बुधवार 19 नवंबर 2025 - 14:33
जुमआ की नमाज़ के खुतबों में जनता के मुद्दों और देश की स्थितियों का ज़रूर ज़िक्र होना चाहिए

हौज़ा / आयतुल्लाहिल उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी ने कहा है कि जुमआ की नमाज़ के खुत्बे सामाजिक, नैतिक, क्रांतिकारी और जनता के मुद्दों को बयान करने के लिए बेहद प्रभावी ज़रिया हैं, और नाइंसाफियों के बारे में सही समय पर चेतावनी समाज के एक बड़े हिस्से पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाहिल उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी ने कहा है कि जुमे की नमाज़ के खुतबे सामाजिक, नैतिक, क्रांतिकारी और जनता के मुद्दों को बयान करने के लिए बेहद प्रभावी ज़रिया हैं, और नाइंसाफियों के बारे में सही समय पर चेतावनी समाज के एक बड़े हिस्से पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।

मशहद मुक़द्दस के इमाम-ए-जुमआ आयतुल्लाह अलमुलहोदा और हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हाज़ अली अकबरी, जो इमाम-ए-जुमा की पॉलिसी निर्माण परिषद के प्रमुख हैं, ने पिछले दिन आयतुल्लाह उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी से मुलाकात की। इस मौके पर आयतुल्लाह मक़ारिम ने जुमे की नमाज़ और मस्जिदों की मौजूदा स्थिति से संबंधित पेश की गई रिपोर्ट को उम्मीद बढ़ाने वाली बताया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा मक़ारिम शीराज़ी ने इस मुलाकात में नमाज़-ए-जुमआ के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि इमाम-ए-जुमा को चाहिए कि वे अपने खुतबों में मौजूदा हालात, सामाजिक ज़िम्मेदारियों, धार्मिक कर्तव्यों और हर इलाके की जनता की समझ के मुताबिक भाषा को ध्यान में रखें।

उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति की बरकत से जुमे की नमाज़ का दोबारा पुनरुद्धार हुआ, क्योंकि क्रांति से पहले यह संस्था कमज़ोर और गैर-प्रभावी थी, लेकिन क्रांति के बाद जुमआ की नमाज़ एक व्यापक और प्रभावशाली धार्मिक व सामाजिक केंद्र का रूप ले गई।

आयतुल्लाह मक़ारिम शीराज़ी ने आगे कहा कि खुतबों को जनता के मुद्दों, नैतिकता, सामाजिक मामलों और नाइंसाफियों पर रोशनी डालने का ज़रिया बनाया जाए, क्योंकि यह बयान समाज की सुधार में अहम भूमिका अदा करता हैं।

उन्होंने इमाम-ए-जुमआ की संयुक्त बैठक और अनुभवों के आदान-प्रदान की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया, और कहा कि इस तरह की बैठकें जुमे की नमाज़ के सिस्टम को ज़्यादा प्रभावी और कारगर बनाने में बुनियादी भूमिका अदा करती हैं।

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