हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "उसुल अल-काफ़ी" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام الباقر علیه السلام:
إنّ العَبدَ لَيكونُ بارّا بِوالِدَيهِ في حياتِهِما، ثُمّ يَموتانِ فلا يَقضي عَنهُما دُيونَهُما ولا يَستَغفِرُ لَهُما، فيَكتُبُهُ اللّهُ عاقّا. وإنّهُ لَيكونُ عاقّا لَهُما في حياتِهِما غَيرَ بارٍّ بهِما، فإذا ماتا قَضى دَينَهُما واستَغفَرَ لَهُما، فيَكتُبُهُ اللّهُ عزوجل بارّا.
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) ने फ़रमाया:
हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता के जीवनकाल में उनके साथ अच्छा व्यवहार करे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, उनके कर्ज़ न चुकाने और उनके लिए क्षमा न माँगने के कारण, अल्लाह उसे अपने माता-पिता का अवज्ञाकारी समझे। यह भी संभव है कि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता के जीवनकाल में उनकी अवज्ञा करे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, वह उनके कर्ज़ चुका दे और उनके लिए क्षमा माँग ले, और अल्लाह उसे अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने वाला समझे।
उसुल अल-काफ़ी, भाग 2, पेज 163
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