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समाचार कोड: 386871
13 जुलाई 2023 - 17:51
शौकत भारती

हौज़ा /  हमेशा याद रखें कुरान और हदीस सुना कर आयत और हदीस की रौशनी में इसलाह करना ही वाकई इसलाह है बाकी सब फसाद और कयास है इस लिए इस काम से दूर रहें।कौम के इत्तेहाद के लिए बहुत जरूरी है की कौम के सामने आयाते कुरानी और अहादीसे मसूमीन और सीरते मासूमीन हर वक्त पेशे नज़र रख कर ही इसलाह की जाए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी 

लेखकः शौकत भारती!

मिंबर पर जाने वालों से दस्त बस्ता गुजारिश है की 2 महीने 8 दिन अय्यामे अजा में ज्यादा से ज्यादा फजाएले अहलेबैत और मसायेबे अहलेबैत बयान करें और मिंबर से दिफाये अहलेबैत,दिफाए अकायेद और दिफये आजादारी करें अगर किसी गलत बात या अमल की इसलाह भी करना हो तो उसके लिए भी पहले कुरान की आयत या हदीसे अहलेबैत पेश करें फिर इसलाह करें इसलाह करने के लिए भी सीरते मासूमीन को अपने पेशे नज़र रखें जिन बातों को अल्लाह रसूल या अहलेबैत ने मना नहीं किया उसे अपनी तरफ से नजायेज या हराम न कहने लगें।ये भी याद रखें की अवाम उनकी नहीं मराजे की तकलीद करती है, हर मुकल्लिद को उसके ही मर्जआ के फतवे पर अमल करने दें ताकि इख्तेलाफ के रास्ते बंद हो जाएं।

इस बात को हमेशा याद रखें कुरान और हदीस सुना कर आयत और हदीस की रौशनी में इसलाह करना ही वाकई इसलाह है बाकी सब फसाद और कयास है इस लिए इस काम से दूर रहें।कौम के इत्तेहाद के लिए बहुत जरूरी है की कौम के सामने आयाते कुरानी और अहादीसे मसूमीन और सीरते मासूमीन हर वक्त पेशे नज़र रख कर ही इसलाह की जाए।

इस बात का भी सख्ती से ख्याल रखा जाए की फरशे अजा किस लिए बिछाई गई है और इस फर्शे अजा पर आजादार कुछ और नहीं बल्कि फजाएले अहलेबैत और मसायेबे अहलेबैत सुनने आते हैं,फर्शे अजा पर मसूमीन भी आते है और वो भी फजायेल और मसायेब ही सुनने के लिए आते हैं और इसी काम के लिए ही फरशे अजा बिछाया गई है,अजाखाने इसजाए गए हैं,मजलिसें बरपा की गई हैं और मिंबर को भी फजायेल और मसाएब बयान करने के लिए ही रखा गया है ये भी याद रखें की आजादरी एक अजीम इबादत है। जिस तरह नमाज़ जैसी इबादत में इधर उधर की बातें नहीं दाखिल हो सकती की उसी तरह आजादारी जो एक अजीम इबादत है उसके मिंबर से भी इधर उधर की बातें नहीं होनी चाहिए यही दरअसल एहतेरामें मिंबार और तकद्दूसे मिंबर और आजादारी है,जिस नमाज़ के अंदर बाकी बाते नहीं की जाती वैसे ही बाकी बातें 2 महीने 8 दिन अजादारी के अय्याम में बाकी बातें नहीं होनी चाहिए 2 महीने आठ दिनों के बाद ही होनी चाहिए और उन सभी बातों के लिए खूब जलसे खूब सेमिनार अलग से हों चाहिए। हम अज़ादार 2 महीने 8 दिन अपने सारे खुशी के काम तर्क कर देते हैं मोहर्रम के बाद ही करते हैं क्यों की हम अच्छी तरह से जानते हैं की इन अय्याम में रसूल अल्लाह के खानदान पर कैसे कैसे जुल्म ढाए गए हैं इस लिए इन गमों के अय्याम को ऐसे ही मानना चाहिए की उस गम का इज़हार भी हो।

अपने अपने घरों,अपने अपने इमाम बरगाहों को हमारे बुजुर्गों ने शहीदाने कर्बला असीराने कर्बला का गम मानने के लिए ही वक्फ कर दिया है इस लिए हम अज़ादारो को उनकी पैरवी करनी चाहिए यहां से आजादरों को ये बताईए की कर्बला क्यों हुई।

