हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , कर्बला की धरती पर बहा हुआ खून सिर्फ आँखों से बहने वाले आँसुओं की माँग नहीं करता, बल्कि यह इंसान की चेतना, अंतरात्मा और अस्तित्व के सवालों को झकझोर देता है हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने सिर्फ अपनी जान नहीं दी, बल्कि अपने परिवार, साथियों और यहाँ तक कि मासूम बच्चों को भी सच्चाई के रास्ते में कुर्बान कर दिया। यह सिर्फ एक युद्ध नहीं, बल्कि कुर्बानी की सर्वोच्च चेतना, नैतिक महानता और अस्तित्व की आज़ादी का प्रतीक है।
कर्बला हमें सिखाती है कि कुर्बानी सिर्फ शरीर की नहीं, बल्कि अहंकार, स्वार्थ, रिश्तों और आराम की भी होती है। यह कुर्बानी की वह चेतना है, जहाँ हर शहीद चाहे वह अली अकबर (अ.स.) हों, कासिम (अ.स.), हबीब इब्ने मज़ाहिर (र.अ.) या हुर (र.अ.)सभी ने अपनी मर्ज़ी से मौत को गले लगाया। उनकी शहादतें इंसानी इच्छा-शक्ति की सबसे बड़ी मिसाल हैं। ये वो महान लोग थे जो दुनिया की नज़र में मज़लूम थे, लेकिन रूहानी और फ़िक्री स्तर पर सबसे ज़्यादा आज़ाद।
इमाम हुसैन (अ.स.) के साथियों का इकट्ठा होना सिर्फ लोगों का समूह नहीं, बल्कि एक विचारशील उम्मत का प्रतीक है, जो रंग, नस्ल, कबीले या मकाम से ऊपर उठकर सिर्फ हक़ की बुनियाद पर जमा हुए।
जैसे हबीब इब्ने मज़ाहिर, जुहैर इब्ने क़ैन, मुस्लिम इब्ने औसजा हर एक ने अपनी निजी ज़िंदगी को छोड़कर एक बुलंद मकसद को अपनाया। यह संदेश आज के दौर में जातिवाद, राष्ट्रवाद और स्वार्थ के ख़िलाफ़ सबसे मज़बूत चुनौती है।
इसी तरह, बनी हाशिम की कुर्बानियाँ हमें सिखाती हैं कि रिश्ते और ख़ानदान का सम्मान अपनी जगह, लेकिन हक़ का दर्जा सबसे ऊपर है। जनाब अली अकबर (अ.स.), जनाब कासिम (अ.स.) और हज़रत अब्बास (अ.स.) जैसे जिगर के टुकड़े इसी सिद्धांत पर कुर्बान हुए कि जब हक़ की बात आए, तो रिश्ता नहीं, विचार मायने रखता है।
कर्बला की सबसे दर्दनाक मिसाल हज़रत अली असगर (अ.स.) की शहादत है, जो एक ऐसा मासूम बच्चा था जो बोलने, समझने और चुनने की ताक़त से महरूम था, लेकिन फिर भी बातिल के सामने हक़ की गवाही बना। यह शहादत बताती है कि ज़ुल्म इतना बेरहम हो जाता है कि मासूमियत को भी नहीं छोड़ता और हक़ इतना बुलंद होता है कि ख़ामोशी से भी सच्चाई बयान कर देता है।
शहादत, मिटने का नहीं, बल्कि जीने का रास्ता है।कर्बला ने मौत की परिभाषा बदल दी। अब मौत, ज़ुल्म के सामने चुप रहने का नाम नहीं, बल्कि हक़ के लिए मरने का नाम अनश्वर जीवन बन गया है।
हुसैनी शहीदों ने साबित किया कि ज़िंदा वही है जो हक़ के लिए ख़ुद को कुर्बान कर दे यही फ़लसफ़ा इक़बाल, कीर्केगार्ड और हेगल के विचारों से मिलता है, लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसे सिर्फ़ किताबों में नहीं बल्कि ख़ून से लिख दिया।
कर्बला इंसानी महानता का सबसे बुलंद मकाम है, एक ऐसा स्कूल है जहाँ हर शहादत ज़िंदगी का नया पाठ पढ़ाती है। यह रोना सिर्फ आँखों का नहीं, बल्कि दिल और दिमाग़ की जागृति का नाम है कर्बला हमें जीने का तरीका सिखाती है हक़ के लिए जीना आसान नहीं, लेकिन मरना ज़रूरी है।
आख़िर में मेरी दुआ है:ऐ अल्लाह! हमें कर्बला के फ़लसफ़े को समझने, उस पर चलने और हक़ के रास्ते पर डटे रहने की तौफ़ीक़ दे। हमें वो समझ दे जो ज़ुल्म को पहचान सके, और वो हिम्मत दे कि हम हर दौर के यज़ीद के सामने हुसैनी अंदाज पेश कर सकें।
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