शनिवार 16 नवंबर 2024 - 20:58
सांस्कृतिक आक्रमण के दौर में फातमी संस्कृति की तब्लीग़ समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। मौलाना मसरूर अब्बास अंसारी

हौज़ा / हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की याद में दीवर प्रेहासपोरा कश्मीर में एक मजलिस ए अज़ा का आयोजन किया गया जिसमें मौलाना मसरूर अब्बास अंसारी ने खिताब किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, अय्याम ए फातेमियह स. की शुरुआत के मौके पर जम्मू कश्मीर इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन के तत्वावधान में मजलिस-ए-अज़ा का सिलसिला शुरू हो गया है।

दुख़्तर-ए-रसूल स.ल. शहज़ादी-ए-कौनैन हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) की शहादत के दिनों की याद में आज सबसे बड़ी मजलिस-ए-अज़ा दीवर प्रेहासपोरा पट्टन में आयोजित हुई।

जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने भाग लेकर सिद्दीक़ा कुबरा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को श्रद्धांजलि अर्पित की।

मर्कज़ी मजलिस-ए-अज़ा में तिलावत-ए-क़ुरआन के बाद पारंपरिक अंदाज़ में मर्सिया ख्वानी नोहा पढ़ाई और सीना ज़नी की गई।

इस मौके पर इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष मौलाना मसरूर अब्बास अंसारी ने मजलिस को संबोधित किया।

मौलाना ने कहा कि ख़ातून-ए-जन्नत सैयदा फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अपने वालिद मोहतरम हज़रत रसूल-ए-अकरम स.ल. की सभी खूबियों की हू-ब-हू तस्वीर हैं। आपने अपने पिता के ज्ञान, धैर्य, आचरण और ईमान को दूसरों तक पहुंचाया, ताकि इस्लाम की सच्चाई जीवित और स्थायी रहे।

उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की पवित्र ज़िंदगी हर युग में पूरी मानवता, विशेष रूप से महिलाओं के लिए जीवन का आदर्श है, बशर्ते कि उनकी ज़िंदगी के शैक्षिक, वैवाहिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं का गहराई से अध्ययन किया जाए।

मौलाना मसरूर अब्बास अंसारी ने कहा कि सांस्कृतिक आक्रमण ने हमारी शुद्ध सामाजिक मूल्यों को बिगाड़ दिया है और इस आक्रमण ने हमारे युवा वर्ग को मानसिक और वैचारिक जड़ता का शिकार बना दिया है।

असभ्यता, अनुशासनहीनता, बेपरवाही, अश्लीलता और नशे जैसी बुराइयों के कारण हमारा समाज कलंकित हो गया है। अफसोस की बात यह है कि हमारी युवा लड़कियां अब इन बुराइयों में बराबरी की भागीदार बन रही हैं।

मौलाना ने सांस्कृतिक आक्रमण के बीच फातमी संस्कृति के प्रसार पर जोर देते हुए कहा कि अगर समाज को सांस्कृतिक आक्रमण से मुक्त कराना है, तो दरगाहों, इमामबाड़ों, मस्जिदों और मिम्बर व मेहराब से फातमी संस्कृति की गूंज उठनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि सैयदा की सीरत में ही उम्मत की सभी समस्याओं का समाधान निहित है इसलिए पूरी उम्मत, विशेष रूप से महिलाओं को सैयदा स.ल की सीरत पर पूरी तरह अमल करना चाहिए।

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