हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال امیر المؤمنین علیہ السلام
«ذَرِ السَّرَفَ فَإِنَّ الْمُسْرِفَ لا يُحْمَدُ جُودُهُ وَلا يُرْحَمُ فَقْرُهُ.»
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
इसराफ और फिजूलखर्ची को छोड़ दो, क्योंकि इसराफ करने वाले की सखावत प्रशंसनीय नहीं होती और उसकी तंगहाली पर भी दया नहीं की जाती।
बिहारूल अनवार,भाग 50,पेंज 292
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