रविवार 23 नवंबर 2025 - 18:49
माल का सही इस्तेमाल इंसान को हलाकत से बचाता है।मौलाना सैयद अशरफ़ अल-ग़रवी

हौज़ा / सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के तत्वावधान में और ‘अह्यू अम्रना ट्रस्ट’ की निगरानी में, तहसीन गंज स्थित शबीहा-ए-रौज़ा-ए-सकीना सलामुल्लाह अलैहा (जामा मस्जिद) में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सीस्तानी द० ज़ि० के प्रतिनिधि हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ़ अली अल-ग़रवी साहब की अध्यक्षता में इस्लाह-ए-इक़्तेसाद कांफ़्रेंस आयोजित हुई।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ। सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के तत्वावधान में और ‘अह्यू अम्रना ट्रस्ट’ की निगरानी में, तहसीन गंज स्थित शबीहा-ए-रौज़ा-ए-सकीना सलामुल्लाह अलैहा (जामा मस्जिद) में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सीस्तानी द० ज़ि० के प्रतिनिधि हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ़ अली अल-ग़रवी साहब की अध्यक्षता में “इस्लाह-ए-इक़्तेसाद कांफ़्रेंस” आयोजित हुई।

कांफ़्रेंस की शुरुआत मौलाना मोहम्मद अली की तिलावत-ए-कुरआन से हुई। इसके बाद मौलाना सैयद मोहम्मद हुसैन रिज़वी, मौलाना मकातिब अली ख़ान, जनाब सैयद ऐनुर्रज़ा रिज़वी, और जनाब सैयद सरफ़राज़ हुसैन ने तक़रीर की।

सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के निदेशक मौलाना शब्बीर अली ने वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि मोमिनीन की सहायता के उद्देश्य से पिछले वर्ष इस सन्दूक की बुनियाद रखी गई। नवंबर 2024 से अक्टूबर 2025 तक कुल 1,39,020 रुपये की आमदनी हुई और इस अवधि में 1,46,191 रुपये विभिन्न इंसानी व फ़लाही सेवाओं में खर्च किए गए। इनमें यतीम बच्चों की किफालत, भोजन, वस्त्र और शिक्षा की आवश्यकताएँ, बेवा महिलाओं की सहायता, चिकित्सा सहायता तथा जीवन की बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति, ज़रूरतमंद बच्चों की फीस और शैक्षिक मदद, तथा गरीब परिवारों की रोज़मर्रा की ज़रूरतों में सहायता शामिल हैं—जैसे सिलाई मशीन देना, दुकान या मकान की मरम्मत, मेडिकल सहायता, आवास और अन्य सामाजिक कार्य। हर राशि को पारदर्शिता के साथ हक़दारों तक पहुँचाया गया और पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रखा गया ताकि हर सेवा स्पष्ट रहे।

मौलाना शब्बीर अली ने आगे कहा कि मदद का उद्देश्य केवल आर्थिक सहायता देना नहीं बल्कि यतीमों, बेवा महिलाओं और ज़रूरतमंद परिवारों की ज़िंदगी में सुकून और इज़्ज़त पैदा करना है। अधिकतर सहायता यतीम बच्चों की देखभाल, शिक्षा, आवास और भोजन पर खर्च की गई ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके और वे आत्मनिर्भर बनें। बेवा महिलाओं को आर्थिक और चिकित्सकीय सहायता दी गई ताकि वे सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। ज़रूरतमंद बच्चों को फीस सहायता दी गई ताकि शिक्षा के अवसर उन तक पहुँच सकें। इन सभी कार्यों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ अंजाम दिया गया और हर पैसा सही हाथों तक पहुँचाया गया। यह बात साबित करती है कि समाज में ख़िदमते खल्क़ का जज़्बा बढ़ता जा रहा है।

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के तहत सदक़ा जमा करने के डिब्बे मोमिनीन के घरों में रखवाए गए थे, जिनसे यह आमदनी हासिल हुई। जितना खर्च आमदनी से अधिक हुआ, वह एक नेक मोमिन ने स्वयं वहन किया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सीस्तानी द० ज़ि० के प्रतिनिधि मौलाना सैयद अशरफ़ अली अल-ग़रवी ने अहले-बैत अ०स० की शिक्षाओं की रोशनी में अर्थव्यवस्था की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि हम अहले-बैत अ०स० की हिदायतों पर चलें तो कभी आर्थिक कमजोरी का शिकार नहीं होंगे।

मौलाना अशरफ़ अल-ग़रवी ने अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम की हदीस — “जो अपने आर्थिक मामलों को न सँभाले, वह हलाक हो जाता है” — का हवाला देते हुए कहा कि अहले-बैत अ०स० ने इस विषय में भी हमारी पूरी मार्गदर्शन की है। हलाल रोज़ी की अहमियत और उसे हासिल करने के तरीक़े बताए हैं, जिन पर हमें गहराई से ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने क़ारून की हलाकत का ज़िक्र करते हुए कहा कि माल जमा करना कमाल नहीं है, बल्कि माल का सही इस्तेमाल और सही जगह खर्च करना असल कमाल है। यदि इंसान अपने माल का सही और हक़दारों पर खर्च करे तो वह निजात पाता है और यदि ग़लत राह अपनाए तो हलाकत में पड़ जाता है।

आख़िर में ख़िदमते खल्क़ में लगे रहने वाले नेक मर्दे मोमिन जनाब याक़ूब अली मरहूम, जिनका हाल ही में इंतिक़ाल हुआ, के ईसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन हुआ, जिसमें मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने ख़िताब किया।

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