۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मौलाना

हौज़ा / मजलिसे उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना डॉ सैयद कल्बे जवाद नक़वी ने अमेरिकी आयोग फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अगर अमेरिकी संस्थानों पर विश्वास करके हिज़बुल्लाह और उसके नेता सैयद हसन नसरल्लाह को आतंकवादी कहा जा रहा है तो फिर भारत ने अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज क्यों किया?

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ,मजलिस उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना डॉ सैयद कल्बे जवाद नकवी ने ‘अमेरिकी आयोग फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम’ (USCIRF) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अगर अमेरिकी संस्थानों पर विश्वास करके हिज़बुल्लाह और उसके नेता सैयद हसन नसरल्लाह को आतंकवादी कहा जा रहा है तो फिर भारत ने अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट को खारिज क्यों किया?

इसका मतलब यह है कि भारत की नजर में अमेरिकी संस्थानों की रिपोर्टें विश्वसनीय नहीं हैं। इसी तरह अमेरिका और इज़राइल का हिज़बुल्लाह और उसके नेता सैयद हसन नसरल्लाह के बारे में जो विचार है वह भी विश्वसनीय नहीं है।

क्योंकि यह देश खुद आतंकवाद के संस्थापक हैं और दुनिया को धोखा देने के लिए निर्दोषों को आतंकवादी कहते हैं।

मौलाना ने अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अमेरिकी संस्था ने अपनी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों का जिक्र करते हुए भारत को उन देशों में शामिल करने की सिफारिश की है जहां अल्पसंख्यकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

अमेरिकी आयोग ने अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के लिए भारत को उसी श्रेणी में रखा है जिसमें पाकिस्तान को रखा गया है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 के दौरान गोरक्षकों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों की भीड़ हिंसा के जरिए हत्या की, उन्हें मारा-पीटा गया, और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए उन्हें गिरफ्तार करके जेल में भेजा गया। उनके घरों और पूजा स्थलों को बुलडोजर से ध्वस्त किया गया।

रिपोर्ट में इन घटनाओं को धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन बताया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा गलत जानकारी और नफरत भरे भाषणों के आधार पर धार्मिक अल्पसंख्यकों उनके घरों और पूजा स्थलों पर हमलों के लिए उकसाया गया।

मौलाना ने कहा कि अगर भारत के मीडिया और जनता अमेरिकी संस्थानों की रिपोर्टों को सही मानते हैं तो वास्तव में भारत में स्थिति बेहद चिंताजनक है। क्योंकि हमने गाजा युद्ध के बाद लगातार देखा कि हमारा मीडिया अमेरिका और इज़राइल की रिपोर्टों के आधार पर हिज़बुल्लाह और उसके नेता सैयद हसन नसरल्लाह को आतंकवादी कहता रहा है।

मीडिया ने इस्माइल हनीया की हत्या के बाद उन्हें भी आतंकवादी कहा। अगर अमेरिकी संस्थानों की रिपोर्टें विश्वसनीय हैं तो फिर भारत ने अमेरिकी आयोग की उस रिपोर्ट को खारिज क्यों किया जो अल्पसंख्यकों के बारे में प्रकाशित की गई है?

इसका मतलब यह है कि अमेरिकी और इज़राइली संस्थान अपने स्वार्थ के तहत रिपोर्टें प्रकाशित करते हैं, ठीक उसी तरह हिज़बुल्लाह, इस्माइल हनीया और सैयद हसन नसरल्लाह के बारे में उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए प्रचार किया ताकि दुनिया को उनसे बदनाम किया जा सके।

मौलाना ने कहा कि अमेरिकी और इज़राइली संस्थाएं और संस्थान लगातार झूठ बोलते हैं, इसलिए उनके कहने पर किसी को आतंकवादी नहीं कहा जाए। अगर उनकी रिपोर्टों पर विश्वास किया जाए तो न जाने उन्होंने भारत के बारे में क्या-क्या कहा होगा।

मौलाना ने कहा कि हम अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट का एक अल्पसंख्यक संगठन के प्रतिनिधि के रूप में खंडन और खारिज करते हैं।

सरकार से हमारी अपील है कि हमारा मीडिया भी अमेरिका और इज़राइल के दबाव में आए बिना इस्माइल हनीया, हसन नसरल्लाह और हिज़बुल्लाह को आतंकवादी कहना बंद करे और जो पुलिस शहीद हसन नसरल्लाह की मजलिस-ए-ताजियत से घरों और इमामबाड़ों के अंदर भी रोक रही है उसे इस हरकत पर सरकार सख्त चेतावनी दे।

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