۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
امام خمینی

हौज़ा / नौजवान रसूल अल्लाह के बाद से ले कर आज तक के सभी हुक्मूरानो के चेहरों को कुरानी आयतों के रौशनी में अच्छी तरह जांच,परख और समझ लेंगे और खुद फैसला कर लेंगे की खुशनूदिये परवरदिगार और समाज की इसलाह के लिए मैदाने अमल में उतर कर इस्तेकामत के साथ कुर्बानियां देने वाले इमाम खुमैनी और उनके साथी  कैसे थे।

शौकत भारती द्वारा लिखित

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी। ये मजमून इंकेलाबे ईरान को अजादारिये इमाम हुसैन का सदका बताने वाली ला सानी इंकलाबी शख्सियत इमाम खुमैनी की जिंदगी पर थोड़ी बहुत रौशनी डालने और ईरानी इंकलाब से सबक हासिल करने के लिए लिखा रहा हूं,
इस मजमून को लिखने से पहले मैने सूरए हुजरात आयत नंबर 13, सूरए फुस्सेलत आयत नंबर 30,सूरए निसा आयत नंबर 59 सूरए मायदा आयत नंबर 67 को पेशे नज़र रख कर कायद और कयादत पर गौर फिक्र भी किया है,ये वो कुरानी आयतें हैं जिन पर अमल कर के अगर कायद का इंतेखाब किया जाए तो यकीनन ग्लोबल पीस, जस्टिस सिक्योरिटी और स्प्रिचुअलिटी का राज कायम किया जा सकता है और रहबरे इंकलाब इमाम खुमैनी का मकसद भी बस यही था की सारी दुनिया में ऐसी कयादत हो जिससे अमन,अदल और जियो और जीने दो का राज कायम हो सके।

इस मजमून को पढ़ कर नौजवान रसूल अल्लाह के बाद से ले कर आज तक के सभी हुक्मूरानो के चेहरों को कुरानी आयतों के रौशनी में अच्छी तरह जांच,परख और समझ लेंगे और खुद फैसला कर लेंगे की खुशनूदिये परवरदिगार और समाज की इसलाह के लिए मैदाने अमल में उतर कर इस्तेकामत के साथ कुर्बानियां देने वाले इमाम खुमैनी और उनके साथी कैसे थे और अपनी और अपनी औलादों की दुनिया बनाने के लिए मेहराब और मिम्बर से इंकलाब के खोखले नारे लगाने वाले कैसे हैं। इमाम खुमैनी की कुर्बानियों पर रौशनी डालने से पहले कुरान की रौशनी में कायद कौन हो और कायद कैसा हो इसे समझना हो गा।क्यों की किसी भी इंकलाब की सबसे जरूरत कयादत होती है। हमारे इस मजमून की बुनियाद ही दर असल कायेद और कयादत ही है।

कुरान और अक्ल की रोशनी में क़यादत
इंसानी अकल बगैर किसी दबाओ के जब भी आजादाना फ़ैसला करेगी तो नतीजा यही निकलेगा जिसमे सबसे ज्यादा सलाहियत हो उसी को कायेद होना चाहिए और उसकी कयादत ही कुबूल करनी चाहिए।
यानी किसी भी अफज़ल शख्स को कभी किसी मफजूल की कयादत नहीं कुबूल करनी चाहिए बल्कि मफजूल को हर हाल में अफजल की ही कयादत कुबूल करनी चाहिए और अपने से ज्यादा अफजल को कायेद मान कर उसकी इताअत करनी चाहिए।
यही वो अक्ली दलील है जिसे कुरान ने,इंसान के एक दूसरे से अफजल होने का पैमाना बताया है जिसे सूरए हुजरात की आयत नंबर 13 में वाजेह कर दिया गया है यानी जो तकवे में सबसे अफज़ल है वही अल्लाह की निगाह में सबसे अफज़ल है इस लिए अकल का फैसला है की कयादत हमेशा अफज़ल के पास ही होनी चाहिए।

इस लिए इंसाफ परस्त इंसान पर लाज़िम है कि वो हर हाल में जो तकवे में सबसे अफजल है बस उसकी ही इताअत और पैरवी करे और कभी किसी मफ्जूल की पैरवी न करे। कयादत के लिए कुरान मजीद ने इंसान के अंदर जितनी शराएत रखखी हैं वो सब जब तक पूरी न हों इंसान तकवे में सबसे अफज़ल हो ही नहीं सकता और जिस इंसान के अंदर हर सलाहियत बदरजे अतम मौजूद हो बस वही अल्लाह के नजदीक सबसे ज्यादा मुकर्रम होता है और वही तकवे में सबसे अफज़ल कहलाता है और जो इंसानों में हर तरह से अफज़ल है अकल भी यही कहती है की हम उसे ही अपना लीडर,हकीम या कायेद माने।

पैगामें हज और क़यादत के उसूल
कयामत तक मुसलमान कायेद का इंतखाब कैसे करें पैगंबरे अकरम ने इस अबदी उसूल को अपने आखरी और पहले हज में रसूल अल्लाह ने हाजियों के भरे हुए मजमे में बता दिया रसूल अल्लाह ने खुल कर एलान कर दिया की दुनिया के सारे इंसान आदम की औलाद हैं,कोई किसी से छोटा या बड़ा नहीं है,न गोरा काले से न काला गोरे से,न अरब अजम से, न अजम अरब से, अल्लाह के नज़दीक मुकर्रम सिर्फ वही है जो तकवे में सबसे अफज़ल है। मतलब साफ जो सूरए हुजरात की आयत नंबर 13 के मुताबिक तकवे में सबसे अफजल है वही सब से अफज़ल है इस लिए जो सबसे अफज़ल हो उसकी ही बैयत और इताअत हर मुसलमान पर फर्ज है।इस कुरानी उसूल के मुताबिक यकीनन जिस कौम का हाकिम तकवे में सबसे अफज़ल हो गा उससे अच्छा कौम का हाकिम किसी और का हो ही नही सकता इसी वजह से ही कहा जाता है की मुत्तकी हाकिम की पैरवी के बगैर दीन और दुनिया दोनों में कमियाबी हासिल नहीं ही सकती। पीस,जस्टिस,सिक्योरिटी और स्प्रिचुअलिटी कायम करने की तमन्ना रखने वाले दुनिया भर के सभी इंसान इस बात को नोट कर लें, सिवाए मुत्तकी हाकिम के कोई भी शख्स पीस,जस्टिस,सिक्योरिटी और सोरिचुअलिटी का राज कायम नहीं कर सकता क्यों की मुत्तकी शख्स ही सिर्फ़ अल्लाह से डरता है और दुनिया वालों की परवाह कभी नहीं करता।

