हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , क़ायद ए मिल्लत जाफ़रिया पाकिस्तान अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी ने विश्व प्रवासी और हिजरत दिवसों के अवसर पर जारी अपने संदेश में कहा, इंसान ने अपनी सरकशी और तुग़यानी में इंसानियत को रुस्वा और दर-बदर कर दिया।
हालाँकि इंसानियत की भलाई, मार्गदर्शन, अच्छी ज़िंदगी और उत्तम सामाजिक व्यवस्था तथा प्रवासियों के कल्याण के लिए नबूवत और रिसालत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसके बावजूद हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स.ल. सहित अंबिया, औसिया और ख़ुदा के बंदों को भी इंसानियत की भलाई के लिए प्रवास और उससे जुड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा,कुछ समय पहले के आँकड़ों के अनुसार, युद्धों, संघर्षों, ज़ुल्म व जब्र और जलवायु परिवर्तन के कारण 12 करोड़ से अधिक लोग हिजरत करने पर मज़बूर हुए।
क़ायद ए मिल्लत जाफ़रिया पाकिस्तान ने कहा, आज इंसान अगर प्रवासी के रूप में कहीं दर बदर है, कहीं शरणार्थी कैंपों में या कहीं बेयार-ओ-मददगार पड़ा है, तो यह सब इंसान के भीतर की सरकशी और शैतानियत का नतीजा है। जब वह इंसानियत जैसे महान दर्जे से गिरकर अंधकार और ज़ुल्म की दुनिया में फँसता है, तो न केवल स्वयं पीड़ित होता है बल्कि इंसानियत पर ऐसे ज़ुल्म ढाता है कि आज के दौर में ग़ज़्ज़ा, शाम, लेबनान, रोहिंग्या सहित कई देश इसकी बदतरीन मिसालें हैं।
उन्होंने प्रवासियों और हिजरत-ए-नबवी का हवाला देते हुए कहा, पैग़म्बर-ए-इस्लाम ने इंसानियत की भलाई के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत छोड़े कि यदि इंसानियत उन पर अमल कर लेती, तो शायद आज दुनिया वास्तव में एक सभ्य दुनिया बन चुकी होती। लेकिन अफ़सोस, इंसान ने जिस व्यवस्था को अपनाया, उसकी ख़राबी के कारण आज स्वयं इंसानियत शर्मिंदा और दर-बदर है।
अल्लामा साजिद नक़वी ने कहा,इंसानी गरिमा के लिए आधुनिक दुनिया ने अनेक सिद्धांत, नियम और क़ानून बनाए, कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ भी स्थापित की गईं, लेकिन इसके बावजूद सरकशी पर क़ाबू नहीं पाया जा सका। यही इस व्यवस्था की असफलता का मूल कारण है।
इसी व्यवस्था की ख़राबी के कारण इंसानी ज़रूरतें और संसाधन लगातार घटते गए, जीवन का दायरा संकुचित होता गया और उसकी स्वतंत्रता पर तरह-तरह की पाबंदियाँ लगा दी गईं। इंसान को आज़ाद पैदा किया गया, समाज में अच्छे और सभ्य लोग भी पैदा हुए, मगर व्यवस्था की ख़राबी के कारण वे भी बेबस नज़र आए।
उन्होंने आगे कहा,एक ओर लोग ज़ुल्म व सितम के कारण अपने ही पैतृक इलाक़ों में शरणार्थी बन जाते हैं और दूसरी ओर नाइंसाफ़ी, असमानता, बेरोज़गारी तथा भूख व ग़रीबी के कारण विदेशों में ग़ैर-क़ानूनी हिजरत पर मजबूर हो जाते हैं।
हर कुछ समय बाद पाकिस्तान सहित कई देशों के बेसहारा लोग कभी यूनान के समंदरों में डूब जाते हैं और कभी ज़ालिम इंसानी तस्करों के हाथों अपनी ज़िंदगी खो बैठते हैं, या फिर बेगार कैंपों में बदहाली की ज़िंदगी जीने पर मजबूर हो जाते हैं। इसलिए इन समस्याओं का समाधान व्यवस्था की ख़ामियों को दूर किए बिना संभव नहीं है।
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