सोमवार 10 मार्च 2025 - 10:49
मुसलमानों के भेष में छुपे इस्लाम के असली दुश्मन

हौज़ा / सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों और इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए?

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सीरिया में 5000 सीरियंस का खून बहाने वाले HTS के टेरेरिस्ट हों या पारा चिनार में शियो का खून बहाने वाले पाकिस्तानी टेरेरिस्ट हों कुरान की रौशनी में इन तमाम टेररिस्टों  और  इनको बनाने वालों को ठीक से पहचानिए।

क़ुरान सिर्फ़ एक धार्मिक किताब नहीं है बल्कि इंसान की पूरी ज़िन्दगी का मार्गदर्शन है। क़ुरान मुसलमानों को सिर्फ़ पढ़ने का नहीं, बल्कि "गौर व फिक्र" (सोचने-समझने) का हुक्म देता है ताकि वे हक और बातिल (सच और झूठ) में फर्क कर सकें।
अफसोस की बात है कि मुसलमान क़ुरान को पढ़ते तो हैं, लेकिन न तो उस पर अमल करते हैं और न ही उसे समझते हैं कि कुरान ने किसे उनका असली दुश्मन कहा  है।

यही वजह है कि आज मुसलमान इस्लाम के भेस में छिपे  गद्दार मुस्लिम लीडरों और जिहाद के नाम पर इस्लामी खिलाफत कायम करने का ढोंग रचा कर इस्लाम को बदनाम करने वाले आतंकी संगठनों को नहीं पहचान पा रहे है। जो यहूद और नजारा के एजेंट हैं और यहूद और नसारा इनके जरिए से ही सब से ज्यादा इस्लाम को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

क़ुरान ने बहुत साफ़ अल्फ़ाज़ में यहूद व नसारा को रहनुमा या सरपरस्त बनाने से मना किया है। सूरह मायदह (5:51) में अल्लाह फरमाता है:
"ऐ ईमान वालों! यहूदियों और नसाराओं को सरप्रस्त न बनाओ। वे आपस में एक-दूसरे के दोस्त हैं। और तुम में से जो कोई उनके कहने पर चलेगा, वह उन्हीं में से होगा ( यानी अल्लाह की निगाह में वो भी यहूदी और नसरानी होगा) । निःसंदेह अल्लाह ज़ालिम लोगों को हिदायत नहीं देता।(यानी वो मुसलमान जो कुरान के इस फैसले को न माने वो मुसलमान सिर्फ यहूदी और नसरानी ही नहीं है बलि अल्लाह की निगाह में वो ज़ालिम भी है) ये मेरा नहीं अल्लाह का फैसला है जो कुरान में लिखा हुआ है।
(सूरह मायदह: 51)

कुरान की इन आयात की रौशनी में खुद चेक कर लीजिए कि कितने मुस्लिम हुक्मरान, अमरीका, ब्रिटेन और इस्राईल और उनके जैसे मुल्कों के तलवे चाट रहे हैं और उनके हुक्म पर चल रहे हैं और अमरीका ब्रिटेन और इसराइल के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं बोलते,फिलिस्तीन में बरसों से और डेढ़ साल से तो रोज  ही मुसलमान मारे जा रहे हैं,बैतुल मुक़द्दस (अल-अक्सा मस्जिद) पर हमला हो रहा है मगर ये यहूदी एजेंट मुंह में दही जमाए हुए हैं।

अल्लाह ने ये भी फर्माया है कि जो लोग अल्लाह के फैसले के खिलाफ हुक्म देते हैं, वह भी काफिर, फ़ासिक़ और ज़ालिम हैं:और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो काफ़िर हैं।
(सूरह मायदह: 44)

और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो ज़ालिम (अत्याचारी) हैं।(सूरह मायदह: 45)और जो लोग अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के अनुसार फैसला न करें, वही तो फासिक (आज्ञा भंग करने वाले) हैं।
(सूरह मायदह: 47)

यानी जो भी अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म के खिलाफ चले,चाहे वो मुसलमान कहलाए, वो असल में काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है।
क़ुरान ने सच्चे मुसलमानों की पहचान बताते हुए ये भी कहा है:तुम्हारे दोस्त तो बस अल्लाह, उसका रसूल और ईमान वाले हैं, जो नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकते हैं।(सूरह मायदह: 55)

इस आयत की रौशनी में देख कीजिए अल्लाह रसूल पर ईमान रखने वाले फिलिस्तीनियों के साथ कौन है कौन उनकी मदद कर रहा है और कौन फिलिस्तीनियों का साथ नहीं दे रहा बल्कि इसराइल के और अमरीका के साथ है और गाज़ा का रस्ता खुलवा के वहां मदद पहुंचाने के बजाए फिलिस्तीनियों की मदद रोकने और भूखा प्यासा मारने वाले इसराइल को अपनी सरजमीन से मदद पहुंचा रहे हैं।