मौदाने गदीर में क़यादत का एलान
सूरए मायदा आयत नंबर 67 को नाजिल कर के अल्लाह ताला अपने मौदाने गदीर में उम्मत के सामने अफजल और मफजूल का अमली फर्क समझाने के लिए सूरए हुजरात की आयत नंबर 13 के मुताबिक जो तकवे में सबसे अफज़ल था यानी इमामुल मुत्तकीन हज़रत अली अ.स को अपने रसूल के हाथों पर बुलंद करवा के सब को दिखा दिया और तकवे में सबसे बुलंद होने की बुनियाद पर हजरत अली को हर उस शख्स का मौला बना दिया जो रसूल अल्लाह को अपना मौला मानता था। अल्लाह ताला ने हजरत अली की हाकमियत का एलान रिश्तेदारी की बुनियाद पर रसूल अल्लाह से नहीं करवाया बल्कि हज़रत अली क्यों की तकवे में सबसे अफज़ल थे इमामुल मुत्तकीन थे इस बुनियाद पर करवाया था। इमामुल मुत्तकीन हजरत अली का तकवा चमकते हुए सूरज की तरह था इसलिए मैदाने गदीर के भरे हुए मजमे में हज़रत अली की विलायत का एलान कर दिया गया ताकि अली की हमसरी करने वाले अपने अपने गरीबानो में झांक कर अपने अपने तकवे को खुद ठीक से चेक कर लें फिर मुकाबले पर आएं।
अली की हमसरी करने के लिए तकवे की बुलंदी चाहिए थी जो किसी के पास नहीं थी, इमामुल मुत्तकीन से दूर रहने वालों को तो तक्वा छू कर भी गुज़र नहीं सकता यही वजह थी की वो लोग जो अली से हसद रखते थे खामोश बैठे रहे।

रसूल अल्लाह का अपने पैगामें हज में कयादत के लिए तकवे की शर्त रखना और मैदाने गदीर में तकवे की शर्त पर इमामुल मुत्तकीन हजरत अली की हाकमियत का एलान करना इस लिए भी जरूरी था ताकि जिसको सामने आना हो वो पैगामें हज में बताई गई रसूल अल्लाह की तकवे की शर्त को सामने रख कर सामने आए और रसूल अल्लाह से ये कहने की हिम्मत दिखाए की वो या कोई और हज़रत अली से तकवे में अफज़ल है। क्यों की तकवे की शर्त अली से हसद रखने वालों के रास्ते की सबसे बड़ी दीवार थी जिसको उबूर करना ना मुमकिन था इस लिए सब खामोश रहे।

मगर किसी बड़े शक्की उस्ताद का पक्का शागिर्द रसूल अल्लाह पर शक कर बैठा और रसूल अल्लाह को गलत साबित करने के लिए भरे मजमे में रसूल अल्लाह से कहने लगा की अगर आप ने हज़रत अली को अल्लाह के हुक्म पर सब का हाकिम बनाया है तो अल्लाह मेरे ऊपर आसमान से अजाब भेज दे।उस शक्की को शक था की रसूल अल्लाह ने बगैर अल्लाह के हुक्म के अली को अपनी रिश्तेदारी और मोहब्बत की बुनियाद पर सब का हाकिम बनाया है,उसकी इस गुस्ताखी पर अल्लाह ताला ने विलायते अली के इस पहले मुनकिर और गुस्ताखे रसूल को आसमान से पत्थर भेज कर हलाक कर दिया और कयामत तक के लिए ये पैगाम भी दे दिया की जो तकवे में सबसे अफज़ल है उसकी विलायत का मुंकीर और गुस्ताखे रसूल अज़ाबे इलाही से कभी नहीं बचेगा।
विलायत का एलान इस कदर जरूरी और अहम था की अल्लाह ने साफ साफ अपने रसूल से कह दिया था की अगर इस पैगाम को नहीं पहुंचाया तो गोया कारे रिसालत ही अंजाम नहीं दिया,आयत बता रही है की क्यों की इस एलान के बाद रसूल अल्लाह की जान को खतरा था इस लिए अल्लाह ने उस शर से महफूज़ रखने की गारंटी भी आयत में दे दिया था।

मुनकिरे विलायत को हलाक करने के बाद अल्लाह ताला ने अपने पसंदीदा दीन दीने इस्लाम और अपने कानून की आखरी किताब कुरान मजीद को मुकम्मल कर के अपनी नेमतों को तमाम कर दिया। हज़रत अली की विलायत के एलान के बाद से आज तक किसी की ये हिम्मत नहीं हुई कि वो ये दावा कर सके की इमामुल मुत्ताकीन हजरत अली से ज्यादा कोई और तकवे में अफज़ल था।

काश अपने आप को गदीरी कहने वाले मोमनीन और तमाम इदारों के जिम्मेदार, पैगामें हज की शर्त और मैदाने गदीर के एलान से सबक लेते हुए अपने अपने इदारों और तंजीमों में सबसे ज्यादा सलाहियत रखने वाले बा तकवा लोगों को तलाश कर के आगे रखें और खानदान परस्ती,नस्ल परस्ती, शक्सियत परस्ती, सिफारिश परस्ती और खुशामद परस्ती की बुनियाद पर अपने इदारों और तंजीमों में किसी को जगह न दें तो किसी की हिम्मत नही होगी की वो उनके इदरों और तनजीमों पर उंगली भी उठा सके,यही पैगामें हज और पैगामें गादीर है जिसे पसे पुश्त डाल कर सकीफाई मिशन पर धड़ल्ले से अमल हो रहा है और उसके बाद कौम की बर्बादी का रोना रोया जा रहा है।

पैगामे हज और पैगामे गदीर के खुले हुए एलान के बाद भी उम्मत ने रसूल अल्लाह के बाद अल्लाह और रसूल के जरिए बनाए गए हाकिम हजरत अली को जो कुरान से कभी जुदा नहीं हुए और न कुरान उनसे जुदा हुआ, ऐसे हाकिम से जुदा हो गई और कुरान में बताए गए ऊलिल अमर मानने के उसूल को तोड़ कर कभी इज्मा के बहाने तो,कभी वसीयत के बहाने,तो कभी शूरा के बहाने हज़रत अली जैसे इमामुल मुत्तकीन को तख्ते खिलाफत से दूर कर दिया,इस तरह दुनियावी उलीलअमरों ने तख्ते खिलाफत पर बैठ कर उम्मत को इमामुल मुत्ताकीन की बैयत और इताअत से दूर कर दिया अफज़ल के होते हुए मफजूल की बैयत और इताअत करने का सिलसिला बादे रसूल ही शुरू हो गया इस तरह कुरान के बनाए हुए उसूल के खिलाफ अपनी अपनी मर्ज़ी से अपना अपना उलिलअमर बनाने का खेल शुरू हो गया।

