हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, लगभग एक सदी से फ़िलिस्तीनी क़ौम गरीबी, जबरन विस्थापन, हत्या, कैद और अत्याचार का सामना कर रही है। हाल के दशकों में कब्जा करने वाली ताकत और उसके समर्थकों ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को "सामान्यीकरण" और आदत के जरिए पृष्ठभूमि में धकेलने की कोशिश की, लेकिन अल-अक्सा तूफान ने इस माहौल को बदल दिया और फ़िलिस्तीनी मांगों को फिर से अंतर्राष्ट्रीय ध्यान में ला दिया।
शहीद यह्या सिनवार के भाषणों (2018 से 2023 तक) ने साफ रास्ता दिखाया: या तो क़ब्जा करने वाली राज्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करे, क़ब्जा किए गए क्षेत्रों से बाहर निकले, कैदियों को रिहा करे और 1967 की सीमाओं के अनुसार फ़िलिस्तीनी राज्य का रास्ता आसान करे, या फिर प्रतिरोधक ताकतों के जरिए उसे अकेला और अस्थिर कर दिया जाए। डॉ. मुनइम के मुताबिक, ग़ज़्ज़ा के लोगों ने इज़्ज़त के साथ जिंदगी को तरजीह दी और "साजिश" के तमाम तरीकों को ठुकरा दिया, क्योंकि वे अपनी पवित्र चीजों और सम्मान से समझौता नहीं करना चाहते थे।
डॉ. मुनइम के अनुसार, अल-अक्सा तूफ़ान ने इस झूठे दावे को बेनकाब किया कि काबिज दुश्मन "अजेय" है; और ग़ज़्ज़ा की मज़लूमियत ने दो साल में वैश्विक चेतना में जगह बना ली, जहां पहले उन्हें भुला दिया गया था। अंत में वे कहते हैं कि 7 अक्टूबर उनका फर्ज था — एक शरई और इंसानी क़दम था — और यह दिन फ़िलिस्तीन के इतिहास में आज़ादी तक के सफ़र में एक अहम मील के पत्थर के तौर पर याद किया जाएगा।
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