हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , 27 सितंबर 2025 को मस्जिद ए आज़म क़ुम में फ़िक़्ह के पाठ के समापन पर आयतुल्लाहिल उज़्मा जावादी आमोली ने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.स. के कथन «لَا یَمْنَعُ الضَّیْمَ الذَّلِیلُ» ("एक अपमानित व्यक्ति अत्याचार को नहीं रोक सकता") के प्रकाश में कहा कि जिस कौम को यह यकीन हो कि दुनिया की ज़िंदगी सिर्फ कुछ सांसों का मेहमान है और शहादत 'रूह और रेहान' है वह कभी भी धमकियों और दबाव से डरती नहीं है।
इस्लाम का यही संदेश है कि इज्ज़त और प्रतिरोध के साथ जिया जाए। इमाम अली अ.स.ने फरमाया,पत्थर जहां से आया है, वहीं वापस फेंको मर्द बनो और मर्दाना जीवन बसर करो।
उन्होंने कहा कि मासूम इमामों अ.स. की रिवायतों के अनुसार, इंसान अपनी इज्ज़त और आबरू का मालिक ए मुतलक नहीं है, बल्कि अल्लाह की अमानतदार है। ठीक उसी तरह जैसे एक औरत की इज़्ज़त और नामूस अल्लाह की अमानत है। इसलिए किसी भी शख्स को यह हक नहीं है कि वह अपनी या किसी मोमिन की आबरू को जिल्लत के साथ बर्बाद करे।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जावादी आमोली ने इमाम-ए-मासूम अ.स. का फरमान बयान किया कि: «إنَّ اللّه فَوَّضَ إلَی المُؤمِنِ اُمورَهُ کُلَّها، و لَم یُفَوِّضْ إلَیهِ أن یَکونَ ذَلیلاً»
यानी अल्लाह ने मोमिन के सारे मामले उसके हवाले कर दिए हैं मगर उसे यह अधिकार कभी नहीं दिया कि वह जिल्लत को बर्दाश्त करे। इसी तरह एक कौम को भी यह हक नहीं है कि वह खुद को ज़लील करे और अपनी सामूहिक इज्ज़त को पामाल करे।
आखिर में उन्होंने दुआ की कि खुदावंद ए मुतअ़ाल अहल-ए-बैत (अ.स.) की आबरू के सदके इस मुल्क को ज़हूर-ए-इमाम-ए-ज़माना अ.ज.तक हर किस्म के खतरों से महफूज़ रखे।
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