इमाम हुसैन ने मदीना क्यों छोड़ा,कौन लोग थे जिन्होंने इमाम हुसैन और उनके साथियों को बे जुर्म व खाता भूखा प्यासा शहीद कर दिया,कौन लोग थे जिन्होंने यजीद जैसे बदकिरदार को खलीफा मान लिया आखिर ये कौन लोग थे जिन्होंने 50 साल के अंदर ही इस्लाम को मिटा दिया,ये कौन लोग थे जिन्होंने अहलेबैत का दामन पकड़ने के बजाए उन्हें अपने सर पर बिठाने के बजाए उन पर जुल्म की इंतहा कर दी उन्हे भूखा प्यासा शहीद कर डाला,लाशों पर घोड़े दौड़ा दिए,छोटे छोटे बच्चो को भी पानी नहीं दिया और शहीद कर डाला औरतों बच्चों तक को असीर कर के जुल्म के पहाड़ तोड़ डाले, इस्लाम को मिटाने वाली उन सभी डर्टी पॉलिटिक्स को हमारे बच्चों को हमारे नौजवानों को पता होना चाहिए इमाम हुसैन के मदीना छोड़ने से जनाबे जैनब के मदीने वापसी तक के एक एक वाकए को 2 महीने आठ दिनों में  हमारे नौजवानों और बच्चो को तफसील से बताया जाए, रसूल अल्लाह ने दीन की हिफाज़त के लिए जो अहलेबैत की शक्ल में कुरान के एक्सपर्ट और दीन के मुहाफिज और दीन के रोल माडल रसूल अल्लाह ने छोड़े थे और जिनकी पैरवी दीन और दुनिया में कमियाबी की गारंटी थी उन्हें आखिर रसूल अल्लाह के साथियों और उनकी औलादों ने क्यों छोड़ दिया और क्यों उन पर हर तरह के जुल्मों सितम किए और रसूल अल्लाह के जाने के सिर्फ 50 साल के बाद जो जुल्म की इन्तहा हुई है जब हमारा नौजवान इसे फर्शे अजा से ठीक से समझेगा तभी वो दूसरों को समझा सकता है इस लिए हमें कर्बला के एक एक गोशे को कर्बला से पहले की डर्टी पॉलिटिक्स को समझना हो गा और बताना हो गा की रसूल अल्लाह जो रोल माडल छोड़ गए थे उनको न मानने का नतीजा ही इस्लाम की बदनामी का सबब है और उसी रोल माडल की आखरी और बारवी नूरी कड़ी इमाम मेहदी जब दुनिया में तशरीफ लाएंगे तब ही इंसाफ और अदल का राज कायम होगा।

यकीन मानिए अगर 2 महीने आठ दिन सीरते अहलेबैत और मजलूमिये अहलेबैत दुनिया वालों के सामने अहसन तरीके से पेश कर दी जाएं और भीड़ देख कर इधर उधर की बातें न की जाएं और इधर उधर का एजेंडा न छेड़ जाए तो दुनिया वालों के सामने इस्लाम की सही तस्वीर पेश की जा सकती है और इस्लाम के नाम पर जो मुलूकियत कायम करने वालों के मनहूस चेहरे सामने आ जायेंगे और नौजवान फर्शे अजा से ये सारी बातें समझ कर साल भर दूसरों को पहुंचाते रहेंगे। क्यों की ये सारी बातें सिवाए आजादारी के मिंबरों और आजादरी के जुलूसों के किसी और तरीके से नहीं पहुचाई जा सकती इस लिए हमें पूरी दस्ताने कर्बला यहीं से बयान करनी होगी। खुमैनी साहब जैसे लीडर इंकेलाबे ईरान के लिए जो भी हासिल किया और ईरान में फैली हुई बेहयाई और उर्यनियत के साथ शाह की जालिम हुकूमत को जो उखाड़ कर फेंक दिया ये सिर्फ आज़ादारीए इमाम हुसैन का सदका है जिसका एतेराफ उन्होंने सारी जिंदगी किया है अब आप समझ लीजिए जब ईरान के इंकेलाब आजादारी का सदका है तो फिर अजादारी कितनी अजीम होगी हमे हमेशा याद रखना चाहिए कर्बला के मजलूमों की अजादारी का तसव्वर इंसानी अकल के बाहर की बात है। इस लिए बेहद जरूरी है की हम अज़ादारो को 2 महीना आठ दिन शहीदाने कर्बला और असीराने कर्बला के एक एक वाकए को अजादारी के मिमबरों से सुनाया जाए अगर हमने कर्बला से हल्की सी भी रौशनी ले ली तो हमें दुनिया के किसी भी मसले के हल के लिए किसी और तरफ देखने और किसी और को रोल माडल बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी हमारी दीन और दुनिया दोनों की कमियाबी के रोल मॉडल्स अहलेबैत हैं हमारे रोल मॉडलस कर्बला वाले हैं इस लिए हमें सिर्फ उन्हीं रोल मॉडल्स की सीरत और कुर्बानियां अगर ईमानदारी से मिंबरों से बता दी जाएं तो हमारी हर परेशानी का हल अपने आप हमे मिल जायेगा और यही बेहतरीन इसलाह है हम बदतरीन हालत में भी कर्बला  की रौशनी के सहारे अपनी जिंदगी इत्मीनान से गुजार लेंगे।
 

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