शनिवार 1 नवंबर 2025 - 23:29
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लिये आसमान से दस्तरख़्वान नाज़िल हुआ

हौज़ा / किताब कश्फ़ुल ग़ुम्मह में रिवायत नक़्ल हुई है।एक दिन अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम थोड़ी देर के लिये क़ैलूला (आराम) कर रहे थे। जब बेदार हुए तो भूख महसूस हुई और अपनी बीवी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से खाने का मुतालिबा किया। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया,ख़ुदा की क़सम! जिसने मेरे वालिद को नुबूवत और आपको वसी के लिये चुना है, आज हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं है जो आपकी ख़िदमत में पेश कर सकूँ। बल्कि दो दिन से मैंने ख़ुद भी कुछ नहीं खाया है, जो कुछ घर में था वह सब मैंने आप और बच्चों को दे दिया। अल्लाह ताला ने बीवी को आसमान से खाने का दस्तरखान नाजिल किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,किताब कश्फ़ुल ग़ुम्मह में रिवायत नक़्ल हुई है।एक दिन अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम थोड़ी देर के लिये क़ैलूला (आराम) कर रहे थे। जब बेदार हुए तो भूख महसूस हुई और अपनी बीवी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से खाने का मुतालिबा किया।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया,ख़ुदा की क़सम! जिसने मेरे वालिद को नुबूवत और आपको वसी के लिये चुना है, आज हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं है जो आपकी ख़िदमत में पेश कर सकूँ। बल्कि दो दिन से मैंने ख़ुद भी कुछ नहीं खाया है, जो कुछ घर में था वह सब मैंने आप और बच्चों को दे दिया।

अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: “ऐ फ़ातिमा! आप ने मुझे क्यों नहीं बताया ताकि मैं आप के लिये कुछ इंतेज़ाम करता?

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अर्ज़ किया: “ऐ अबुल हसन! मैं अपने परवरदिगार से शर्म करती हूँ कि आपसे वह चीज़ माँगूँ जो आपके लिये मुश्किल का सबब बने।
यह सुनकर अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ख़ुदा पर भरोसा करते हुए घर से निकले और एक दीनार क़र्ज़ लिया ता कि घरवालों के लिये कुछ ख़रीद सकें। वापस आते हुए देखा कि जनाब मेक़दाद रिज़वानुल्लाह अलैह धूप में परेशान बैठे हैं।

अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया,ऐ मेक़दाद! यह आप की कैसी हालत है?”
जनाब मेक़दाद ने अर्ज़ किया: “ऐ अमीरुल मोमिनीन! मुझसे मेरा हाल मत पूछिए।
इमाम अली अलैहिस्सलाम ने इसरार किया, “नहीं, बतायें क्या बात है?

जनाब मेक़दाद ने अर्ज़ किया,जब आप इसरार फ़रमा रहे हैं तो बताता हूँ ख़ुदा की क़सम! मेरी यह हालत फ़क़्र (गरीबी) और तंगी की वजह से है। मेरे घर वाले भूखे थे, उनके रोने की आवाज़ बर्दाश्त न हुई तो दिल ग़मगीन हो गया और घर से निकल आया।

यह सुनकर इमाम अली अलैहिस्सलाम की आँखों में आँसू आ गये। फ़रमाया,ख़ुदा की क़सम! यही हाल मेरा भी है। इसी वजह से मैं भी घर से निकला हूँ। मैंने एक दीनार क़र्ज़ लिया था, अब वह आप को देता हूँ, आप को खुद पर तरजीह देता हूँ।यह कहकर वह दीनार जनाब मेक़दाद को दे दिया और ख़ुद नमाज़ के लिये मस्जिद तशरीफ़ ले गये। नमाज़े ज़ुहर रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम की इक़्तिदा में अदा की और मस्जिद में ही रहे, यहाँ तक कि मग़रिब भी उन्हीं की इक़्तिदा में अदा की।

नमाज़ के बाद रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने फ़रमाया: “ऐ अली! क्या तुम चाहते हो कि आज की रात मैं तुम्हारा मेहमान बनूँ?”

अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम शर्म के सबब ख़ामोश रहे। रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम को वह'ई ए इलाही के ज़रिये मालूम था कि इमाम अली व हज़रत फ़ातिमा अलैहिमस्सलाम और उनके बच्चे भूखे हैं और मौला अली अलैहिस्सलाम ने क़र्ज़ लिया दीनार (पैसा) भी राहे खुदा में दे दिया है। इसलिये ख़ुदा ने हुक्म दिया था कि आज वह अली अलैहिस्सलाम के घर जायें।

रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने फ़रमाया: “ऐ अबुल हसन! क्यों नहीं कहते — नहीं, ताकि मैं वापस चला जाऊँ, या ‘हाँ’ ताकि तुम्हारे साथ चलूँ?इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया: “या रसूलल्लाह! खुशी के साथ तशरीफ़ लाइए, हम शौक़ से आपका इस्तेक़बाल करते हैं।”

चुनाँचे दोनों एक साथ घर पहुँचे। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा अपने मुसल्ले पर इबादत में मशग़ूल थीं। उनके पीछे एक प्याला रखा था जिसमें गर्म खाना था और उससे भाप उठ रही थी।

जब हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने बाबा की आवाज़ सुनी तो मुसल्ले से उठीं और सलाम किया।
रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने जवाब दिया, उनके सर पर दस्‍ते मुबारक फेरा और फ़रमाया: “बेटी! आज का दिन कैसा गुज़रा? ख़ुदा तुम पर रहमत करे।हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अर्ज़ किया: “अल्हम्दुलिल्लाह, बेहतर गुज़रा।” फिर आपने वह प्याला उठा कर रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम के सामने रख दिया।

अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब वह खाना देखा, जिसकी खुशबू से पूरा घर महक गया था, तो तअज्जुब किया और फ़रमाया: “ऐ फ़ातिमा! आप ने तो कहा था कि दो दिन से कुछ नहीं खाया है?

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने आसमान की तरफ़ नज़र उठाई और फ़रमाया: “अल्लाह बेहतर जानता है जो कुछ आसमान व ज़मीन में है, और वह जानता है कि मैंने सच कहा था।”

इमाम अली अलैहिस्सलाम ने पूछा: “तो यह खाना कहाँ से आया, कि ऐसा खाना न कभी देखा न इससे बेहतर खुशबू सूँघी?रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने इमाम अली अलैहिस्सलाम के कंधे पर हाथ रखा और फ़रमाया: “यह वही खाना है जो उस दीनार के बदले में आसमान से नाज़िल हुआ है जो तुमने राहे खुदा में दिया था, हालाँकि तुम ख़ुद भी उसके मोहताज (ज़रूरतमंद) थे।

उस वक़्त रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम की आँखों से आँसू जारी हो गये और फ़रमाया: “तमाम हम्द (तारीफ़) उस ख़ुदा के लिये है जिसने यह पसंद न किया कि तुम दोनों (अली व फ़ातिमा अलैहिमस्सलाम) दुनिया से जाओ जब तक कि तुम्हें, ऐ अली, ज़कर्रिया की तरह और तुम्हें, ऐ फ़ातिमा, मरयम बिन्ते इमरान की तरह न कर दे।”

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha