रविवार 19 अक्तूबर 2025 - 12:04
इराक में दो दशकों से ज़ाहरी लोकतंत्र चल रहा है प्रतिनिधि जनता के वकील नहीं बल्कि शासक बन गए हैं

हौज़ा / बगदाद के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसवी ने जुमे की नमाज़ के खुत्बे में इराक की राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि पिछले बाईस वर्षों से देश में लोकतंत्र की सिर्फ एक ज़ाहरी अवधारणा बची है जबकि जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त हो चुका है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , बगदाद के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैय्यद यासीन मूसवी ने जुमे की नमाज़ के खुत्बे में इराक की राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि पिछले बाईस वर्षों से देश में लोकतंत्र की सिर्फ एक दिखावटी अवधारणा बची है जबकि जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व समाप्त हो चुका है।

आयतुल्लाह सैय्यद यासीन मूसवी ने अपने संबोधन में कहा कि इराक आज एक नए चुनावी दौर की दहलीज पर खड़ा है लेकिन असली सवाल यह है कि जनता किसे चुन रही है और क्यों? उन्होंने जोर देकर कहा कि वोट देना वास्तव में किसी व्यक्ति को "वकील" बनाने के बराबर है न कि उसे शासक मानने के।

उन्होंने कहा कि पिछले 20 वर्षों के चुनावी अनुभवों ने स्पष्ट कर दिया है कि निर्णय जनमत से नहीं बल्कि पार्टी के हितों और पर्दे के पीछे हुए समझौतों से तय होते हैं।

उनके अनुसार,क्या कभी जनता से पूछा गया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या मंत्रियों के पदों पर किसे नियुक्त किया जाए? निर्णय हमेशा पार्टी नेताओं और गुटीय ताकतों ने लिए न कि जनता ने।

आयतुल्लाह मूसवी ने इस व्यवस्था को लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही करार देते हुए कहा कि इराक ने इन वर्षों में तरह-तरह की सरकारें देखीं लेकिन इन सभी में जनता की इच्छा की कमी एक सामान्य बात रही।

उन्होंने कहा कि आगामी चुनावों में जनता को जागरूकता के साथ वोट डालना चाहिए और उम्मीदवारों से स्पष्ट शर्तों के तहत जवाबदेही तय करनी चाहिए ताकि वित्तीय, नैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाया जा सके।

आयतुल्लाह मूसवी ने यह भी याद दिलाया कि यदि संविधान को ठीक ढंग से लागू किया जाता तो इराक की 80 से 85 प्रतिशत समस्याएं हल हो जातीं।

अंत में, बगदाद के इमाम ए जुमआ ने कहा कि वास्तविक लोकतंत्र तब स्थापित हो सकता है जब प्रतिनिधि जनता के वकील बनकर उनकी समस्याओं जैसे रोजगार, बिजली, पानी, कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे के लिए ठोस और पारदर्शी योजनाएं पेश करें, न कि सिर्फ "बदलाव" जैसे खोखले नारों पर निर्भर रहें।

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