जब की कुरान में साफ साफ बता दिया है की उलिलअमर सिर्फ और सिर्फ वही हो सकता है जो हर हाल में अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करता हो,और उसका कोई भी हुक्म अल्लाह और उसके रसूल से न टकराता हो।
मतलब साफ है की अल्लाह और रसूल की हर हाल में इताअत करने वाला और अल्लाह और रसूल के हुक्म के मुताबिक हुक्म देने वाला गलत हो ही नही सकता।जो लोग खुद अल्लाह और रसूल की पूरी तरह इताअत नही करते थे और अल्लाह और रसूल के हुक्म के मुताबिक हुक्म नहीं देते थे,वो खुद बादे रसूल उलिल अमर बन गए और वही मफजूल लोग उन अफजल इलाही ऊलिल अमरो से बैयत मांगने के लिए उन पर जब्र करने लगे जो तकवे में सबसे अफजल थे। इस तरह से बादे रसूल कानूने इलाही तोड़ कर इजमा,वसीयत, शूरा के सियासी दांव पेच से हुकूमत पर एक के बाद दूसरे हाकिम काबिज़ होते गए और उम्मत की अक्सरियत उनकी इताअत और बैयत भी करने लगी जिसकी वजह से इस्लामी हुकूमत फाड़ खाने वाली मुलूकियत और बादशाहत में तब्दील हो गई और फिर अल्लाह और रसूल की इताअत के बजाए कहरो गलबा का राज शुरू हो गया क्यों की कहरो गलबा के जरिए बने हुए ऊलिल अमर को उम्मत ने हाकिम कुबूल कर लिया था और उनकी मुखालीफत नहीं की इस लिए लिए वो मजबूत से मजबूत तर हो गए।

उन दुनियावी ज़ालिम उलिलअमरो के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा क्यों की अल्लाह और रसूल के चुने हुए वो 11 नूरी और इलाही उलिलअमर थे जिनके तकवे की बुलंदी तक जाने की कोई सोच भी नहीं सकता था और जिन्हो ने कभी दुनियावी ऊलिल अमरो की बैयत नहीं की थी, यही वो बुनियादी वजह थी की 11 नूरानी और इलाही उलिल अमरों के खिलाफ सभी जालिम हुकमुरान हर तरह के जुलम और हथकंडे इस्तेमाल करते रहे,उन्हे तरह तरह से अजीयतें देते रहे और एक के बाद एक को कभी तलवार से तो कभी जहर से शहीद कर डाला।

अल्लाह ताला ने अपने आखरी और बारवें इलाही उलिलअमर को पर्दे गैब में रख दिया यही वजह है की जब फाड़ खाने वाले दुनियवी उलील अमर के जुल्म और जौर से दुनिया भर जायेगी और अमन व अदल के सारे ही रास्ते बंद हो जाएंगे तो अल्लाह ताला हमारे बारवें नूरी और इलाही उलिल अमर को जमीन पर भेज कर जुल्म से भरी हुई दुनिया को अदल और इंसाफ से भर देगा। आखरी इमाम की गैबत के बाद से आज तक एक से एक ज़ालिम और जाबिर बादशाह उलिल अमर बन कर तख्ते खिलाफत पर बैठ गए इस तरह फाड़ खाने वाली बादशाहत और शहेनशाहियत परवान चढ़ती रही उसी शैतानी शहेनशाहियत का एक नमूना शाह ईरान भी था।

दिफाए दीन और मर्जइयत की ताक़त
गैबते सुगरा में शिया बारवें इमाम के मुनतखिब किए गए नववाबीने अर्बा से जुड़े रहे और नववाबीने अर्बा के बाद मराजए केराम से जुड़ गए। हमारे मराजये किराम हमेशा बादशाहत और शहेनशाहियत से दूर रहे और हम शियो के अकीदे और अमल की दुरुस्तगी के लिए काम करते रहे उन्हों ने ही उसूले दीन और फुरूए दीन बताए उन्हों ने ये भी बता दिया की तकलीद फुरूए दीन में है उसूले दीन में तकलीद नहीं है इस लिए हर आकिल और बालिग शिया की जिम्मेदारी है की वह दीन के पांचों उसूल अच्छी तरह गौर फिक्र कर के समझ कर माने और फुरूए दीन में मराजये किराम की तरफ़ रूजू करे उनकी तकलीद करे ताकि अहकेबैत का दिया हुआ दीन महफूज रहे और दुनियावी हुक्मरान उसे बदल न सकें ,उसूल दीन में तौहीद के फौरन बाद अदल इसी लिए है की हम तौहीद, नूबूवत,इमामत और कयामत के फर्क को अच्छी तरह से समझ सकें।उसूल दीन में अदल होने की वजह से ही शिया अच्छी तरह क्रिएटर,फर्स्ट क्रिएशन और अदर क्रिएशन का फर्क समझ कर अपना अकीदा मजबूत कर लेता है और फिर वाजिबात अदा करने के लिए दीन के एक्सपर्ट मराजये किराम की तरफ़ उसी तरह से रूजू करता है जैसे बहुत से दुनियावी कामों में वोह उन कामों के एक्सपर्ट की तरफ रूजू करता है।

क्रिएटर यानी अल्लाह
फर्स्ट क्रियेशन यानी नूरी मखलूक मोहम्मद और आले मोहमद।
अदर क्रिएशन यानी मोहम्मद और आले मोहम्मद के नूर से खल्क होने वाली सभी अदर क्रिएशन।
शिया इन तीनों के बीच के फर्क को उसूल दीन में अदल होने की वजह से ही अच्छी तरह समझते हैं,यही वजह है की शिया किसी भी मखलूक को वो खाकी हो या नूरी कभी अल्लाह ( क्रिएटर) नहीं कहते बल्कि शिया नूरी मखलूक को भी अल्लाह का फर्स्ट क्रिएशन मानते हैं।

