शनिवार 25 अक्तूबर 2025 - 18:32
क़ुरआन, हज़रत फ़ातमा ज़हेरा स.अ.की पहचान का मूल स्रोत है।उस्ताद हौज़ा ए इल्मिया कुम

हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रूहुल्लाह नमाज़ी ने कहा कि क़ुरआन करीम हज़रत ज़हरा स.अ. की महान शख्सियत को पहचानने का सबसे अहम ज़रिया है, क्योंकि उसकी सूरतों और आयतों में उनके ऊँचे दर्जे और रफ़अत ए मक़ाम के साफ़ इशारे मौजूद हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , उस्ताद रूहुल्लाह नमाज़ी ने कहा कि हज़रत फ़ातेमा स.अ. रसूल-ए-अकरम स.अ.व. की राह को आगे बढ़ाने वाली हस्ती हैं, और जो इल्म पैग़म्बर स.अ.व. के पास था, वही इल्म हज़रत ज़हरा स.अ. को भी अता किया गया। उनके मुताबिक, यही वजह है कि पैग़म्बर-ए-अकरम स.अ.व.के विसाल के बाद भी हज़रत ज़हरा स.अ.का फ़रिश्ता-ए-वही जिब्रईल अमीन से रिश्ता कायम रहा, और यही उनकी अज़मत की निशानी है।

उस्ताद नमाज़ी ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि क़ुरआन करीम में अहलुलबैत अ.स. के नाम स्पष्ट रूप से ज़िक्र नहीं किए गए लेकिन यह हिकमत के तहत था ताकि क़ुरआन में कोई तहरीफ़ न हो सके और इमाम अली (अ.स.) से संबंधित आयतें सुरक्षित रहें।

उन्होंने बताया कि सूरह कौसर हज़रत ज़हरा (स.अ.) की शान में नाज़िल हुआ। जब आस बिन वाइल ने रसूल-ए-अकरम स.अ.व.को “अबतर कहा, तो अल्लाह ने जवाब में फरमाया,
“إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ
यानी, “निश्चय ही हमने तुम्हें कौसर प्रदान की है।
हुज्जतुल इस्लाम नमाज़ी के अनुसार, यह आयत इस बात की दलील है कि नबी स.अ.व.की नस्ल हज़रत ज़हरा (स.अ.) के ज़रिए आगे बढ़ी और विरोधी खुद गुमनाम रह गए।

उन्होंने आगे कहा कि सूरह हल आत़ा भी हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) और अहलुलबैत (अ.स.) के ईसार (कुर्बानी) और ख़ुलूस की बेहतरीन मिसाल है। क़ुरआन में उनका वह वाक़या यूँ बयान हुआ है:
وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا...
वे अल्लाह की मोहब्बत में मिस्कीन, यतीम और कैदी को खाना खिलाते हैं, और किसी बदले या शुक्रिये की चाह नहीं रखते।

हुज्जतुल इस्लाम नमाज़ी ने कहा कि आयत-ए-मुबाहला भी हज़रत ज़हरा (स.अ.) की अज़मत को उजागर करती है। जब नसरानी-ए-नजरान से मुबाहला का समय आया, तो रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.व.) अपने साथ सिर्फ़ अली (अ.स.), फ़ातिमा (स.अ.), हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) को लेकर आए।

यह मंज़र देखकर नसरानियों के दिल कांप उठे और उन्होंने मुबाहला से इनकार कर सुलह को मंज़ूर किया। यह साबित करता है कि रसूल (स.अ.व.) ने अपने अहलुलबैत (अ.स.) को हक़ की गवाही के तौर पर पेश किया।

आख़िर में उन्होंने कहा कि क़ुरआन करीम हज़रत ज़हरा (स.अ.) की पहचान का सबसे भरोसेमंद स्रोत है, क्योंकि उसकी आयतों में उनकी सूरत, ईसार, मक़ाम और रूहानी अज़मत के निशान साफ़ तौर पर झलकते हैं।

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