हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, साइक्लोजिस्ट हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली फतेमीपुर ने कहा कि माता-पिता के प्रशिक्षण व्यवहार में पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन वर्तमान युग में आर्थिक और दैनिक समस्याओं के कारण अधिकांश पिता अपनी बेटियों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते हैं।।
उन्होंने क़ुम अल-मुक़द्देसा में बाकिर अल-उलूम संस्थान में आयोजित सेमिनार "पिता की करुणा की छाया में भविष्य साज़ बेटियां" को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने माता-पिता विशेषकर पिता-बेटी के रिश्ते के महत्व और प्रशिक्षण के सिद्धांतों पर प्रकाश डाला।
पिता की शैक्षिक भूमिका महत्वपूर्ण है
हुज्जतुल इस्लाम फातमीपुर ने कहा कि धार्मिक शिक्षाओं के अनुसार, बच्चों की शिक्षा में पिता की भूमिका मौलिक है, लेकिन आजकल अधिकांश माता-पिता बच्चों की शिक्षा का जिम्मा मां को सौंपते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बेटियों के साथ बातचीत में सौम्यता, सहनशीलता और धैर्य का पालन किया जाना चाहिए।
समय की कमी और अन्य मुद्दे
उन्होंने कहा कि माता-पिता के पास अपनी बेटियों के साथ बाच चीत का समय न होना एक बड़ी समस्या है। इसके अलावा, माता-पिता अपने बच्चों को अपनी आंखों से देखते हैं और उनकी जरूरतों और भावनाओं को नहीं समझते हैं, जिससे रिश्ते में समस्याएं पैदा होती हैं।
ध्यान और समर्थन की जरूरत है
हुज्जतुल इस्लाम फ़ातेमीपुर ने बताया कि बच्चों की बुनियादी जरूरतों में निकटता, समर्थन, स्वीकृति और प्रशंसा शामिल है। यदि ये ज़रूरतें पूरी नहीं की गईं तो बच्चों के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि बेटियों के साथ समय बिताने के लिए ऐसी गतिविधियों का आयोजन करना चाहिए जिसमें केवल पिता और बेटी ही शामिल हों।
स्वायत्तता का महत्व
उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को स्वतंत्रता का अनुभव करने और गलतियों से सीखने की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन माता-पिता को सावधान रहना चाहिए कि ये अनुभव हानिकारक न हों।
उन्होंने माता-पिता को सलाह दी कि वे अपनी बेटियों को हर समय उनके समर्थन का आश्वासन दें, क्योंकि अगर बेटियों को लगता है कि उनके पिता सहायक नहीं हैं तो उन्हें मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।