शिया ये भी मानते हैं की नूरी मखलूक की वजह से ही सभी अदर क्रिएशन की खिलकत हुई है, इसी लिए शिया कभी अदर क्रिएशन को फर्स्ट क्रिएशन के बराबर नहीं मानते। शिया उसूले दीन के दूसरे रुकन अदल के पेशे नज़र ही तौहीद और नूबूवत का,नूबूवत और इमामत का फर्क अच्छी तरह जानते हैं इस लिए शिया कभी 14 नूरानी हसस्तियों यानी मोहम्मद और आले मोहम्मद को खुदा नही समझते और न ही 14 नूरी मखलूक जैसा किसी और मखलूक को समझते हैं। शिया अल्लाह के बाद फकत 14 नूरी मखलूक को ही सबसे अफज़ल मानते हैं।शिया फकत अपने बारह नूरी इमामों और नववाबीने अर्बा के बीच का ही फर्क नहीं समझते बल्कि वो आखरी इमाम से तालीम लेने वाले नववाबीने अर्बा और तफककोह फिद्दीन करके मर्जइयत की मंजिल पर फायेज़ होने वाले मराजए केराम के बीच का फर्क भी अच्छी तरह समझते हैं,वो अच्छी तरह जानते हैं की नूरी इमाम से इल्म हासिल कर के उनका हुक्म पहुंचाने वाले नववाबीने अर्बा और हैं, खाकी मखलूक से इल्म ले कर मंजीलते मर्जइयत पर फाएज हो कर फतवे देने और फतवे के आगे वल्लाहो आलम बिस्सावाब लिखने वाले और हैं।शिया नववाबीन ने अरबा और मराजये किराम के बीच भी मंसब और मरतबे का फर्क जानते हैं। शिया जानते हैं कि जिनहो ने अपने आप को अल्लाह इरादा कहा है वो और हैं और जो इरादे को पैदा करने वाला अल्लाह है वो और है।

वो जनता है की अल्लाह ही अपने इरादे का भी खालिक है,मुकद्दस मराजये किराम ने हमे अल्लाह और उसका इरादा और उसके इरादे से खल्क होने वाली मखलूक और इलाही ऊलिल अमर और दुनियावी ऊलिल अमर का फर्क भी गौर फिक्र के समझा दिया है उन्हों ने ही हमें हदीस की रौशनी में ये अच्छी तरह से समझा दिया है कि उममत और है और मोहम्मद व आले मोहम्मद और हैं जिस तरह से अल्लाह की तशबीह किसी से नहीं दी जा सकती उसी तरह नूरी मखलूक यानी मोहम्मद और आले मोहम्मद की ताशबीह किसी और मखलूक से नहीं दी जा सकती।

माराजए किराम की दी हुई तालीम ही है जिसकी वजह से ही हम हर कसो नाकस की तकलीद नहीं करते बल्कि फकत मुत्तकी और परहेजगार मराजये किराम की ही तकलीद करते हैं, हमारे पास मर्जाइयत और खूम्स दो ऐसे मजबूत और अचूक हथियार हैं जिसके सही इस्तेमाल से एक मुत्त्तकी आलिम कौम में इंकलाब पैदा कर सकता है और ईरान में ये काम कायदे इंकलाब इमाम खुमैनी ने किया। ईरान के ला सानी कायेद और आलमें इस्लाम की अज़ीम हस्ती इमाम खुमैनी ने ईरान के इंकलाब के लिए और शहंशाह ईरान की अय्याश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए जो कुछ ईरान में कर के दिखा दिया उसका कोई सानी नहीं है।

खाकसारी की अज़ीम मंजिल वाला सच्चा काइद
मौला अली के सच्चे खादिम और रूहानी और मुत्तकी आलिम इमाम खुमैनी ने मुलुकियत के गंदे समंदर में डूबी हुई शाह ईरान की उस जालिम हुकूमत को जो ज़ालिम अमरीका,बिरटेन और इस्राइल की कठपुतली थी और जिसने सारी दुनिया में शियत को बदनाम करने के लिए ईरान की गलियों और सड़कों की अययाशियो का अड्डा बना रखा था और उसके साथ दुनिया की सुपर पॉवर्स थीं उसे सिर्फ अल्लाह के भरोसे उखाड़ कर फेक दिया और उसकी जगह साफ और शफफाफ जम्हूरी इस्लामी हुकूमत कायम कर दिया। वो सूरए फुसेलत की आयत नंबर 30 की रौशनी में अल्लाह पर भरोसा कर के इस्तेकामत के साथ खड़े हो गए। आप सब को याद होगा की ईरान जो दुनिया की इकलौती ऐसी हुकूमत है जहां पर 95% शिया रहते है वहां पर इंकलाब से पहले खुले आम कुरान और अहलेबैत के हुक्म की मुखालिफत हो रही थी ईरान के शियों ने सूरए हुजरात की आयत नमबर 13 वाली तकवे की शर्त को पसे पुश्त डाल कर अपने आप को ऐसे ज़लील हाकिम के सिपुर्द कर दिया था जिसने ईरान की हुकूमत को पेरिस ऑफ़ द गल्फ बना डाला था। ईरान के शाह ने खुले आम कानूने इलाही की मुखालिफत करते हुए न सिर्फ यहूद और नसारा को अपना सरपरस्त बना रखा था बल्कि वो उनके इशारे पर गुलामों की तरह नाचता रहता था, ईरान की गलियों में शराब,जुआ,अय्याशी, रक्स व सुरूर और बेहयाई का बाजार गर्म था जिसकी वजह से दुनिया भर में बुरी तरह से शियत की बदनामी हो रही थी,अगर उस वक्त इंटरनेट और सोशल मीडिया आम होता तो आज सबसे ज्यादा शियत पर हमले हो रहे होते, ऐसा नहीं था की ईरान में उस वक्त उलमा नापैद हो गए थे,जी नहीं उलमा तो जरूर थे मगर या तो हुकूमत के साथ हो गए थे, या फिर हुकूमत से डर कर गोशा नशीन हो चुके थे और उनके अंदर ज़ालिम और जाबिर बादशाह के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत खत्म हो चुकी थी,जो हक परस्त उलमा इमाम खुमैनी के साथ आवाज बुलंद कर रहे थे वो सब इमाम खुमैनी के साथ जेल में डाल दिए गए थे, इमाम खुमैनी को मुल्क बदर भी कर दिया गया था।

