۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
ولادت

हौज़ा/रजब के महीने को यह फ़ज़ीलत हासिल है कि इस महीने में इस्लाम को अपना सबसे पहला रक्षक (मुहाफ़िज़) मिला, 13 रजब, सन 30 आमुलफ़ील को उस महान हस्ती ने इस दुनिया में आंखें खोलीं जिसने अपनी क़ुर्बानियों से क़यामत तक के लिए अल्लाह के दीन और उसके क़ानून को हमेशा के लिए बचा लिया। इस्लाम के पास चार ऐसे बड़े ख़ज़ाने थे जिनकी हिफ़ाज़त और जिनको बचाना बेहद ज़रूरी था और वह चार तौहीद, नबुव्वत व रिसालत, क़ुरआन और काबा थे, इस्लाम को एक ऐसे बचाने वाले की ज़रूरत थी जो इन चारों ख़ज़ानों को हर तरह के ज़ाहिरी और छिपे हुए ख़तरों से बचाए और इन ख़ज़ानों के चारों तरफ़ ऐसी मज़बूत दीवार खींच दे जिससे दुश्मन अपनी लाख कोशिशों और साज़िशों के बावजूद उसमें सेंध न लगा सके।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,रजब के महीने को यह फ़ज़ीलत हासिल है कि इस महीने में इस्लाम को अपना सबसे पहला रक्षक (मुहाफ़िज़) मिला, 13 रजब, सन 30 आमुलफ़ील को उस महान हस्ती ने इस दुनिया में आंखें खोलीं जिसने अपनी क़ुर्बानियों से क़यामत तक के लिए अल्लाह के दीन और उसके क़ानून को हमेशा के लिए बचा लिया।

इस्लाम के पास चार ऐसे बड़े ख़ज़ाने थे जिनकी हिफ़ाज़त और जिनको बचाना बेहद ज़रूरी था और वह चार तौहीद, नबुव्वत व रिसालत, क़ुरआन और काबा थे, इस्लाम को एक ऐसे बचाने वाले की ज़रूरत थी जो इन चारों ख़ज़ानों को हर तरह के ज़ाहिरी और छिपे हुए ख़तरों से बचाए और इन ख़ज़ानों के चारों तरफ़ ऐसी मज़बूत दीवार खींच दे जिससे दुश्मन अपनी लाख कोशिशों और साज़िशों के बावजूद उसमें सेंध न लगा सके।

इस मुबारक महीने में अल्लाह ने इन चारों ख़ज़ानों की रक्षा का ऐसी शख़्सियत द्वारा बंदोबस्त किया जो इल्म के एतबार से उस आयत का मिसदाक़ जिसमें कहा गया कि उसके पास अल्लाह की किताब का पूरा इल्म है और जिसे इल्म के शहर का दरवाज़ा कहा गया, जिस्मानी ताक़त के हिसाब से "ला फ़ता" के मिसदाक़ और अमल के मैदान में तौहीद और नबुव्वत के साथ काबा और क़ुरआन को इस तरह बचाया कि काबे में रखे हुए बुतों को तोड़कर अल्लाह की तौहीद को बचाया।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की गोद में उनकी रिसालत की गवाही देकर रिसालत और नबुव्वत को बचाया, ख़ुद काबे में आपकी विलादत काबे की अज़मत और महानता को बाक़ी रखने का कारण बनी, पैदा होते ही क़ुरआन के नाज़िल होने से पहले ही क़ुरआन की तिलावत करके क़ुरआन की सच्चाई को पूरी दुनिया के सामने ज़ाहिर किया तो बड़े होकर क़ुरआन को जमा करने का बे मिसाल काम अंजाम देकर क़ुरआन को हमेशा हमेशा के लिए तहरीफ़ (फेरबदल) से बचा लिया।

अगर आप इन चारों के बाक़ी रहने के राज़ पर ध्यान दें तो आपको तौहीद, नबुव्वत, क़ुरआन और काबा चारों की बुनियादों में इमाम अली अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी दिखाई देती है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता है और शायद इस्लाम के इन चारों ख़ज़ानों को बचाने में आपकी क़ुर्बानी को देखकर अल्लाह ने आपका नाम अली (अ) रखा, जैसाकि रिवायत में मिलता है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने जब आपके नाम को अल्लाह के नाम पर अली (अ) रखा तो हज़रत अबू तालिब और हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद ने पैग़म्बरे अकरम (स) से कहा कि हमने ग़ैब से इसी नाम को सुना था।
 
आपके मशहूर लक़ब अमीरुल मोमिनीन, मुरतज़ा, असदुल्लाह, यदुल्लाह, नफ़सुल्लाह, हैदर, कर्रार, नफ़्से रसूल और साक़ी-ए-कौसर हैं जिनको अगर समेटकर एक जगह जमा किया जाए तो अपने आप मुंह से अली (अ) ही निकलता है। आप हाश्मी घराने के वह पहले बेटे हैं जिनके वालिद और वालिदा दोनों हाश्मी हैं, आपके वालिद अबू तालिब इब्ने अब्दुल मुत्तलिब इब्ने हाशिम हैं और वालिदा फ़ातिमा बिन्ते असद इब्ने हाशिम हैं।

इस बात को सभी इतिहासकारों ने क़ुबूल किया है कि हाश्मी घराना क़ुरैश में और क़ुरैश पूरे अरब में अख़लाक़ और नैतिकता में मशहूर था, यह घराना बहादुरी, शराफ़त और भी बहुतसारी अख़लाक़ी आदतों के लिए मशहूर था और यह सभी अख़लाक़ी सिफ़ात इमाम अली अलैहिस्सलाम में पूरी तरह से पाए जाते थे।
 
आपकी अज़मत और महानताओं की सबसे पहली गवाह आपकी अल्लाह के घर में विलादत है, इतिहासकारों ने लिखा है कि जब आपकी विलादत का समय क़रीब आया तो आप की मां हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद काबे के पास आईं और अपने जिस्म को उसकी दीवार से मस करके कहा: ख़ुदाया! मैं तुझ पर, तेरे नबी पर, तेरी भेजी हुई आसमानी किताबों पर और इस मकान को बनाने वाले अपने दादा इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बातों पर पूरा ईमान रखती हूं।

ख़ुदाया! तुझसे इस मकान को बनाने वाले की इज़्ज़त और मेरे पेट में मौजूद बच्चे के वसीले से दुआ करती हूं कि इस बच्चे की विलादत को आसान कर दे। अभी दुआ को ख़त्म हुए एक पल भी नहीं गुज़रा था कि काबे की दीवार फटी और दीवार में अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब और यज़ीद इब्ने तअफ़ की निगाहों के सामने दरवाज़ा बना और हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद काबे के अंदर चली गईं और फिर दीवार दोबारा वैसे ही जुड़ गई, हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद तीन दिन तक अल्लाह के घर की मेहमान रहीं और 13 रजब सन 30 आमुलफ़ील को अपनी गोद में इस्लाम की बुनियादों को बचाने वाले को लेकर बाहर आईं, दुनिया में जब तक अल्लाहो अकबर की आवाज़ें गूंजती रहेंगी तब तक यह दुनिया इमाम अली अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानियों को याद करती रहेगी।

अस्सलामु अलैका या अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .