हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत अबू जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह और आपके वालिद ए माजिद हज़रत उस्मान बिन सईद रिज़वानुल्लाह तआला अलैह, हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और हज़रत वली-ए-अस्र अजलّल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ के नज़दीक भरोसेमंद और क़ाबिले एतिमाद थे, यहाँ तक कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने उनके बारे में फ़रमाया,यह जो भी हुक्म तुम लोगों तक पहुँचाएँ, वह मेरी तरफ़ से है, और जो कुछ कहें, वह मेरी ही बात है। उनकी बातों को सुनो और उनकी पेर'वी करो, क्योंकि वे मेरी नज़र में क़ाबिले एतिमाद (भरोसेमंद) और अमीन हैं।”
जब पहले ख़ास नायब जनाब उस्मान बिन सईद रिज़वानुल्लाह तआला अलैह की वफ़ात हुई, तो हज़रत इमाम ज़माना अज्जलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ ने जनाब मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह को एक ख़त लिखा: "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन, (हम) उसके हुक्म पर राज़ी और उसके फ़ैसले पर रज़ामंद हैं। तुम्हारे वालिद ने सआदतमंद ज़िंदगी गुज़ारी और नेक वफ़ात पाई, अल्लाह उन पर रहमत नाज़िल फ़रमाए। उनकी सआदत का यह कमाल है कि अल्लाह ने उन्हें तुम्हारे जैसा बेटा दिया जो उनके बाद उनका जानशीन है।"
हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की इस बा बर्कत तहरीर से यह वाज़ेह होता है कि जनाब मुहम्मद बिन उस्मान (र०अ०) का मक़ाम ओ मरतबा आपके नज़दीक बहुत बुलंद था और आप उनके लिए पूरी तरह भरोसेमंद थे।
जनाब अबू जाफ़र मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह ने अपने वालिद की वफ़ात के बाद लगभग 40 साल तक हज़रत वली-ए-अस्र अजलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ की ख़ास वकालत की ज़िम्मेदारियाँ बेहतरीन अन्दाज़ में अंजाम दीं।
अब्बासी हुक्मरान यह समझते थे कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का कोई जानशीन नहीं है, इसलिए आप और आपसे पहले आपके वालिद ने मुकम्मल तक़य्या अख़्तियार किया ताकि हुकूमत का ध्यान न जाए और शियों को कोई मुश्किल पेश न आए।
8 रबीउल-अव्वल 260 हिजरी को हमारे 11वें इमाम हज़रत हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई और हमारे मौला व आक़ा हज़रत वली-ए-अस्र अज्जलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ की इमामत का आगाज़ हुआ।लेकिन माहौल इतना पुर-आशोब था कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से लोगों की नज़रों से ओझल रहे, यानी ग़ैबत-ए-सुग़रा का आगाज़ हुआ।
अब्बासी हुकूमत पूरी कोशिश में थी कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम को शहीद कर दे, इसलिए इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बाद आपके अहलेबैत को बेहद सख़्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा।सरकारी जासूस और सिपाहियों की सख़्ती हमेशा अहल-ए-हरम के पीछे लगी रहती थी, और जब घर का ही कोई शख्स मुख़ालिफ़ हो तो बाहरी दुश्मन को ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं रहती।
हालात इतने कठिन थे कि ख़ुम्स लाने वाला शख्स बिना किसी लिखित चीज़ के जनाब मुहम्मद बिन उस्मान को देता, ताकि कोई तहरीर पकड़े जाने का सबब न बन सके।
जब अब्बासी हाकिम को उसके वज़ीर ने खबर दी कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बाद उनके बेटे ज़िंदा हैं और उन्होंने कुछ लोगों को अपना वकील बनाया है जो माल जमा करते हैं, तो हाकिम ने हुक्म दिया कि जासूस छोड़े जाएँ ताकि सबको गिरफ्तार किया जा सके।
इधर इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम ने अपने तमाम वकीलों को हुक्म दिया कि: "जब तक मेरा दोबारा हुक्म न पहुँच जाए, किसी से कोई पैसा न लें।"
एक जासूस ईमानदारी का नक़ाब पहनकर एक वकील के पास आया और कहा कि मुझे अपने मौला इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में कुछ माल भेजना है। वकील ने हुक्म-ए-इमाम के मुताबिक़ जवाब दिया कि: "मुझे इस बारे में कोई ख़बर नहीं है।"
इस तरह इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम ने दीन की हिफ़ाज़त भी की और मोमिनीन को भी सुरक्षित रखा।
इस पूरे वाक़ये से अंदाज़ा होता है कि इन चारो ख़ास नायबों ने कितने मुश्किल हालात में दीन की तबलीग़ और बक़ा की ज़िम्मेदारियाँ निभाईं। औऱ यह कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम को इन पर कितना भरोसा था, और ये अपने मौला के कितने फ़रामांबरदार थे कि उनके हर हुक्म को अपनी जान से ऊपर रखते और पूरी ज़िंदगी उसी इताअत में गुज़ार दी।
जनाब अबू जाफ़र मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह एक अज़ीम आलिम और फ़क़ीह थे। फिक़्ह में आपकी मशहूर किताब "किताबुल अशरिबा" है, जिसे आपकी वफ़ात के बाद आपकी बेटी उम्मे कुल्सूम (र०अ०) ने वसीयत के मुताबिक़ जनाब हुसैन बिन रूह रिज़वानुल्लाह तआला अलैह (तीसरे ख़ास नायब) को दी।दुआ-ए-समात, दुआ-ए-इफ्तिताह और ज़ियारत आले यासीन आप ही से र'वायत हैं।
जनाब अबू जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह की 29 जमादीुल अव्वल 305 हिजरी को बग़दाद इराक़ में वफ़ात हुई और वहीं दफ़न हुए।आपका मुक़द्दस रौज़ा आज भी आशिक़ाने अहले बैत अ०स० की ज़ियारतगाह है।
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