और धर्म विरोधी तत्व सोशल मीडिया के ज़रिए दीन के अकीदे को कमज़ोर करना चाहते हैं, लेकिन ईरानी क़ौम अहलेबैत (अ.स.) से मोहब्बत और वलायतमदारी के जज़्बे के साथ हर फितने के सामने मज़बूती से खड़ी है।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के दो बुनियादी मोड़ 15 ख़ुरदाद 1342 (1963) और 19 दी 1356 (1978) थे जिन्होंने इमाम ख़ुमैनी (रह.) की क़ियादत को अवामी ताक़त से जोड़कर क्रांति की सफलता की राह हमवार की।
आयतुल्लाह ख़ातिमी ने वलायतमदारी को सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि अमली वाबस्तगी बताया। उन्होंने कहा कि जो लोग ज़बान से वलायत का दावा करते हैं लेकिन दुश्मनों से बेज़ारी का इज़हार नहीं करते, वे इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.) की तालीमात से दूर हैं। सच्ची वलायतमदारी वही है जो रहबर-ए-इंक़लाब के फ़ैसलों से मुकम्मल अमली हमआहंगी रखती हो।
उन्होंने कहा,अगर किसी की ज़ाती राय रहबर-ए-मुअज़्ज़म की राय से अलग भी हो, तब भी उसे वली-ए-फ़क़ीह की राय को तरजीह देनी चाहिए।जैसा कि खुद रहबर-ए-इंक़लाब ने फ़रमाया कि वे इमाम ख़ुमैनी (रह.) की राय को अपनी राय पर प्राथमिकता देते थे।
आयतुल्लाह ख़ातिमी ने 15 ख़ुरदाद के क़ियाम की अवामी प्रकृति को रौशन करते हुए कहा कि यह तहरीक किसानों, मज़दूरों और आम लोगों से उठी थी और एक असली जन आंदोलन थी। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि यहूदी और अमरीकी हुकाम कई बार इस बात को मान चुके हैं कि जब तक जनता इस निज़ाम के साथ है, ईरान को शिकस्त नहीं दी जा सकती।
उन्होंने मौजूदा आर्थिक मुश्किलात का ज़िक्र करते हुए कहा कि इनका कुछ हिस्सा दुश्मन के दबाव की वजह से और कुछ अंदरूनी बदइंतज़ामी से पैदा हुआ है, लेकिन अवाम की इसतेकामत ही इस क्रांति की बक़ा की ज़मानत है।
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