हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , अंदीमेश्क शहर में शनिवार रात, 21 तीर (ईरानी कैलेंडर) को नाहिया-ए मुक़ावमत-ए बसीज द्वारा शहीदों के परिवारों, धार्मिक नेताओं, सैन्य और सुरक्षा बलों तथा आम लोगों की उपस्थिति में हुसैनिया-ए सारुल्लाह में यह समारोह आयोजित किया गया।
हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन मीर अहमद रज़ा हाजती ने इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा में हाल के शहीदों की रणनीतिक भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा,दुश्मनों ने 12-दिवसीय युद्ध के लिए 20 साल तक प्रयास किए, उन्होंने सटीक निगरानी की और हमारे कमांडरों के घरों की पहचान की, ताकि वे अपनी कल्पना में ईरान को विभाजित और नष्ट कर सकें।
उन्होंने आगे कहा,हमारे सामने सिर्फ़ इज़राइली शासन नहीं था, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका, नाटो के 32 सदस्य देश और उनके क्षेत्रीय अड्डे भी मौजूद थे। दुश्मन को लगता था कि हमले की सुबह लोग विद्रोह कर देंगे और शाम तक इस्लामी गणतंत्र का पतन हो जाएगा।
हुज्जतुल इस्लाम हाजती ने बताया,युद्ध शुरू होते ही पश्चिमी ईरान के मिसाइल बेस पर भारी हमला किया गया, ताकि अलगाववादी ताकतों के लिए रास्ता खोला जा सके। लेकिन सर्वोच्च नेता की दूरदर्शिता और कमांडरों के त्वरित प्रतिस्थापन के कारण, 17 घंटे से भी कम समय में तेल अवीव ईरानी मिसाइलों के निशाने पर था।
उन्होंने अंदीमेश्क के शहीद सरदार अमीन पूरजुदकी की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा,ऑपरेशन 'वादा-ए सादिक़ 2' में, इस महान शहीद के अनुसार, हमने वह काम किया जिससे नाटो की तकनीक घुटनों पर आ गई दुश्मन एआई का उपयोग करके हमारे ड्रोन को धोखा देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हमने उनके सिस्टम को पराजित कर दिया।
इस्लामी क्रांति के इस शोधकर्ता ने जोर देकर कहा,ईरानी मिसाइलों ने दुश्मन के महत्वपूर्ण लक्ष्यों को सटीकता से नष्ट किया, और 10वें दिन के बाद से, कब्जे वाले क्षेत्रों का आकाश वस्तुतः रक्षाहीन हो गया। ईरान इज़राइली शासन पर आकाश का निर्विवाद शासक बन गया।
उन्होंने इस जीत के वैश्विक प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा,अमेरिकी विदेश संबंध परिषद से जुड़े सबसे पुराने राजनीतिक पत्रिकाओं में से एक ने अपने हेडलाइन में लिखा,12-दिवसीय युद्ध के बाद ईरान ने नया जीवन पाया।
कार्यक्रम के अंत में, हुज्जतुल इस्लाम हाजती ने शहीदों के उच्च स्थान के बारे में बात की और कहा,अगर शहीदों का बलिदान नहीं होता, तो आज हम यहां नहीं होते। शहीदों के खून के आशीर्वाद से, इस्लामी ईरान कभी घुटने नहीं टेकेगा और न ही आत्मसमर्पण करेगा।
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