इसलिए जो यहूद व नसारा के दोस्त बने हुए हैं, उनके साथ खड़े हैं, वो कुरान के फैसले के मुताबिक मुसलमान नहीं हो सकते।
इसके अलावा, क़ुरान ये भी बता चुका है कि इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है:
"ईमानवालों! तुम पाओगे कि सबसे ज्यादा दुश्मनी करने वाले यहूदी और मुशरिक हैं,(सूरह मायदह: 82)

यानि यहूदी  मुसलमानों के असली दुश्मन हैं।
आज जो तरह तरह के जिहादी संगठन हैं जो "जिहाद" के नाम पर मुसलमानों का खून बहा रहे हैं वो चाहे तालिबान, अल-कायदा, दाइश (ISIS) हो,या HTS का जुलानी ये सब यहूद व नसारा के एजेंट हैं।

इन संगठनों ने भी कभी  फिलिस्तीन के लिए आवाज़ नहीं उठाई और कभी इसराइल के खिलाफ़ नहीं खड़े हुए और किसी ने भी बैतूल मुकद्दस और फ़िलीस्तीन की आज़ादी में कोई हिस्सा नहीं लिया  उनका मकसद सिर्फ मुसलमानों में फूट डालना मुस्कानों के गले काटना मुस्लिम मुमालिक को कमजोर करना और इस्लाम को बदनाम कर के यहूद नसारा और इस्लाम दुश्मन ताकतों को फायदा पहुंचाना है।

ये सारे दहशत गर्द संगठन अमरीका इसराइल ब्रिटेन और अमरीका इसराइल नवाज़ मुस्लिम मुमालिक के पैसों ट्रेनिंग और हथियारों पर पल रहे हैं।

यानी इन सारे आतंकी गिरोहों ने भी अपना सर प्रस्त अमरीका ब्रिटेन और इसराइल को बना रखा है मतलब अमरीका इसराइल और ब्रिटेन के तलवे चाटने वाले मुस्लिम मुमालिक हों या उनके इशारों पर नाचने वाले आतंकवादी संगठन हों दोनों कुरान की रौशनी में यहूदी और नसरानी हैं

इस्लाम अमन, इंसाफ़ और भाईचारे का मज़हब है, लेकिन ये दोनों इस्लाम के भेस में छिपे इस्लाम के गद्दार इस्लाम को खून-खराबे और दहशत गर्दका मज़हब दिखाकर यहूद व नसारा की इस्लाम विरोधी चालों को कामयाब बना रहे हैं।

इसलिए, हर मुसलमान को चाहिए कि रमजान के महीने में क़ुरान को समझे, उस पर गौर करे, और अपने अंदर के इन दुश्मनों को पहचान कर उनका पर्दाफाश करे। जब तक हम क़ुरान की रौशनी में हक और बातिल की पहचान नहीं करेंगे, तब तक मुसलमानों की जमात मुत्ताहिद नहीं हो सकती।
निष्कर्ष,आज मुसलमानों के सामने सबसे बड़ा फर्ज़ यही है कि वो अपने बीच छिपे गद्दार मुस्लिम हुक्मरानों और आतंकवादियों को बेनकाब करें।

जो यहूद व नसारा के एजेंट बनकर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं,और यहूदियों से ज्यादा मुस्कानों का खून बहा रहे हैं। दो दिनों के अन्दर जुलानी के आतंकवादी संगठन HTS ने 5000 सीरियाई मुसलमानो की जान ले कर बता दिया कि ये यहूदी और नसरानी तकफिरी HTS के आतंकवादी अपने आका मुल्ला उमर और अबूबकर  बगदादी की तरह दूसरे मुसलमानों को काफिर समझते हैं और अपने अलावा किसी को मुसलमान नहीं समझते और इसी लिए अपने अलावा दूसरे मुसलमानों का कतले आम करते रहते है ऐसे लोगों को रोकना हर सच्चे मुसलमान की जिम्मेदारी है।

आप लोग देख लीजिए इसराइल सीरिया पर कब से कब्जा कर रहा है जुलानी ने इसराइल के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया मगर HTS के दहशत गर्द अलवाइट्स और शियो का खुले आम कत्ल कर रहे हैं।

क़ुरान का साफ़ हुक्म है जो अल्लाह के हुक्म के खिलाफ चले, वो काफ़िर, ज़ालिम और फासिक है, चाहे वो मुस्लिम मुमालिक के सरब्राहान हों या मुसलमान के नाम पर बने आतंकी संगठन हों ये चाहे जितना अपने आप को मुस्लिम कहें कुरान की रौशनी में ये सब यहूदी,नसरानी और ज़ालिम हैं और अल्लाह खुद कुरान में जगह जगह ज़लीमों पर लानत करता है।
(शौकत भारती)

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