हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने कहा कि अल्लाह तआला ने इंसान को सिर्फ सुनने और समझने का ही नहीं बल्कि देखने का भी मुकल्लफ़ बनाया है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हक़ीक़ी मआरिफ़त केवल पढ़ाई और बहस से नहीं, बल्कि दिल की आँख से प्राप्त होने वाली बसीरत से पैदा होता है।
आयतुल्लाह जवादी आमुली ने कहा कि क़ुरआन मजीद अदब की किताब है जो इंसान की इज़्ज़त और सम्मान का प्रतीक है ख़ुदा ने फ़रमाया है:
«وَاتَّبِعُوا مِلَّةَ أَبِیکُمْ إِبْرَاهِیمَ»
अर्थात् “तुम इब्राहीम खलील के औलाद हो, इसलिए अपनी इज़्ज़त और मर्यादा को पहचानो।
क़ुम की मस्जिद-ए-अज़म में दी गई दर्स-ए-अख़लाक़ में उन्होंने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.स.के कथन,
«مَا شَکَکْتُ فِی الْحَقِّ مُذْ أُرِیتُهُ»
की व्याख्या करते हुए कहा,
जब मुझे सत्य दिखा दिया गया, तो उसके बाद मुझे कभी शक नहीं हुआ।यह दर्शाता है कि वास्तविक ज्ञान केवल अध्ययन या बहस से नहीं, बल्कि “देखने” और शहूद से प्राप्त होता है और यह देखना बाहरी आँखों से नहीं, बल्कि दिल की आँखों से होता है।
उन्होंने आगे कहा कि इंसान के पास ज्ञान प्राप्त करने के दो मदरसें (विद्यालय) हैं,एक ज़ाहिरी जिससे वह शिक्षा और शोध के माध्यम से बाहरी ज्ञान प्राप्त करता है,और दूसरा बातिनी जो आत्मशुद्धि, पवित्रता और तक़्वा के माध्यम से सच्चे ज्ञान तक पहुँचाता है।बाहरी और आंतरिक ज्ञान का संयोजन ही पूर्ण ज्ञान है।
आयतुल्लाह जवादी आमोली ने स्पष्ट किया कि ज्ञान और अनुभव इंसान को फ़क़ीह या दानिशवर बना सकते हैं, लेकिन बातिनी मआरिफ़त ही इंसान को आरिफ़ और बीना बनाती है।
हालाँकि हर व्यक्ति को मलाकूत का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता, लेकिन ख़ुदा ने इसका दरवाज़ा सबके लिए खुला रखा है।
उन्होंने आयत शरीफ़ा
«وَکَذَٰلِکَ نُرِی إِبْرَاهِیمَ مَلَکُوتَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ»
के हवाले से कहा कि जैसे ख़ुदा ने हज़रत इब्राहीम अ.स.को आसमानों और ज़मीन के मलाकूत को दिखाया, उसी तरह हम सबको भी आमंत्रित किया है कि हम ब्रह्मांड के बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक सत्य पर नज़र डालें।यह दिव्य निमंत्रण इंसान के लिए सबसे बड़ी इज़्ज़त और सम्मान का प्रतीक है।
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