हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,इस्लाम ने मर्द को देखभाल करने वाला और औरत को ख़ुशबू क़रार दिया है।
यह न तो औरत की शान में गुस्ताख़ी है और न ही मर्द की शान में। यह न तो औरत को हक़ से महरूम करना है और न मर्द का हक़ पामाल करना है।तराज़ू पर भी अगर रख दें तो दोनों बराबर हैं।
यानी हम जब औरत को उसकी नज़ाकतों और ज़िंदगी के माहौल में उसकी आध्यात्मिक सुंदरता और सुकून व चैन लाने वाली हस्ती की हैसियत से तराज़ू के एक पलड़े में रखते हैं और मर्द को प्रबंधक और औरत के लिए भरोसेमंद मुहाफ़िज़ की हैसियत से तराज़ू के दूसरे पलड़े में रखते हैं तो दोनों आपस में बराबर नज़र आते हैं। किसी एक को दूसरे पर तरजीह हासिल नहीं है।
आपकी टिप्पणी