हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,दुनिया की पहली इस्लामी यूनिवर्सिटी की बुनियाद रखने वाले हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम थें जिसमें पैग़म्बरे अकरम (स.ल.व.व.) के सहाबी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी, ताबेईन में से जाबिर जोफ़ी, केसान सजिस्तानी और फ़ुक़हा में से इब्ने मुबारक, ज़ोहरी, अवज़ाई, अबू हनीफ़ा, मालिक, शाफ़ेई और ज़ियाद इब्ने मुंज़िर इल्मी फ़ायदा हासिल करते थे।
मशहूर इस्लामी इतिहासकार जैसे तबरी, बेलाज़री, सलामी, ख़तीब बग़दादी, अबू नईम इस्फ़हानी और कुछ मशहूर किताबों जैसे मोवत्ता, सुनन इब्ने दाऊद, मुसनद अबू हनीफ़ा, मुसनद मुरूज़ी, तफ़सीरे नक़्क़ाश, तफ़सीरे ज़ेमख़'शरी जैसे सैकड़ों किताबों में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की क़ीमती बातें जगह जगह देखने को मिल जाएंगी।
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम की नस्ल से आप ही के बेटे और हिदायत, इमामत और ख़लीफ़तुल इस्लाम की पांचवीं कड़ी इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की विलादत पहली रजब, सन 57 हिजरी को मदीने में हुई और आपने 94 हिजरी में अपने वालिद इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद पांचवे इमाम के तौर पर इमामत की ज़िम्मेदारी को संभाला, आपकी वालिदा इमाम हसन (अ) की बेटी थीं और वालिद इमाम अली इब्ने हुसैन ज़ैनुल आबेदीन (अ) थे,
इस हिसाब से आप पहले वह शख़्स और इमाम हैं जो मां बाप दोनों की तरफ़ से अलवी फ़ातिमी हैं।
आपकी इमामत के दौरान बनी उमय्या और बनी अब्बास के राजनीतिक मतभेद अपने चरम पर थे और इन्हीं वजहों से इस्लामी फ़िर्क़े तेज़ी से अलग अलग गिरोह में बंट रहे थे, जिस दौर में यूनानी फ़लसफ़ा इस्लामी देशों में दाख़िल हुआ जिससे एक इल्मी तरक़्क़ी की शुरुआत दिखाई दी जिसकी बुनियाद मज़बूत उसूलों पर रखी गई थी,
इस शुरुआत के लिए ज़रूरी था कि दीनी हक़ीक़तों को ज़ाहिर करे और ख़ुराफ़ात और नक़ली और गढ़ी गई हदीसों को निकाल कर बाहर करे, साथ ही बे दीनों और लाइकों का तर्क (मंतिक़, लॉजिक) के साथ मुक़ाबला कर के उनके कमज़ोर ख़यालात को सुधारे, मशहूर लाइक और ला मज़हबों (कम्युनिस्ट) के साथ इल्मी मुनाज़िरा कर के उनके अक़ीदों को बातिल करे और यह काम वक़्त के इमाम, हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के अलावा किसी और द्वारा मुम्किन नहीं था,
आपने इस्लामी अक़ीदों की सच्चाई और हक़्क़ानियत को फैलाने की राह में इल्म के दरवाज़े खोलें और इस इल्मी तहरीक और आंदोलन को पहली इस्लामी यूनिवर्सिटी की स्थापना के तौर पर देखा जाता है।
आपके बारे में इमाम हंबल और इमाम शाफ़ेई जैसे अहले सुन्नत के बुज़ुर्ग आलिम कहते हैं कि अबू जाफ़र (इमाम मुहम्मद बाक़िर अ.) मदीने के फ़ुक़हा में से हैं, आपको बाक़िर कहा जाता है इसलिए कि आपने इल्म की गहराई तक जाते हुए उसकी हक़ीक़त और जौहर को पहचाना है। (अल-इमाम अल-सादिक़ वल मज़ाहिबिल अरबआ, जिल्द 1, पेज 149)
मोहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अली (अ) इल्म को चीरने वाले और सारे उलूम को जानने वाले हैं,
