शनिवार 15 नवंबर 2025 - 06:27
शरई अहकाम । क्या ज़ोहर की वुज़ू से मग़रिब और इशा की नमाज़ पढ़ी जा सकती है ?

हौजा / हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई ने एक सवाल के जवाब में यह वज़ाहत फ़रमाई है कि किन सूरतों में एक ही वुज़ू से कई फ़र्ज़ नमाज़ें अदा की जा सकती हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मराजे-ए-अज़ाम-ए-तक़लीद के फ़तवों की रौशनी में दीनी वाजिबात की अदायगी अक़्सर ऐसे सवालात के साथ होती है जिनकी वज़ाहत करना मुकल्लेफ़ीन के इतमिनान के लिए ज़रूरी होता है।

इन्हीं आम सवालों में से एक यह है कि क्या एक ही वुज़ू से मुतअद्दिद फ़र्ज़ नमाज़ें — ख़ास तौर पर उनके दरमियान वक़्फ़ा (फ़ासला) होने की सूरत में — अदा की जा सकती हैं?
इसी मसले की वज़ाहत के लिए नीचे एक सवाल और उसका जवाब, जो आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने बयान फ़रमाया है, दिलचस्पी रखनो वालो की ख़िदमत में पेश किया जा रहा है।

सवाल: अगर किसी ने नमाज़-ए-ज़ोहर से पहले वुज़ू किया हो और उस दौरान कोई ऐसा अमल न हुआ हो जो वुज़ू को तोड़ता है, तो क्या वही वुज़ू नमाज़-ए-मग़रिब और इशा के लिए भी काफ़ी है? या हर नमाज़ के लिए नया वुज़ू करना ज़रूरी होता है?

जवाब: हर नमाज़ के लिए अलग वुज़ू करना ज़रूरी नहीं है। जब तक वुज़ू बातिल न हो, एक ही वुज़ू के साथ जितनी चाहे नमाज़ें पढ़ी जा सकती हैं।

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