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समाचार कोड: 387683
9 अक्तूबर 2023 - 22:13
शौकत

हौज़ा/दिल्ली में नुमायंदगी अल मुस्तफा और फारसी विभाग दिल्ली यूनिवर्सिटी दोनो की ओर से दिल्ली यूनिवर्सिटी में इमाम ख़ुमैनी और महात्मा गांधी की नज़र में जिंदगी का मफहूम जैसे बेहतरीन शीर्षक पर कांफ्रेंस हुई,इस कांफ्रेंस के लिए आक़ाए शाकिरी की जितनी तारीफ की जाये कम हैं इस कांफ्रेंस में तय पाया की हिंदुस्तान के मुख्तलिफ शहरों में भी होनी चाहिए ताकि नई नस्ल को अजीम हस्तियों के बीच पाई जाने वाली यकसानियत और उनके कारनामों को समझने का ज्यादा से ज्यादा मौका मिले,ये दोनो हस्तियां वो थी जो बड़ी बड़ी सुपर पावर्स के मुकाबले में अपनी सच्चाई और ईमानदारी के भरोसे खड़ी हो गईं

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,दिल्ली ,उर्दू अखबारों में इस ख़बर  को देख कर बहुत खुशी हुई कि नुमायंदगी अल मुस्तफा दिल्ली और फारसी विभाग दिल्ली यूनिवर्सिटी दोनो की जानिब से दिल्ली यूनिवर्सिटी में इमाम ख़ुमैनी और महात्मा गांधी की नज़र में जिंदगी का मफहूम जैसे बेहतरीन शीर्षक पर कांफ्रेंस हुई,इस कांफ्रेंस को करने के लिए आक़ाए शाकिरी की जितनी तारीफ की जाये कम है।

इस तरह की कांफ्रेंस हिंदुस्तान के मुख्तलिफ शहरों में भी होनी चाहिए ताकि नई नस्ल को  अजीम हस्तियों के बीच पाई जाने वाली यकसानियत और उनके कारनामों को समझने का ज्यादा से ज्यादा मौका मिले,ये दोनो हस्तियां वो थी जो बड़ी बड़ी सुपर पावर्स के मुकाबले में अपनी सच्चाई और ईमानदारी के भरोसे खड़ी हो गईं।

यही वजह है की जहां अंग्रेजों ने महात्मा गांधी की जुर्रत और हिम्मत का लोहा माना और उन्हे हिंदुस्तान छोड़ना पड़ा वहीं पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर को 1979 में ईरान के इंकलाब की कमियाबी पर खुले हुए शब्दों में खुमैनी साहब के लिए ये कहना पड़ा कि हर चीज हमारे पक्ष में थी लेकिन खुदा खुमैनी साहब के साथ था,

यह खुमैनी साहब का ही हौसला था की बड़ी बड़ी सुपर पावर्स भी शाह ईरान की जालिम हुकूमत नहीं बचा सकी और दुनिया देख रही है ईरान पर लगाए गए बेशुमार सैंक्शंस के बावजूद आज ईरान रूस जैसी बड़ी ताकत की यूक्रेन में मदद कर रहा है ईरान के ड्रोन के सामने बड़े बड़े मुल्कों के हथियार बेकार नजर आ रहे हैंं।

खुमैनी साहब ने जो बैतुल मकदिस और फिलिस्तीन की आजादी का जो ख्वाब देखा था वो पूरा होने के करीब है बड़ी बड़ी ताकते ईरान के जरिए तैयार की गई मिलेशिया के सामने बौनी नज़र आ रही हैं और दबे कुचले फिलिस्तीनियो ने इसराइल और अमरीका की नींद हराम कर रखी है,बहुत जल्दी फिलिस्तीन की आज़ादी का देखा हुआ खुमैनी साहब का ख्वाब पूरा होने वाला है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी रहे हों या इमाम खुमैंनी दोनो ने अपनी जिंदगी बिल्कुल सादगी से गुजारी। ये वो लोग थे जो सादा जीवन उच्च विचार के फार्मूले पर काम करते थे,दोनो जुल्म अन्याय और अत्याचार से लड़ने वाले और दबे कुचलों की मदद करने वाले थे दोनो ने अपना रोल माडल इमाम हुसैन को बनाया,दोनों ने जालिम ताकतों के आगे न झुकने का सबक कर्बला से लिया और जालिम ताकतों के खिलाफ ईमानदारी और सच्चई की ताकत के साथ अल्लाह के भरोसे खड़े रहे,

गांधी जी हों या खुमैनी साहब दोनो ने एकता और जियो और जीने दो के सिद्धांत पर अमल किया यही वजह है की दुनिया में जब भी जालिम रूलर्स के खिलाफ़ आवाज़ उठाई जायेगी आवाज़ उठाने वाले गांधी जी और  खुमैनी साहब को जरूर याद करेंगे जैसा की आज भी दबे कुचले लोग इन दोनो को याद कर रहे हैं।

हिंदुस्तान की आजादी के बाद जिस तरह से गांधी जी ने कोई मंसब नहीं लिया वो न प्राइममिनिस्टर बने और न सदर बनने के लिए इसी तरह ईरान की आजादी के बाद इमाम खुमैनी ने भी हुकूमत का कोई भी मंसब कुबूल नहीं किया,दोनो ने अपने अमल से ये बता दिया की महान लोग अपने लिए नहीं बल्कि उसूलों के लिए बड़ी से बड़ी ताकतों के खिलाफ निस्वार्थ तन मन धन की बाजी लगा कर खड़े हो जातेहैं। इस लिए बहुत जरूरी है की ऐसे हस्तियों के पैगाम को जगह जगह पहुंचाने के लिए निरंतर कांफ्रेंस और सेमिनार होते रहना चाहिए इस तरह की कैनफ्रेंस से कई तरह के फायेदे होंगे।
1: ईरान और भारत के संबंधों में मजबूती आएगी।
2: इमाम खुमैनी और महात्मा गांधी की शख्सियत से नौजवान नसल आगाह हो गी।
3: यूनिवर्सिटीस और मदरसों के बीच अच्छे संबंध स्थापित होंगे और एक दूसरे को समझने का मौका मिले
4: ऐसे प्रोग्राम से अहले इल्म, सामने आयें गे और ना अहेल खुद ब खुद पीछे हट जायें गे क्यों कि यह काम इल्मी है और इल्म वालों को आगे बढ़ाने से ही समाज में सुधार पैदा होगा।
शाकरी साहब से उम्मीद है की वो इस तरह की कांफ्रेंसेस को आगे करते रहेंगे भी और खानदान, इदारों या डेवढीयों के ना अहले लोगों को नहीं बल्कि बा सलाहियत लोगों को जिनमें लिखने पढ़ने की मजबूत सलाहियतें पाई जाती हैं उन्हे कांफ्रेंस में बोलने और मकाले पढ़ने का मौका देंगे।जैसा की पता चला है की इस कांफ्रेंस में  फ़ारसी,उर्दू और पंजाबी में भी मकाले पेश किए गए थे उम्मीद करता हूं की शाकरी साहब उसको बकायदा तौर पर शाए भी करवाएं गे।

शौकत भारती(सीनियर सहाफी)
(सदर असर फाउंडेशन)

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