हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमामिया हॉल नेशनल कॉलोनी, अलीगढ़, भारत में हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की विलादत-ए-बासअदत की मुनासिबत से तरही महफ़िल-ए-मनक़बत का हुस्बे-साबिक आग़ा हसन जलालवी साहब की जानिब से इनिकाद किया गया; जिस में शोअरा-ए-किराम ने हज़रत ज़हरा की बारगाह में नज़राना-ए-अक़ीदत पेश किया।
शोअरा ने तरही मिसरा "फातिमा अज़्म व अमल का बोलता क़ुरान है" पर उम्दा अशआर (शेर) कहे।इस मौके पर हुज्जतुल इस्लाम मौलाना शबाब हैदर ने सदारती कलिमात में हज़रत फातिमा अज़-ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शख़्सियत पर रौशनी डाली।
मौलाना शबाब हैदर ने कहा कि अगर बेटी है तो रहमत, अगर बीवी है तो शोहर (पति) के निस्फ़ ईमान की वारिस, अगर मां है तो उसके क़दमों में जन्नत, लेकिन फातिमतुज़ ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) की शान व शौकत देखिए,उस बाप के लिए रहमत जो ख़ुद रहमतुल्लिल आलमीन (सारे जहान के लिए रहमत) हैं, उस शोहर के लिए निस्फ़ ईमान जो ख़ुद कामिल ईमान हैं और आप के क़दमों में उन बेटों की जन्नत है जो जन्नत के सरदार हैं।

उन्होंने मज़ीद कहा कि आलम-ए-इस्लाम की तमाम ख़वातीन हज़रात चाहे वह दुनिया के किसी भी ख़ित्ते की बाशिंदा (निवासी) हों, पारा-ए-जिगर रसूल (स.अ.व. स.) की हयात-ए-तैय्यबा और आप (स.अ.) के कमाल व फज़्ल का संजीदगी से मुतालेआ करें।
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