हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मजमय ए उलेमा व खोतबा हैदराबाद दकन का आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली सिस्तानी की पत्नी के निधन पर गहरे दुःख और शोक का इज़हार करते हुए एक शोक संदेश जारी किया है। जिसका पूरा मतन इस तरह है:
بسم الله الرحمٰن الرحیم
اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّا اِلَیْہِ رَاجِعُون
हमें अत्यंत दुःख और गम के साथ यह दुःखद खबर मिली है कि सम्माननीय मरजा-ए-तकलीद हज़रत आयतुल्लाह अल-उज़मा सैय्यद अली अल-हुसैनी सिस्तानी दाम जिल्लुहुल वारिफ की पवित्र पत्नी इस दुनिया से रुखसत हो गई हैं और अपने रब्ब-ए-करीम की रहमतों के जवार में पहुँच गई हैं।
मरहूमा अत्यंत बा-फज़ीलत, नेक सीरत, आबिदा जाहिदा और खादिमा-ए-दीन थीं। उनका पूरा जीवन इखलास, तक्वा, बंदगी-ओ-इबादत और खिदमत-ए-इस्लाम से भरा रहा। बेशक उनका इंतकाल सिर्फ मरजा-ए-आली-कद्र के खानदान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमा, हौजात-ए-इल्मिया और मुहिब्बीन-ए-अहलेबैत (अ.स.) के लिए एक बहुत बड़ा और ना-काबिल-ए-तलाफी सानिहा है।
खुदावंद-ए-मुतआल कुरआन करीम में इरशाद फरमाता है: "كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ (हर जान को मौत का मज़ा चखना है।)
मगर वह नफूस-ए-कुदसिया जो उम्र भर तक्वा, इबादत और विलायत की राह पर गामज़न रहीं, उनकी रिहलत दरअसल फना नहीं बल्कि एक अब्दी हयात यानी क़ुर्ब-ए-मासूमीन (अ.स.) और अ'ला-ए-इल्लियीन की तरफ हिजरत है।
हम बारगाह-ए-रब्ब-ए-ज़ुलजलाल में दस्त-ब-दुआ हैं कि की अल्लाह ताला मरहूमा की मफरत करें उनको जवारे अहले बैत अलैहिस्सलाम ने जगह इनायत फरमाए
मजमा-ए-उलेमा व खुतबा, हैदराबाद दकन
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