हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर ने बुधवार 20 नवम्बर 2024 को लड़कियों के मदरसे जामेअतुज़्ज़हरा की प्रिंसपल, शिक्षकाओं और स्टूडेंट्स से तेहरान में मुलाक़ात में इस प्रभावी संस्था को इस्लामी इंक़ेलाब की बरकत से वजूद में आने वाली बेमिसाल संस्थाओं में और धार्मिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने और महिलाओं पर प्रभाव डालने वाली बताया उन्होंने समाज की ज़रूरत के साथ मदरसों में बदलाव और अपटूडेट होने की ज़रूरत की ओर इशारा करते हुए कहा कि मदरसों की आर्थिक, प्रशासनिक और पारिवारिक मामलों सहित समाज के अहम मसलों में राय होनी चाहिए।
आयलुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में जामेअतुज़्ज़हरा मदरसे की स्थापना को इमाम ख़ुमैनी की पहल बताया और कहा कि मुल्क की बड़ी तादाद में औरतों और लड़कियों में धार्मिक जागरुकता और समझ को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी के साथ ऐसी संस्था की स्थापना बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे पहले तक, महिलाओं के लिए मुल्क के इतिहास में ऐसी सुविधा नहीं थी।
उन्होंने रज़ाख़ान के शासन काल में महिला समाज में पश्चिमी संस्कृति के फैलाव से होने वाले बहुत से नुक़सान की ओर इशारा करते हुए जिनमें महिलाओं में धार्मिक ज्ञान का स्तर कम होना और उनमें धार्मिक समझ को बढ़ाने वाली संस्था का अभाव शामिल है, कहा कि आज जामेअतुज़्ज़हरा के कांधे पर यह बड़ी ज़िम्मेदारी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अवाम में धर्म की मूल समझ में विस्तार को इस्लामी सभ्यता की ओर बढ़ने की अनिवार्य शर्त और इस पर ध्यान देने को ज़रूरी बताते हुए कहा कि धर्म का प्रचार, इस्लामी शिक्षाओं का वर्णन, धर्म को जीवन में उतारने सहित और भी दूसरी ज़िम्मेदारियां जामेअतुज़्ज़हरा के कांधे पर हैं, इसलिए महिलाओं पर तरबियत के लेहाज़ से प्रभाव डालने और उनके आध्यात्मिक उत्थान के लिए जो समाज का आधा हिस्सा हैं, योजना बनाने और टार्गेट निर्धारित करने की ज़रूरत है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने विश्व में बदलाव को स्वाभाविक और अपरिहार्य बताते हुए कहा कि अगर बदलाव की पताका बुद्धिमान और दीनदार लोगों के हाथों में हो तो समाज और मानवता का उत्थान होता है और अगर ऐसा न हो तो बदलाव गुमराही और पतन की ओर ले जाता है, जैसा कि आज पश्चिमी समाज में जो बातें बौद्धिक लेहाज़ से बुरी हैं, वे अच्छाई समझी जाने लगी हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मदरसों में सिलेबस और पढ़ाने की शैली के अपटूडेट होने और समाज के वित्तीय, प्रशासनिक, पारिवारिक मसलों और क्रिप्टो करेंसी जैसे समाज के नए मसलों में मदरसों की राय होने को वे क्षेत्र बताए जहाँ मदरसों में बदलाव की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि मदरसों में बदलाव का विरोध, देश में धार्मिक तरक़्क़ी की मुख़ालेफ़त है, अलबत्ता वे लोग बदलाव लाएं जिनमें इसकी सलाहियत हो।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय सभाओं में आला धार्मिक समझ रखने वाली महिलाओं की मौजूदगी को ज़रूरी और इस संबंध में जामेअतुज़्ज़हरा के रोल के बारे में कहाः इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद, समाज में बड़ी तादाद में क़ाबिल महिलाएं मौजूद हैं।
जिन्हें मीडिया में महिलाओं और परिवारों से विशेष मसलों को बयान करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इसी तरह उन्हें बड़े वैश्विक व इस्लामी मंचों पर आयतों, रवायतों और नहजुल बलाग़ा के हवाले से आला धार्मिक बातें बयान करनी चाहिएं क्योंकि इस काम का मुल्क की तरक़्क़ी और दुनिया में उसे पहचनवाने में भी तथा इस्लामी जगत बनाने में भी प्रभाव पड़ेगा।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने जामेअतुज़्ज़हरा में पढ़ाई के साथ साथ महिलाओं में आत्मिक व वैचारिक उत्थान और तरक़्क़ी के लिए प्लानिंग को ज़रूरी बताया और कहा कि इस्लामी अख़लाक़ और पाकीज़ा दिल वाली औरत ही आने वाली नस्ल की तरबियत कर सकती है और उसे बदल सकती है।