दुनिया परस्त मौलवीयों का टोला ईरान के अंदर और बाहर दोनों जगह शाह ईरान के टुकड़ों पर उसके कसीदे पढ़ रहा था और शाह के हर जुर्म को या दिफा कर रहा था या फिर खामोश था। हमारे मुल्क में भी शाह ईरान की वकालत करने वालों का नेट वर्क सरगर्म था या फिर इंकलाब ईरान के वक्त बहुत से लोगों को इमाम खुमैनी की तहीक समझ में नहीं आ रही थी इस लिए वो खामोश थे इसका सुबूत ये है कि जिस तरह से इंकलाबे ईरान की कमियाबी के बाद गलियों और कूचों में आज अपने आप को इंकलाबी जाहिर करने वाले मिल जाते हैं जिस वक्त तहरीके इंकलाब चल रही थी उस वक्त हिंदुस्तान के बहुत कम मौलवी अपनी जुबान या कलम से इंकलाब की हिमायत कर रहे थे,कुछ तो खुल कर इमाम खुमैनी के इंकिलाब की मुखालिफत कर रहे थे और ये कहा करते थे की एक ही शिया हुकूमत थी उसको भी बर्बाद किया जा रहा है इसका सुबूत इंकलाबे ईरान के जमाने में छपने वाली मैगजीन और तकरीरो के टेप हैं जिसमें सब कुछ कैद है,दिल्ली और अली गढ़ से एंटी खुमैनी पबलिकेशन हो रहा था मगर जवाब देने वो लोग नही थे जिन्हे आज खुमैनी साहब और इंकलाब ईरान का जोर शोर से हिमायती बताया जा रहा बड़ी बड़ी किताबों के मुसन्निफों ने एक किताबचा भी इंकलाब के हक में नहीं लिखा, मगर इंकलाबे ईरान की कमियाबी के बाद वह लोग भी अपने आप को और अपने खानदान को इंकलाब का सबसे बड़ा हिमायती बताने लगे और आज भी उनकी औलादें अपने अपने घर वालों को इनकेलाब का सबसे बड़ा हिमायती बता रहीं हैं और उन लोगों को जो बेलौस इंकलाब ईरान से जुड़े हुए थे उन्हे ही इंकलाब दुश्मन बताने में लगे हुए हैं,ऐसे ही लोगों के लिए किसी शायर ने क्या खूब कहा है।

हम पत्थरों से लड़ते रहे और चंद लोग...
गीली जमीन खोद के फरहाद बन गए...
खैर जाने दीजिए मफाद परस्त तो हमेशा से थे और कयामत तक रहेंगे। अब तो इंतहा हो गई है जिन्होन किसी एक ज़ालिम ताकत के खिलाफ कभी उफ भी नहीं किया उन्हें दुनिया की कुल सुपर पावर्स को धूल चटाने वाले इमाम खुमैनी के बराबर की शख्सियत बना कर पेश किया जा रहा है इससे बड़ा जुल्म क्या हो सकता है।

इस्तेकामत और इमाम खुमैनी
खुदा भला करे तकवे में डूबे हुए और अल्लाह पर भरोसा कर के शैतानी ताकतों के मुकाबले पर खड़े होने वाले कायद इमाम खुमैनी का जो सूरए फुसेलत की आयत नंबर 30 पर पूरी तरह से अमल करते हुए इस्तेकामत के साथ बेलौस अपने मुखलिस साथियों को ले कर शैतानी ताकतों के मुकाबले में खड़े हो गए और यकीनन खुदा ने उनकी मदद भी की।

खुदाई मदद के चंद अहम सुबूत ये हैं की ईरान इंकलाब के वक्त कैद किए जाने वाले अमरीकियों को छुड़ाने के लिए भेजे गए स्पेशल कमांडोज के जहाज एक दूसरे से खुद ब खुद टकरा कर बरबाद हो गए, ईरान की लूटी हुई दौलत अमरीका को वापस करना पड़ा, इस तरह के और भी बहुत से सुबूत हैं। उन्हों ने ईरान को भरपूर इस्तेकामत का सबक दिया और उसका ही असर है की इतने सैंक्शंस के बाद भी आज ईरान आगे ही बढ़ रहा है। इमाम खुमैनी में इस्तेकामत कूट कूट कर भरी हुई थी इसका सुबूत ये है की इमाम खुमैनी को जेल में डाला गया,मुल्क बदर किया गया उन पर तरह तरह के मजालिम ढाए उनके सामने दुनिया की सुपर पॉवर्स आईं मगर वो इस्तेकामत के साथ सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े रहे उन्हों ने अल्लाह पर मुकम्मल भरोसा रख कर दुनिया की बड़ी बड़ी ताकतों को चैलेंज कर डाला और उन्हे खुल कर शैतानी पावर कह दिया,उन्हें यकीन था की हकिकी ताकत तो अल्लाह की है और यही वजह थी की वो अल्लाह के सहारे इस्तेकामत के साथ खड़े हो कर बड़ी से बड़ी शैतानी ताकतों का आखरी सांस तक मुकाबला करते रहे।

वो सिर्फ जुबान से ही अल्लाह को अपना रब नहीं मानते थे बल्कि दिल की गहराइयों और अपने पूरे वुजूद से अल्लाह को अपना रब मानते थे उनकी जिदंगी इस बात अमली नमूना है यही वजह थी की उन्हों ने न सिर्फ अमरीका,रूस, इजराइल से ही अकेले टक्कर लिया बल्कि उनके तमाम हिमायती मुल्कों से भी एक साथ टक्कर ले लिया वो दाखली और खारजी दोनों ताकतों से एक साथ लड़ते रहे और उनकी इस इस्तेकामत के सबब ही शाह ईरान को मुल्क छोड़ कर भागने पर मजबूर होना पड़ा और अमरीका को लूटा हुआ खजाना वापस करना पड़ा।

