हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ख़ुरासान रिज़वी प्रांत में वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि और इमाम-ए-जुमा मशहद ने कहा,दुश्मन की नफ़रत धर्म और ज्ञान के साथ है क्योंकि ये दोनों ही ईरान की ताक़त और स्वायत्तता की नींव हैं।
उन्होंने रहबर-ए-मोअज़्ज़म के इस कथन को याद दिलाया,दुश्मन धर्म और ज्ञान का विरोधी है यह कोई सामान्य बयान नहीं, बल्कि राष्ट्र के लिए दुश्मन को पहचानने और दृढ़ रहने का मार्गदर्शक संदेश है।
धर्म और ज्ञान: ईरान की शक्ति के स्तंभ आयतुल्लाह अलमुलहोदा ने कहा,धर्म, साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का स्तंभ है।
ज्ञान, राष्ट्र की आत्मनिर्भरता का साधन है।
उन्होंने चेतावनी दी,अगर धार्मिक संस्कारों में ढील दी गई या बुराइयों को नज़रअंदाज़ किया गया, तो यह दुश्मन के एजेंडे को आगे बढ़ाने जैसा होगा।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा,मीडिया को आरामतलबी के बजाय वैज्ञानिक प्रगति, उत्पादन और जिहाद-ए-तब्यीन पर ध्यान देना चाहिए, ताकि इस्लामी राष्ट्र सम्मान और स्वतंत्रता के मार्ग पर चलता रहे।
ख़ुत्बे की शुरुआत में उन्होंने इमाम हसन मुजतबा (अ.स.) की शहादत का उल्लेख करते हुए कहा,इमाम हसन (अ.स.) की सुलह एक हिकमतभरा फ़ैसला था जिसने अशूराई कर्बला की बेदारी की नींव रखी।इमाम ने उम्मत को जगाया और बाहरी सुलह के ज़रिए असली दुश्मन को उजागर किया।
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