हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मदरसा एल्मिया अज़-ज़हेरा स.ल.कलारदश्त की मुदीर मोहतरमा ज़हरा बहरे काज़िमी ने महीने-ए-मोहर्रमुल-हराम के सिलसिले में मुनअक़िद ख़वातीन के ज़िलई इज्तिमा में ख़िताब करते हुए कहा,सियोनी हुकूमत की नज़रियाती माहियत के पेश-ए-नज़र, इस हुकूमत की हक़ीक़त यहूद की हक़ीक़त को समझे बग़ैर मुमकिन नहीं क़ुरआन करीम की आयात का मुताला यहूद के दीन या क़ौम की हक़ीक़त को पहचानने का सबसे अहम और मोतबर ज़रिया है।
मदरसा ख़्वाहरान कलारदश्त की मुदीर ने यहूद की एक सिफ़त को शुबहा अंदाज़ी और मीडिया वार करार देते हुए कहा,सूरा आले-इमरान की आयत 72 के मुताबिक़, अहले-किताब जो ज़्यादातर यहूद थे, पैग़म्बर-ए-अकरम (स.अ.व.व.) के ज़माने में मुसलमानों के अक़ीदे में शुबहा डालने के लिए नई चालें चलते थे, जैसे सुबह ईमान लाना और फिर दोबारा ईमान से पलट जाना, ताकि मुसलमानों के दिलों में शक पैदा हो।
मोहतरमा बहरे काज़ेमी ने आयात-ए-क़ुरआन का हवाला देते हुए यहूद को बुनियादी तौर पर बुज़दिल करार दिया और कहा,यहूद वह क़ौम हैं जो हमेशा ख़ुदावंद और अंबिया-ए-इलाही की लानत का निशाना रहे हैं लिहाज़ा मोमिनीन को इस क़ौम से दोस्ती और क़ुरबत से परहेज़ करना चाहिए।
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