۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
अज़ादी

हौज़ा/ख़ुर्रमशहर की आज़ादी का दिन जो हक़ीक़त में सन 1982 के अप्रैल और मई के महीने में बैतुल मुक़द्दस ऑप्रेशन के चरम पर पहुंच जाने का दिन है, हम सबके लिए, हमारे इतिहास के लिए और हमारे भविष्य के लिए पाठ और इबरत लेने का दिन है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ख़ुर्रमशहर की आज़ादी का दिन जो हक़ीक़त में सन 1982 के अप्रैल और मई के महीने में बैतुल मुक़द्दस ऑप्रेशन के चरम पर पहुंच जाने का दिन है, हम सबके लिए, हमारे इतिहास के लिए और हमारे भविष्य के लिए पाठ और इबरत लेने का दिन है।
क्योंकि फ़ौज और आईआरजीसी के जवानों ने उस दिन जान हथेली पर रख कर आपसी समन्वय से एक हैरत अंगेज़ वीरता के ज़रिए दुश्मन को बहुत भारी नुक़सान पहुंचाया कि जिसको लफ़्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता। इराक़ी फ़ौज के ढांचे पर ही नहीं बल्कि विश्व साम्राज्यवाद के ढांचे पर जो अपने लंबे लंबे वादों के ज़रिए बासी हुकूमत की जंगी मशीनरी के सपोर्ट में खड़ा था। किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि यह चीज़ (ख़ुर्रमशहर की आज़ादी) मुमकिन हो सकेगी।

लेकिन ऐसा हुआ। इसकी अस्ल वजह क्या थी? इसके लिए कुछ तत्वों को प्रभावी क़रार दिया जा सकता है लेकिन सबसे बुनियादी तत्व अल्लाह पर भरोसा और अपने बाज़ू की ताक़त पर भरोसा। अगर हम उस दिन आम और प्रचलित तरीक़ों के मुताबिक़ अमल करते और सोचते तो किसी भी हालत में कोई यह सोच नहीं पाता कि यह चीज़ भी मुमकिन हो सकती है।

लेकिन हमारे नौजवानों ने, हमारे बा-ईमान अवाम ने, हिम्मत व बहादुरी के साथ, ईमान और यक़ीन के साथ, अल्लाह पर भरोसा करते हुए, जान हथेली पर रखकर और मौत के डर को दिल से निकाल कर मैदान में क़दम रखे और यह कारनामा अंजाम दिया। ख़ुर्रमशहर की आज़ादी, कारनामों का चरम बिन्दु है, कारनामों का निचोड़ है।

क़रीब एक महीने तक चलने वाले बैतुल मुक़द्दस ऑप्रेशन की पूरी मुद्दत में बलिदान की सैकड़ों हैरत अंगेज़ मिसालें देखने को मिलीं।

यह जो जुमला (इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह) के हवाले से नक़्ल किया गया है और आपने इसे बार बार सुना होगा कि ‘ख़ुर्रमशहर को अल्लाह ने आज़ाद किया’ इस सिलसिले में कहा जाने वाला सबसे हकीमाना और हक़ीक़त पर आधारित जुमला है। “ऐ रसूल ये संगरेजे आपने नहीं फेंके जबकि आपने फेंके बल्कि ख़ुदा ने फेंके” (सूरए अंफ़ाल, आयत-17) की अमली तस्वीर है।

जो लोग उस ज़माने में ईरानी क़ौम और इस क़ौम के सिपाहियों के मुक़ाबले में खड़े हुए थे, ये वही लोग हैं जो आज ईरानी क़ौम के मुक़ाबले पर आए हैं। इन्हें पहचानने की ज़रूरत है। उस ज़माने में भी अमरीका, नेटो, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी थे।


इमाम ख़ामेनेई،

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .