लेखकः मौलाना नजीबुल हसन ज़ैदी
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!
3 शाबान की तारीख उस यादगार पल को अपने में समेटे हुए है, जब इस कायनात में एक ऐसी शख्सियत ने कदम रखा, जिसकी बड़ी कुर्बानी के बिना आज दुनिया में हक के लिए बोलने वालों की इतनी भी तादाद नहीं होती।
ताकतवरों की मंशा ही हक कहलाती, उनका तरीका ही न्याय होता। इस दुनिया के हर कोने में वो लोग जिनकी तादाद उंगलियों पर गिनने लायक थी, उनके अंदर हक के लिए मर मिटने और शांति और न्याय की खातिर कुर्बान होने का जज़्बा उसी महान हस्ती का एहसान है जिसे हम हुसैन (अ) कहते हैं।
वो हुसैन (अ), जिन्हें हम पहचानते हैं, लेकिन दुनिया का ज़्यादातर हिस्सा उनके महान उद्देश्यों और शांति व न्याय के लिए उनकी कुर्बानियों से अनजान है।
सय्यद उश्शोहदा (अ) की शिक्षाओं को फैलाने की ज़रूरत
वैसे तो दुनिया भर में सय्यद उश्शोहदा (अ) की महान कुर्बानियों और उनकी शख्सियत के कई पहलुओं को पेश करने की ज़रूरत है, लेकिन खासकर उस मुल्क में जहां हम रहते हैं, आज हर दौर से ज़्यादा "अबल अहरार" की शख्सियत को सामने लाने और उनकी शिक्षाओं को फैलाने की ज़रूरत है।
भारत, जो सदियों से गंगा-जमनी तहज़ीब का गहवारा रहा है, आज विभिन्न प्रकार की धार्मिक और जातिवादीय नफरत और भेदभाव का सामना कर रहा है। असहिष्णुता, नफरत और आपसी भेदभाव का ज़हर समाज में समा रहा है, जो न केवल राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है, बल्कि मानवता की मूलभूत क़ीमतों के खिलाफ भी है। ऐसे में, इमाम हुसैन (अ) की शिक्षाओं को फैलाना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है, क्योंकि उनकी ज़िन्दगी सब्र, न्याय, समानता, और कुर्बानी का आदर्श है, और यही वो बातें हैं जिनके बिना एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश में समरसता संभव नहीं है।
हुसैन - हिदायत का चिराग़
प्रसिद्ध हदीस है: "हुसैन (अ) हिदायत का चिराग़ और निजात की कश्ती हैं।" अब अगर इस दीपक को किसी खास कौम या धर्म तक सीमित कर दिया जाए, या कश्ती को केवल अपने धर्म के अनुयायियों तक सीमित किया जाए, तो फिर दुनिया के अंधेरे कैसे मिटाए जाएंगे? यकीनन इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में जो कदम उठाया, वो किसी खास धर्म, कौम या वर्ग के लिए नहीं था, बल्कि यह एक वैश्विक आदर्श था, जो मानवता के आकाशीय सिद्धांतों की रक्षा कर रहा था। आपने यज़ीद जैसे अत्याचारी के सामने सिर झकाने के बजाय, हक और सच्चाई के लिए अपनी जान कुर्बान करके यह साबित कर दिया कि जान बहुत क़ीमती है, लेकिन इससे भी ज़्यादा क़ीमती जान का हक की राह में जाना है, वरना ज़िन्दगी बेकार है।
हुसैन (अ) का हक के लिए संघर्ष और उनकी भूमिका आज के भारत में शांति और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए एक मार्गदर्शक बन सकती है, अगर हम इसे सही तरीके से लोगों के बीच प्रस्तुत करने में सफल हो जाएं। उनके महान जीवन से हम कुछ अनमोल शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, जो आज के भारत के लिए बेहद ज़रूरी हैं:
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हक के लिए खड़ा होना
इमाम हुसैन (अ) ने हमें यह सिखाया कि अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ चुप रहना अत्याचार के साथ सहयोग करने के समान है। आज भारत में जो चुनौतियां धार्मिक और सामाजिक अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्गों और दबे-कुचले लोगों को झेलनी पड़ रही हैं, उनके समाधान के लिए हुसैनी विचारों का पालन करना अनिवार्य है। यदि लोग हक और न्याय के समर्थन में खड़े होंगे, तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव हो सकता है। -
