हौज़ा न्यूज एजेंसी के अनुसार, शहीद मुताहरी ने अपनी मशहूर किताब "आज़ादी-ए-माअनवी" मे "आमिरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की जीवन शैली में आध्यात्मिक स्वतंत्रता (मानवी आज़ादी) " के विषय पर लिखा है, जो आप के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
जब आमिरुल मोमिनीन सिफ़्फ़ीन के लड़ाई के लिए जा रहे थे या वापस लौट रहे थे, तो वे अंबार शहर पहुंचे — जो अब इराक का एक शहर है और पुराने ईरान के शहरों में से एक था। वहाँ ईरानी लोग रहते थे।
कुछ गांव के मुखिया, देहातदार और बड़े लोग खलीफा का स्वागत करने आए थे।
वे सोचते थे कि अली अलैहिस्सलाम सासानी सलातीन के उत्तराधिकारी हैं।
जब वे इमाम के पास पहुंचे, तो उन्होंने इमाम के घोड़े के सामने दौड़ना शुरू कर दिया।
अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें आवाज़ दी और कहा: आप यह काम क्यों कर रहे हैं?
उन्होंने कहा: साहब! यह हमारे बुजर्गो और सलातीन को सम्मान देने का तरीका है।
इमाम अलैहिस्सलाम ने कहा: नहीं, यह काम मत करो।
यह काम तुम्हें नीचा, अपमानित और कमजोर बना देता है।
तुम खुद को मेरे सामने, जो तुम्हारा खलीफा हूँ, क्यों नीचा दिखाते हो?
मैं भी तुम में से ही एक हूँ।
और सच कहूँ तो, तुमने मुझे इससे कोई भलाई नहीं दी, बल्कि नुकसान पहुँचाया है।
इससे हो सकता है कि, अल्लाह न करे, मुझमें घमंड पैदा हो जाए और मैं सच में खुद को तुमसे बेहतर समझने लगूँ।
इसी को एक आज़ाद और मजबूत इंसान कहा जाता है।
जिसके पास आध्यात्मिक स्वतंत्रता (मानवी आज़ादी) होती है, जिसने कुरान की आवाज़ को स्वीकार किया है: الّا نَعْبُدَ الَّا اللَّهَ इल्ला नअबोदला इल्लल्लाह "सिवाय खुदा की हम किसी की इबादत नहीं करेंगे";
मतलब, न किसी इंसान की, न किसी पत्थर की, न किसी मूर्ति की, न आसमान की, न धरती की, न अपने स्वार्थ की, न गुस्से की, न वासना की, न लालच की, न महत्वाकांक्षा की इबादत करें, सिर्फ़ खुदा की ही इबादत करें।
तभी वह व्यक्ति आध्यात्मिक स्वतंत्रता (मानवी आज़ादी) दे सकता है।
हवाला: किताब "आज़ादी-ए-माअनवी", पेज 20
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