बुधवार 31 दिसंबर 2025 - 22:03
नया साल आत्ममंथन और नए संकल्प का संदेश लेकर आता हैः मौलाना सय्यद करामत हुसैन शऊर जाफ़री

हौज़ा / मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफरी ने नए साल 2026 के अवसर पर अपने संदेश में कहा है कि नया साल सिर्फ कैलेंडर बदलने का नाम नहीं है, बल्कि यह अपने आप का मूल्यांकन करने, अपने कार्यों को सुधारने और नए संकल्प लेने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफरी ने नए साल 2026 के अवसर पर अपने संदेश में कहा है कि नया साल सिर्फ कैलेंडर बदलने का नाम नहीं है, बल्कि यह अपने आप का मूल्यांकन करने, अपने कार्यों को सुधारने और नए संकल्प लेने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

भारत के प्रसिद्ध विचारक, लेखक और दैनिक सदाक़त के मुख्य संपादक मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफरी ने कहा कि समय अल्लाह की बहुत बड़ी अमानत है। जो समय बीत जाता है, वह कभी वापस नहीं आता। इसलिए इस्लाम में समय की क़द्र, उसके सही उपयोग और उसके बारे में जवाबदेही पर विशेष ज़ोर दिया गया है।

उन्होंने बताया कि क़ुरआन की सूरह अस्र में समय की क़सम खाकर इंसान को घाटे से सावधान किया गया है। इसका मतलब यह है कि अगर समय ईमान, अच्छे कर्म, सच्चाई की सीख और धैर्य के साथ न गुज़रे, तो इंसान नुकसान में ही रहता है।

मौलाना ने कहा कि नया साल आत्ममंथन का सुनहरा मौका है। पैग़म्बर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम के कथन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सच्ची बुद्धिमानी अपने आप का हिसाब करने और आख़िरत की तैयारी में है, न कि केवल दिखावे और शोर-शराबे में।
नया साल इंसान को सोचने पर मजबूर करता है। कि बीते साल उसने अल्लाह से अपने रिश्ते, इबादत, नैतिकता, माता-पिता के अधिकारों, परिवार की ज़िम्मेदारियों और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को कितना निभाया।

उन्होंने हज़रत अली (अ.स.) के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर इंसान का आज और कल एक जैसा हो, तो वह घाटे में है। हर आने वाला दिन पिछले दिन से बेहतर होना चाहिए। नया साल ज्ञान बढ़ाने, चरित्र को शुद्ध करने और नैतिक ऊँचाई हासिल करने का संकल्प लेने का नाम है, ताकि दिल को ईर्ष्या, द्वेष, नफ़रत और निराशा जैसी नकारात्मक भावनाओं से साफ़ किया जा सके।

मौलाना करामत हुसैन जाफरी ने कहा कि नया साल उम्मीद और अल्लाह की ओर लौटने का संदेश भी देता है। क़ुरआन कहता है कि अल्लाह की रहमत से निराश नहीं होना चाहिए। अगर अतीत में ग़लतियाँ हुई हों, तो तौबा और सुधार का रास्ता हर नए दिन के साथ खुला रहता है, बस सच्चे दिल से बदलाव का इरादा होना चाहिए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि नया साल न तो बीते समय पर रोने का नाम है, न ही भविष्य की बेवजह चिंता का बोझ, और न ही जश्न के नाम पर लापरवाही। बल्कि यह वर्तमान को सुधारने, खुद को संभालने और सही दिशा में आगे बढ़ने का अवसर है।

अंत में मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफरी ने कहा कि नए साल का स्वागत शोर-शराबे से नहीं, बल्कि दुआ की शांति, गंभीर सोच और सच्चे कर्मों के साथ होना चाहिए, क्योंकि यही जीवन को सही अर्थ, दिशा और उद्देश्य देता है।

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