वो मौका परस्त जो कल तक ये कहा करते थे की एक शिया हुकूमत है उसे भी खुमैनी साहब गिराना चाहते हैं और ईरान के इंकेलाब के सख्त मुखालिफ थे वो भी इंकलाब की कमियाबी के बाद अपने आप को इमाम खुमैनी से जोड़ने की जोड़ तोड़ में एड़ी चोटी का जोर लगाने लगे और आज उनकी औलादें उन्हें ऐसा बता रहीं हैं जैसे उनसे बड़ा इंकेलाब का कोई हिमायती था ही नहीं।शाह ईरान के खिलाफ खामोश रहने वाली जुबाने और कलम इंकलाब की कमियाबी के बाद इमाम खुमैनी की तारीफ में मशगूल हो गए वोह लोग जो खुमैनी साहब पर एतराज करते थे वही लोग अपने अपने घरों और इदारों में इमाम खुमैनी के फोटो टांगने लगे ताकि इंकलाब के बाद बनने वाली ईरान की हुकूमत से फायदा उठा सकें, ईरान के इंकलाब की कमियाबी के लिए बेशुमार कुर्बानियां देने वाले अज़ीम कायद इमाम खुमैनी ने अपनी तहरीक में अपनी औलाद को खतरों से बचा कर घर पर नहीं बिठाया मुल्क के बाहर भेज कर उन्हे महफूज़ नहीं किया बल्कि मौदाने जंग में भेज कर उनकी शहादत के दाग़ भी खुशी खुशी कुबूल किया, इतना ही नहीं जंग में भेजने से पहले अपने बच्चों से कहा की अपने नाम के बाद खुमैनी न लिखना हुसैनी लिखना ताकि लोग तुम्हे हमारे नाम की वजह से अहमियत न दें बल्कि आम सिपाहियों की तरह जंग करना,ये थे इमाम खुमैनी हमारे यहां का तो ये आलम है की बे सलाहियत अपने बाप दादा का नाम जोड़ने का कंपीटीशन कर रहें हैं,खुमैनी साहब फकत और फकत अल्लाह के लिए काम करने वाले सच्चे कायद थे।बेवकूफ या गुस्ताख हैं वो लोग जो इस्तेकामत में डूबे हुए इंकलाब के अज़ीम रहबर इमाम खुमैनी जैसी अज़ीम हस्ती के बराबर किसी न किसी को लाने की कोशिश किया करते हैं ।इंशा अल्लाह ऐसे लोग हमेशा रुसवा होते रहेंगे। सूरज हमेशा सूरज रहे गा किसी चिराग का नाम सूरज रख लेने से या सूरज के साथ चिराग रख देने से सूरज नहीं बन सकता जो लोग ऐसा कर रहें हैं वो रेशम के परदे में टाट का पेवन्द लगाने का काम कर रहे हैं, ऐसा करने वाले मेरी निगाह में या तो इमाम खुमैनी की मारिफ़त ही नहीं रखते या फिर सब कुछ जान बूझ कर इमाम खुमैनी की तौहीन करने वाले हैं।

जालिम हुकूमतों के खिलाफ उफ भी न करने वालों को दुनिया की सुपर पॉवरस को धूल चटाने वाले इमाम खुमैनी की सफ़ में खड़ा करने वाले खुला हुआ जुल्म कर रहें है। आंख खोल कर देखिए आज लोग चंदा इकट्ठा कर के छोटा सा इदारा बनाते हैं तो उसे अपने बुजुर्गों के नाम से मंसूब कर देते हैं या फिर उन इदारों में अपने बाद अपनी ना अहेल औलादो और अपने खुशामद पसंदों को मुसल्लत कर देते हैं ये नहीं सोचते की कौम के चंदे से बने इदारे जाती नहीं कौमी होते हैं और कौमी इदारों में कौम के सबसे बेहतर लोगों को रखना चाहिए यही पैगामें गदीर है यही पैगामें हज है,बेहतर लोगों हर कौमी इदारों में आगे लाएं ताकि कौम को बेहतर से बेहतर बनाया जाए मगर क्या किया जाए जब कौम के चंदे से अपनी ना अहले औलादों को पाला जायेगा तो न कौम तरक्की कर सकती है और न ही कौमी इदारे।अपने अपने इदारों में इमाम खुमैनी पर सेमिनार करने वाले तकरीरें करने और मकाला लिखने वाले काश सीरते इमाम खुमैनी पर थोड़ा सा भी चल रहे होते तो आज कौम न जाने कहां होती।

क्या कहना कौम के सच्चे और ईमानदार कायद इमाम खुमैनी का ईरान के इंकलाब की कमियाबी के बाद इमाम खुमैनी ने न सिर्फ अपने आप को हुकूमत से दूर रखा बल्कि अपनी औलादों को भी किसी भी मंसब पर फायेज नहीं किया और इसकी वसीयत भी कर गए की उनकी औलादों को किसी मंसब पर फयेज न किया जाए, उन्हों ने रसूल अल्लाह के पैगामे हज और पैगामे गदीर से पूरा पूरा सबक लिए यही वजह है की उन्हों ने सिर्फ उसे ही आगे रखा जो उनके मिशन को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचा सकते थे, उन्हों ने अपने अमल से ये पैगाम दिया की अपने लिए या अपने खानदान के लिए और अपने नाम व नामूद के लिए अपना और अपने बच्चों का मुस्तकबिल बनाने के लिए काम कर के दौलत इकठ्ठा करने वाले और होते हैं और अल्लाह के लिए काम करने वाले और होते हैं। अल्लाह के लिए काम करने वाले पैगामे गदीर को हमेशा याद रखते हैं वो खानदान परवरी, कबीला परवरी,कुनबा परवरी को पसे पुश्त डाल कर सिर्फ और सिर्फ बा सलाहियत और बा तकवा लोगों को ही आगे रखते हैं। मेरी निगाह में बा सलाहियत लोगों को पीछे और बे सलाहियत लोगों को आगे बढ़ाने वाले गदीरी नहीं हैं सकीफाई मिशन के रास्ते पर हैं।

इंकलाब ईरान के बाद सारी शैतानी ताकतों ने मिल कर सद्दाम को सपोर्ट किया और ईरान पर जिस वक्त जंग मुसल्लत कर दी तो सब के सब घबरा गए मगर इमाम खुमैनी कहां किसी से डरने वाले थे उनका यकीन तो इंकलाबे ईरान की कमियाबी के बाद मंजिलें कमाल पर पहुंच गया था,उन्हों ने अल्लाह पर भरोसा कर के न सिर्फ ईरान को बचाया बलिक इराक के साथ दुनिया की बड़ी बड़ी सुपर पावर्स को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और फिर सारी दुनिया ने देख लिया की ईरान पर जंग मुसललत करने वाला इराक और इराक के सपोर्टर मुमालिक यूनाइटेड नेशन में जंग बंद करने की भीख इमाम खुमैनी से मांगने लगे।

ईरान इराक जंग के वक्त भी इमाम खुमैनी फिलिस्तीन और बैतूल मुकद्दस की आज़ादी और उम्मते मुस्लिमा के इत्तेहाद पर जोर शोर से काम करते रहे। इमाम खुमैनी ने ईरान को दुनिया की किसी भी ताकत के मुकाबले में सीसा पिलाई दीवार बना कर खड़ा कर दिया जो आज भी मजबूती से खड़ी हुई है।

