हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, अलीगढ़,में मजलिस ए ख़म्सा का आयोजन आय्यामे फातेमिया कि मुनासिबत से बारगाह-ए-हुसैनी, ज़हरा बाग़ में आयोजित की गई।
यह कार्यक्रम आय्यामे फातेमिया कमेटी मोमिनीन-ए-हिंद की ओर से अकीदत और एहतराम के साथ आयोजित कि गई इन मजलिसों से हाजी मौलाना सैयद ज़ाहिद हुसैन रिज़वी लखनवी ने खिताब किया।
मजलिस का आग़ाज़ तिलावत-ए-क़ुरान-ए-पाक से हुआ इसके बाद हर रोज़ अलग अलग शायरों ने बारगाह ए सैय्यदा फ़ातिमा ज़हरा स.ल. में नज़्र-ए-अक़ीदत पेश की और सोज़ख़्वानी की गई।
मौलाना सैयद ज़ाहिद हुसैन रिज़वी ने अपने खिताब में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.ल. बिन्ते हज़रत मोहम्मद मुस्तफा स की जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं पर रौशनी डाली उन्होंने उनकी विलादत, तरबियत, ईसमत, निज़ाम-ए-अमल, पर्दा, जिहाद, उमूर-ए-ख़ानदारी, शादीशुदा ज़िंदगी, इबादत, अल्लाह के नज़दीक उनकी इज़्ज़त, और उनकी फज़ीलत और अजमत को बयान किया।आयत-ए-तथ्हीर," "आयत-ए-ज़ुलक़र्बा," और उनकी सब्र, ईसार और इबादत पर रोशनी डाली।
मौलाना ने बाग़े फ़दक पर दावे उसके सबूत, हिबा की तस्दीक और खिलाफ़त के दरबार में बेटी-ए-रसूल स.ल. की पेशी जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की।
उन्होंने मामले-ए-फदक में क़ुरान और हदीस की अहमियत और रसूल स के अहकामात पर ध्यान दिलाया साथ ही उन्होंने सैय्यदा के खुत्बा-ए-फ़दक और उसकी मसलहत पर तफ्सील से बात की।
उन्होंने कहा कि सैय्यदा फ़ातिमा स.ल.की 18 साल की ज़िंदगी इंसानियत के लिए एक नमूना-ए-अमल" है। वे अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.ल. की शरीक हयात और हसनैन करीमैन की वालिदा थीं उन्होंने रसूल-ए-क़ायनात स.ल. के विसाल के कुछ ही दिनों बाद शहादत पाई।
मौलाना सैयद ज़ाहिद रिज़वी ने अंत: में हज़रत फ़ातिमा स.ल. के मसयब बयान किया इस मौके पर मौजूद मोमनिन की आंखों से आंसू निकल पड़े