बुधवार 15 जनवरी 2025 - 08:57
मौला अली (अ) की मोहब्बत, मोमिन के आमालनामे का शीर्षक है

हौज़ा: जो चीज़ मोमिन के आमालनामे का शीर्षक और पहचान होनी चाहिए, वह हज़रत अली (अ) से मोहब्बत है। इसलिए सबसे अहम बात और मुद्दा यह है कि एक मोमिन मौला अली (अ) से अपनी मोहब्बत का इज़हार करे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार: आज हज़रत अली (अ) के शुभ जन्मदिवस पर आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने क़ुम में अपने कार्यालय में आयोजित दीनी छात्रो को अम्मामा पहनाने की रस्म के दौरान अहलेबैत (अ) की हदीसों का हवाला देते हुए कहा कि हज़रत अली (अ) से मोहब्बत, मोमिन के आमालनामे का सबसे जरूरी शीर्षक है।

आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने मोहब्बत का अर्थ बताते हुए कहा कि "मोहब्बत का मतलब केवल इश्क और लगाव नहीं है, बल्कि यह अमल के साथ होनी चाहिए।" कुरआन में अल्लाह फरमाता है: "ऐ लोगों, अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो, तो मेरे पैगंबर की पैरवी करो।" मोहब्बत की शर्त है कि इंसान अमल और व्यवहार में अल्लाह और उसके पैगंबर (स) की आज्ञा का पालन करे।

उन्होंने कहा: "जो लोग हज़रत अली (अ) की पैरवी करते हैं, उनके आमालनामे का शीर्षक कयामत के दिन यह होगा कि उन्होंने न सिर्फ ज़बान से, बल्कि अमल और व्यवहार से भी अपनी मोहब्बत का इज़हार किया। इसलिए, एक मोमिन के आमालनामे का आधार हज़रत अली (अ) की आज्ञापालन और उनसे मोहब्बत का इज़हार होना चाहिए, जो कयामत में निजात का ज़रिया बनेगा।"

आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने अम्मामा पहनने वाले छात्रों से कहा: "आज आपने जब अम्मामा पहना है, आपकी जिंदगी का एक नया दौर शुरू हुआ है। अब आपकी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। आपको न सिर्फ अपने परिवार और समाज के प्रति, बल्कि उम्मत के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाना होगा।"

उन्होंने कहा: "अम्मामा पहनने के बाद आपका आचरण और व्यवहार बदलना चाहिए। यह केवल सादे लिबास, दिशदाशा और अम्मामा पहनने की बात नहीं है, बल्कि यह इमाम-ए-ज़माना (अ) और इमाम जाफर सादिक़ (अ) की खिदमत में दाखिल होने का एक बड़ा मकाम है।

आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने कहा: अगर आप तुलाब की मर्यादाओं का पालन करेंगे, तो यह एक सम्मानित पद है। लेकिन अगर मर्यादाओं का पालन नहीं होगा, तो यह केवल एक पोशाक पहनने तक सीमित रह जाएगा। मेरी दुआ है कि आप अपनी जिम्मेदारियां पूरी करें और आपका आचरण अमल और हकीकत में दिखाई दे।

इसी तरह के कार्यक्रम आयतुल्लाह नूरी हमदानी, आयतुल्लाह जवादी आमोली, और आयतुल्लाह शुबैरी ज़ंजानी के कार्यालयों में भी आयोजित किए गए। इन महफिलों में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।

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