इमाम खुमैनी ने अपने इंकलाब की कमियाबी की बुनियाद इमाम हुसैन की अजादारी का सदका बताया है वो जानते थे की हर जालिम को शिकस्त देने का हौसला और इस्तेकामत के साथ खड़ा रहने का सीधा रास्ता सिर्फ और सिर्फ करबला से ही जाता है क्यों की कर्बला में इमाम हुसैन इस्तेकामत के साथ अल्लाह के भरोसे खड़े रहे और यही वजह है की रहती दुनिया तक करबला वालों की कोई मिसाल नहीं पेश कर सकता यही वजह है की जब कुछ सरफ़िरे रहबर ए मोअज्जम खामिनाई साहब को नूरी मखलूक से मिलाने लगे तो उन्होंने उन गुलू करने वालों से साफ साफ कहा कहां वो नूर मुत्लक कहां दुनिया की गंदी आबो हवा में पलने वाला मैं, ऐ लोगो तुम मुझे नूरे मुत्लक से क्यों मिला रहे हो मैं तो इमाम हुसैन के अदना से गुलाम जनाबे जौन के पैरों के नीचे की धूल भी नहीं हूं,उन्हों ने ये बात ऐसे ही नहीं की थी वो अच्छी तरह जानते थे की इमाम हुसैन ने करबला में कहा था की जैसे साथी मुझे मिले वैसे साथी न मेरे भैया को मिले, न मेरे बाबा को मिले और न ही मेरे नाना को।यही वजह थी की मारफते कर्बला रखने वाले इमाम खुमैनी ने लाखों लोगों की कुर्बानी के बाद भी ईरान के इंकलाब को आजादरिये इमाम हुसैन का सदका कहा है।

इत्तेहाद और इंजमाम इमाम खुमैनी ने अपनी तहरीरों और तकरीरों में कभी अपने अकीदे से समझौता नहीं किया उनकी लिखी हुई कशफुल असरार और उसकी जैसी दूसरी किताबें आज भी मौजूद हैं,हिम्मत हो तो कोई उन्हें भी MI 6 का एजेंट कहे।उन्हों ने अपने अकीदे पर कायम रहते हुए फकत मुश्तर्का चीजों पर ही इत्तेहाद की पेश कश की,इत्तेहाद का मतलब बिगाड़ने वाले और इत्तेहाद के नाम पर अकीदा बिगड़ कर इंजमाम करने वाले इमाम खुमैनी की रूह को तकलीफ दे रहें हैं वो ठीक से गौर करें इमाम खुमैनी इंजमाम के सख्त खिलाफ थे और मुश्तर्का चीजों पर इत्तेहाद के सबसे बड़े अलंबरदार थे यही वजह थी की वोह सारी जिंदगी इत्तेहाद के मुश्तर्का उसूलों पर कायम रहे और इंजमाम से हमेशा दूर रहे उनका अकीदा उनकी लिखी हुई कशफुल असरार जैसी किताबों में मौजूद है। अपनी आखरी सांस तक उन्हों ने शियत के उसूलों पर कोई समझौता नहीं किया।

मेरी इमाम खुमैनी की तरफ़ कशिश
मैं और मेरा पूरा घर क्यों की खुई साहब की तकलीद करता था और अब हम सब सीस्तानी साहब के मुकल्लिद हैं, फिर भी मैं इंकेलाब ईरान की तहरीक से दिली तौर से जुड़ा हुआ था ईरान के इंकलाब के वक्त मेरा भी दिल यही चाहता था की मैं भी इमाम खुमैनी की तहरीक में जा कर शामिल हो जाऊं जब की उस वक्त मैं बहुत छोटा था और हाई स्कूल में पढ़ रहा था उनकी तहरीक से जुड़ने की दो बुनियादी वजह थी,एक ये की शाह ईरान के शिया मुल्क को पेरिस ऑफ़ द गल्फ बना देने से दुनिया भर में शीयत की बदनामी हो रही थी,शियो की नौजवान नस्ल बर्बाद हो रही थी जिससे मुझे बड़ी तकलीफ थी।

दूसरी वजह ये थी की सद्दाम के बे पनाह जुल्म,रौजों की मिसमारी, जियारतों पर पाबंदी,खुई साहब को सेल में कैद रखना,बाकर उस सदर साहब को शहीद कर देना ये सारी चीजें मुझे बहुत तकलीफ देती थी।यही वजह थी की मैं जब भी अपने साथियों के साथ इकठ्ठा होता तो ज्यादा तर बातें ईरान इराक जंग या इमाम खुमैनी के बारे में किया करता था,ये वो वक्त था जब नौजवानों के बीच कंफ्यूजन पैदा करने के लिए अलीगढ़ और दिल्ली से एंटी खुमैनी पब्लिकेशन होता था जिसमे बहुत ही गलत बातें शाए होती थीं,इस लिए मैं इमाम खुमैनी के हक़ में लिखे सच्चे लिटरेचर तलाश कर के पढ़ता था मुझे याद है की जब तक इमाम खुमैनी के हक में निकलने वाला लिटरेचर पूरा पढ़ न लूं मुझे चैन नहीं मिलता था,इतना ही नहीं अगर किसी जगह से मुझे वीडियो कैसेट मिल जाते थे तो अपनी जेब खर्च से किराए पर वीसीआर ले कर नौजवानों और मोमनीन को इकठ्ठा कर के दिखाया करता था मुझे याद है जिस वक्त इलाहाबाद के अरब अली खां साहब मरहूम के इमामबाड़े में मैने पहली बार वीसीआर और वीडियो कैसेट का इंतजाम कर के वीडियो दिखाने का प्रोग्राम किया तो मर्दों के साथ औरतों की भी कसीर भीड़ इकठ्ठा हो गई जिसे बड़ी मुश्किल से कंट्रोल कर के वीडियो दिखाई गई।।ईरान इराक जंग के वक्त जब मुझसे नौजवान सवाल करते थे की आखिर खुई साहब क्यों इमाम खुमैनी साहब का साथ नही दे रहे,क्यों इराक के शिया सद्दाम के खिलाफ नहीं खड़े हो रहे तो मेरा जवाब होता था की इराक के शिया खुई साहब के फतवे के मुंतजिर हैं और वोह अगर अपने मुकल्लीदीन को इस वक्त इजाजत दें देंगे तो सद्दाम केमिकल स्प्रे कर के सबको मार दे गा,इससे नुकसान भी बड़ा होगा और फायदा कुछ नहीं होगा शायद इसी लिए वो इजाजत नहीं दे रहे और न ही अपने मुकल्लदीन को खुमैनी साहब का साथ देने से मना कर रहे हैं।