आपकी हिकमत ज़ाहिर है और इल्म आप के ही द्वारा बुलंद है, आपके मुबारक वजूद से ही इल्म के समंदर भरे हुए हैं, आपकी हिकमत और मंतिक़ दिलों को आकर्षित कर देने वाली है, आपका दिल साफ़ और अमल पाकीज़ा है, आप पाक रूह और नेक दिल के मालिक हैं, अपने समय को अल्लाह की इबादत में ख़र्च करते हैं, परहेज़गारी में उनकी कोई मिसाल नहीं है,
अल्लाह की बारगाह में अल्लाह से सबसे क़रीब होने की अलामत आपकी पेशानी से ज़ाहिर है, आपकी ज़ात में फ़ज़ीलतें और कमालात एक दूसरे से आगे बढ़ना चाहती हैं, नेक आदतों और शराफ़त ने आप ही से इज़्ज़त हासिल की है। (अल-इमाम अल-सादिक़ वल मज़ाहिबिल अरबआ, जिल्द 1, पेज 149)
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने पांच बनी उमैया के ज़ालिम ख़ुलफ़ा का दौर देखा है, वलीद इब्ने अब्दुल मलिक सन 86 हिजरी से 96 हिजरी तक, सुलैमान इब्ने अब्दुल मलिक सन 96 हिजरी से 99 हिजरी तक, उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ सन 99 हिजरी से 101 हिजरी तक, यज़ीद इब्ने अब्दुल मलिक सन 101 हिजरी से 105 हिजरी तक और हिशाम इब्ने अब्दुल मलिक सन 105 हिजरी से 125 हिजरी तक बादशाहत करते रहे।
इन सारे बादशाहों में अब्दुल अज़ीज़ को इंसाफ़ पसंद और पैग़म्बरे अकरम (स) के ख़ानदान से नेक बर्ताव करने वाला बताया जाता है, जिसने मुआविया की सुन्नत यानी इमाम अली अलैहिस्सलाम को पिछले 69 सालों से जुमे के ख़ुत्बे तक में लानत और गाली देने की बिदअत को गुनाहे कबीरा एलान करते हुए बंद करने का हुक्म दिया।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की बनाई यूनिवर्सिटी और इस्लामी सेंटर में से फ़िक़्ह, तफ़सीर और इल्मे कलाम (अक़ाएद) जैसे दूसरे बहुत से उलूम के जो माहिर निकलकर सामने आए हैं उनमें से मोहम्मद इब्ने मुस्लिम, ज़ुरारा इब्ने आयुन, बुरैद इब्ने मुआविया इज्ली, जाबिर इब्ने यज़ीद, हमरान इब्ने आयुन और हिशाम इब्ने सालिम का ज़िक्र ख़ास तौर से किया जाता है।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने दूसरे इमामों की तरह अपनी ज़िंदगी को केवल इबादत और तालीम में ही ख़र्च नहीं किया बल्कि दूसरे बहुत से सामाजिक और व्यक्तिगत कामों में भी आप आगे आगे रहते थे, जबकि कुछ बेचारे कम समझ मुसलमान जैसे मोहम्मद इब्ने मुन्कदिर जैसे इमाम (अ) के काम को दुनिया परस्ती समझते थे,
जैसे इसी इब्ने मुन्कदिर का बयान है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का खेत में काम करने की वजह से मैं अपने आप से कहा करता था कि इमाम बाक़िर (अ) दुनिया के पीछे पड़े हैं इसलिए मैंने सोंचा कि एक दिन ऐसा न करने की नसीहत करूंगा, फिर एक दिन मैंने सख़्त गर्मी में देखा कि आप बहुत ज़ियादा मेहनत करने की वजह से थक चुके हैं
और पसीने में भीग चुके हैं तो मैं आगे बढ़ा और पास जा कर सलाम किया और कहने लगा: ऐ रसूलल्लाह के बेटे! आप दुनिया के माल के पीछे इतना क्यों पड़े रहते हैं..., अगर इस हाल में मौत आ जाए तो क्या करेंगे, आपने फ़रमाया: अगर ऐसा हुआ तो यह मौत का बेहतरीन वक़्त होगा क्योंकि मैं मेहनत करता हूं
