हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का मुद्दा इस्लामी न्यायशास्त्र में हमेशा एक महत्वपूर्ण और संदिग्ध मुद्दा रहा है। इस भागीदारी का एक उदाहरण महिलाओं का मजलिसो में “नौहा” और मरसिया पढ़ना है, एक तरफ अहले-बैत (अलैहेमुस्सलाम) के लिए अज़ादारी का उच्च दर्जा, और दूसरी तरफ आवाज़ को ढकने और मिलाने से जुड़े शरई हुक्म की सटीक व्याख्या की ज़रूर है। इसलिए आयतुल्लाहिल उज़्मा खामेनेई से एक सवाल पूछा गया है, जिसका जवाब उन लोगों के लिए पेश है जो इसमें रुचि रखते हैं।
सवाल: अगर कोई महिला जनानी मजलिस के दौरान कोई मरसिया पढ़ती है और जानती है कि गैर-महरम मर्द उसकी आवाज़ सुनेंगे, तो क्या यह जायज़ है?
जवाब: अगर मफ़सेदा का खौफ़ हो, तो उससे बचना चाहिए।
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