सद्दाम ने खुई साहब को सेल में कैद कर रखा था वो हर वक्त इस कोशिश में था की खुई साहब इमाम खुमैनी के खिलाफ फतवा दें दें मगर खुई साहब ने खुमैनी साहब के खिलाफ फतवा नहीं दिया, उस वक्त अगर खुई साहब अपने मुकल्लदीन को खुल कर इमाम खुमैनी का साथ देने की इजाजत दे देते तो इराक में शियो के हालात बहुत खराब थे वैसे ही बहुत से शिया शहीद हो चुके थे अगर खुई साहब खुल कर इमाम खुमैनी को सपोर्ट कर देते तो सद्दाम निहत्थे शियो को बुरी तरह से अपने गोलियों का शिकार बना लेता इस लिए खुई साहब बड़ी समझदारी से एक तरफ वो अपने मुकल्लेदीन की जान की हिफाज़त कर रहें थे तो दूसरी तरफ वो सद्दाम के दबाओ के बावजूद इमाम खुमैनी के खिलाफ फतवा न दे कर ईरान से चलने वाले इंकलाब की हिमायत कर रहे थे।खुई साहब ने अपनी खामोशी से न सिर्फ ईरान के इंकेलाब को मजबूत किया बल्कि इराक़ के शियो के जान की भी हिफाजत की,उन्हों ने सेल में सद्दाम के जुल्म को बर्दाश्त कर लिया और खुमैनी साहब के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नही कहा इस तरह से उन्हों ने हिक्मते अमली से इंकलाब की मदद की। मेरा ऐसे किसी शख्स से राब्ता नहीं था जो ईरान से जुड़ा हो और न ही मेरा कोई डायरेक्ट राबता इमाम खुमैनी से या उनके किसी नुमाइंदे से था मेरा राबता था तो फकत मैगजीन और वीडियोज से और मेरा खुद का जुनून था, इमाम खुमैनी के मिशन से मेरी दिली कशिश थी जो मुझे उस रूहानी,सच्चे और अज़ीम कायेद से दिल की गहराइयों से जोड़े हूए थी।जिस दिन इमाम खुमैनी का इंतकाल हुआ मैं मुंब्रा में था न जाने क्यों पूरा दिन मैं बहुत उदास था न खाने में दिल लग रहा था न बात करने में, मैंने अपने दोस्त शमीम हैदर नकवी साहब से कई बार कहा की आज मेरा दिल न जाने क्यों बहुत उदास है दिन भर खामोश लेटा रहा शाम को जब मैं बंबई मुगल मस्जिद पहुंचा तो मुझे पता चला कि इमाम खुमैनी अब नहीं रहे,मेरे आंखो से जारो कतार आंसू गिरने लगे क्यों की बीसवीं सदी का अज़ीम और बेजोड़ रूहानी कायद अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका था,यकीनन उनकी सच्चाई की वह रूहानी और इंकलाबी ताकत ही थी जो मेरे ऊपर अपने आप कब्जा जमाए हुए थी और आज भी मैं अपने आप को उस ताकत से जुड़ा हुआ पाता हूं।

अल्लाह का शुक्र है की इमाम खुमैनी की कही हुई वो सारी बातें जल्द पूरी होने वाली है उन्हों ने कहा था की फिलिस्तीन की आजादी का रास्ता करबला से जाता है। नतीजा सामने है आज ईरान इराक एक दूसरे के दोस्त हो चुके, सद्दाम का नाम निशान मिट चुका, सीस्तानी साहब और खामिनाइ साहब मिल कर काम कर रहें है, सीरिया लेबनान,यमन इराक ईरान सब एक हो चुके हैं और इंशा अल्लाह ईरान की फौजें इराक से होते हुए सबके साथ मिल कर फिलिस्तीन को आजाद कराएंगी बैतूल मुकद्दस आजाद हो गा और मेरे पसंदीदा और बेलौस अज़ीम कायदे इमाम खुमैनी का देखा हुआ ख्वाब जल्द पूरा होगा। इमामे असर से दुआ है की इस ख्वाब की ताबीर जल्द से जल्द पूरी हो।

ईरान के इंकलाब को अजादारीये इमाम हुसैन का सदका कहने वाला अज़ीम कायेद हम शियो को अपने इस जुमले से एक बहुत बड़ा पैगाम दे गया है। काश इमाम खुमैनी पर सेमिनार और जलसे करने वाले उनके इस अनमोल पैगाम "ईरान का इंकलाब अजादारिये इमाम हुसैन का सदका है" को याद रखें और इस पर खूब गौर करें यही इमाम खुमैनी को सच्ची खिराजे अकीदत है यही खिराजे अकीदत है की हम करबला की गहराइयों में डूब जाएं अजादारीये इमाम हुसैन की गहराइयों में उतरें और इमाम हुसैन और कर्बला पर जितना ज्यादा गौर करें कम है।अफसोस है अजादारी पर गौर फिक्र करने के बजाए बहुत से लोग कभी वाजिबात से अजादारी को और कभी अजादारी को वाजिबात से टकराते हैं और अजादारी पर गौर फिक्र करने के बजाए उस पर तरह तरह के बेजा एतराज़ करते हैं इसके बजाए अजादारी की गहराइयों में उसी तरह डूबने की कोशिश कर लें जैसे इमाम खुमैनी ने की थी तब उन्हे अजमते अजादारी समझ में आयेगी।

इमाम खुमैनी का दूसरा सबक ये है की हम अपनी अपनी तनजीमों और इदारों में फकत और फकत बासलाहियत लोगों को ही बेलौस आगे बढ़ाएं। याद रखिए बड़ी बड़ी सुपर ताकतों को धूल चटाने वाला इमाम खुमैनी के जैसा शिया कौम का कायद न कोई कल था और न आज कोई है।

हमें बीसवीं सदी के अपने अज़ीम कायद के उस कीमती जुमले को कभी नहीं भूलना चाहिए की ईरान का इंकलाब अजादारिये इमाम हुसैन का सदका है।
यकीनन अजादारीये इमाम हुसैन मजलूमों का दिया हुआ एक ऐसा अजूबा और अचूक हथियार हैं जिससे हर जालिम को धूल चटाई जा सकती है शर्त ये है की इमाम खुमैनी की तरह हर काम फी सबीलअल्लाह किया जाए।

शौकत भारती
(सदर असर फाउंडेशन)

नोटः मज़मून निगार के अपने ज़ाती ख़्यालात है ज़रूरी नही है कि हौज़ा न्यूज़ एजेंसी लेखक के ख़यालात से सहमत हो।

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