ताकि दूसरों का मोहताज न रहूं और दूसरों की कमाई न खाऊं इसलिए अगर मुझे इस हालत में मौत आ जाए तो मैं तो बहुत ख़ुश हो जाऊंगा चूंकि मेरी मौत अल्लाह की इताअत और इबादत में शुमार होगी।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम दूसरे इमामों की तरह बहुत सारे उलूम में माहिर थे, एक दिन हिशाम इब्ने अब्दुल मलिक बादशाह ने इमाम अलैहिस्सलाम को अपनी फ़ौजी महफ़िल में शिरकत करने की दावत दी, जब इमाम वहां पहुंचे तो वहां महफ़िल सजी हुई थी सारे फ़ौजी तीर कमानों को लिए एक विशेष निशाने पर निशाना लगा रहे थे,
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस दास्तान को बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि जब हम दरबार में पहुंचे तो हिशाम ने हमारा सम्मान किया और कहा आप क़रीब तशरीफ़ लाएं! मेरे वालिद इमाम बाक़िर ने कहा कि मैं बूढ़ा हो चुका हूं मुझे रहने दो, हिशाम ने कहा ख़ुदा की क़सम! मैं आप से निशाना लगवा कर ही रहूंगा,
मेरे वालिद ने मजबूर हो कर कमान पकड़ी और निशाने पर तीर को चलाया, तीर निशाने के बिल्कुल बीच में लगा, आपने फिर तीर उठाया और निशाने पर तीर मारा, इस बार तीर पहले वाले तीर को चीरते हुए उसी निशाने पर लगा, आप तीर चलाते रहे 9 तीर हो गए तो हिशाम कहने लगा बस करें, ऐ अबू जाफ़र! आप सारे लोगों में सबसे बेहतर और माहिर तीर चलाने वाले हैं।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की जाबिर जोफ़ी को की जाने वाली वसीयत का कुछ हिस्सा जो हमारी ज़िंदगी के लिए आइडियल साबित हो सके।*
आप फ़रमाते हैं कि मैं कुछ चीज़ों की वसीयत करता हूं:
1- अगर तुम पर ज़ुल्म हो तो तुम ज़ुल्म मत करना।
2- अगर तुम्हारे साथ ख़यानत हो तो तुम ख़यानत मत करना।
3- अगर तुमको झुठलाया गया तो तुम ग़ुस्सा मत होना।
4- अगर तुम्हारी तारीफ़ हुई तो ख़ुश मत होना अगर तुम्हारी बुराई हुई तो शिकवा मत करना।
5- तुम्हारे बारे में जो लोग कहते हैं उस पर ध्यान दो, अगर सच में वैसे ही हो जैसा लोग कहते हैं तो उस सूरत में अगर हक़ बात से नाराज़ हुए तो याद रखो अल्लाह की नज़र से गिर गए और अल्लाह की नज़र से गिरना लोगों की नज़र में गिरने से कहीं बड़ी मुसीबत है, लेकिन अगर तुमने ख़ुद को लोगों के कहने के विपरीत पाया तो उस सूरत में तुमने बिना किसी ज़हमत (तकलीफ़ उठाए) सवाब हासिल किया।
यक़ीन जानो! तुम मेरे दोस्तों में केवल उसी सूरत में हो सकते हो कि अगर सारे शहर के लोग तुम को बुरा कहें और तुम दुखी न हो और जब सारा शहर तुमको नेक कहे तो ख़ुश न हो, लोगों के बुराई करने से घबराओ मत, इसलिए कि वह जो कुछ कहेंगे उससे तुमको कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा और अगर लोग तुम्हारी तारीफ़ करें जबकि तुम क़ुरआन के ख़िलाफ़ अमल कर रहे हो तो फिर तुम्हें किस चीज़ ने धोखे में डाल रखा हैं मोमिन इंसान हमेशा नफ़्स से लड़ता रहता है ताकि उसकी ख़्वाहिशें उस पर हावी न हो सकें और इस काम के लिए वह मेहनत करता है।
अल्लाह हम सबको हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की इस क़ीमती नसीहत पर अमल करने की तौफ़ीक़ दे ताकि हमारी दुनिया और आख़ेरत दोनों कामयाब हो सके।