संप्रदायिकता के खिलाफ हुसैनियत
इमाम हुसैन (अ) की कुर्बानी किसी एक धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं थी, बल्कि हर उस इंसान के लिए थी जो सच्चाई, प्रेम और समानता पर विश्वास करता था। कर्बला में उनके साथ ईसाई और अन्य धर्मों के लोग भी थे, जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) की हिदायत से अपने दिलों को रौशन किया और अपनी पहचान को एक नई दिशा दी। कई जगहों पर हुसैनी ब्राह्मणों का जिक्र भी मिलता है जो हिंदू थे, लेकिन कर्बला पहुंचे और इमाम हुसैन (अ) के साथ खड़े होकर उन्होंने अपनी शहादत दी।
कर्बला में विभिन्न विचारधाराओं के लोग एकजुट होकर इमाम हुसैन (अ) के मार्गदर्शन में आए, यह इस बात का प्रमाण है कि हुसैनियत किसी एक धर्म या कौम की जागीर नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संदेश है।
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सबर और सहिष्णुता का पाठ
इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में जो सब्र और सहिष्णुता की मिसाल पेश की, वह हमें यह सिखाती है कि अत्याचार के खिलाफ संघर्ष के साथ-साथ धैर्य और सहिष्णुता भी आवश्यक हैं। भारत में मौजूदा धार्मिक और सामाजिक तनाव को कम करने के लिए हमें हुसैनी सब्र और सहिष्णुता को अपनाना चाहिए। -
मानवाधिकार और समानता का संदेश
इमाम हुसैन (अ) ने ना सिर्फ यज़ीद की तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि उन्होंने गुलामों, पीड़ितों और कमजोरों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। उन्होंने उस ज़ुल्म के खिलाफ विद्रोह किया जो कमजोरों को दबाने में अपनी जीत समझ रहा था।
आज भारत में जातिवाद, धर्म और भाषा के आधार पर जो भेदभाव किया जा रहा है, उसे समाप्त करने के लिए हमें हुसैनी विचारधाराओं को अपनाना होगा, जो समानता और न्याय की गारंटी देती है।
भारत में हुसैनी विचारों को फैलाने की आवश्यकता क्यों है?
आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और दुनिया की 17 प्रतिशत जनसंख्या को अपने में समेटे हुए है। भारत में हुसैनी विचारों को फैलाना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि अगर बड़ी संख्या में लोग "मैं" की लड़ाई में शामिल हो गए, तो समाज में क्या होगा, यह सब पर स्पष्ट है।
इसलिए, पूरे देश में इमाम हुसैन (अ) के संदेश को फैलाने की आवश्यकता है। यह संदेश जो हर प्रकार के "मैं" को नकारते हुए सब कुछ को "रब" से जोड़ता है, यही इस देश के लिए वो गोल्डन फॉर्मूला है, जिस पर अगर हम चलें तो यह देश नफरत और सांप्रदायिकता के अंधेरे से बाहर निकल कर एक शांतिपूर्ण, समरस और एकजुट समाज की ओर बढ़ सकता है।
हुसैनियत का मतलब है:
- हर पीड़ित की मदद और हर अत्याचारी के खिलाफ खड़ा होना।
- हर धर्म, संप्रदाय और जाति के बीच एकता का निर्माण।
- अन्याय और भेदभाव के खिलाफ दृढ़ रुख अपनाना।
- समानता और भाईचारे को बढ़ावा देना।
इमाम हुसैन (अ) की शहादत केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक अमर और अपराजेय पैगाम है, जो हर युग में लोगों को सही रास्ता दिखाता रहेगा। उनका जीवन और उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि हक के लिए मरना, झूठ के साथ जीने से कहीं बेहतर है।
इमाम हुसैन (अ) की शिक्षाएँ भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए बेहद अहम हैं। अगर हम उनके सब्र, कुर्बानी और न्याय के सिद्धांतों को अपनाएं, तो हम संप्रदायिक नफरत का अंत कर सकते हैं और एक शांतिपूर्ण, समृद्ध भारत बना सकते हैं।
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