हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लाम के इतिहास की विशेषज्ञ सुश्री फातिमा मेरी ताएफ़ा ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का संघर्ष और हज़रत अली (अ) का रणनीतिक धैर्य इस्लाम के अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके अनुसार, हज़रत ज़हरा (अ) के जीवन के विभिन्न पहलू हैं, जिनमें उनकी राजनीतिक और सामाजिक भूमिका प्रमुख है।
हज़रत फातिमा ज़हरा (स) ने पैगंबर की मृत्यु के बाद विलायत की रक्षा में व्यावहारिक कदम उठाए । उनका क्रांतिकारी संघर्ष इस्लामी समाज के सुधार और ईश्वर के धर्म के अस्तित्व के लिए था।
प्रोफेसर फातिमा मेरी तैफा फर्द ने कहा कि हजरत ज़हरा (स) के संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि विलायत कमजोर होती तो इस्लाम अपने मूल स्वरूप में नहीं बच पाता। उनके अनुसार हज़रत ज़हरा (स) का उद्देश्य इस्लाम को किसी भी विचलन से बचाना और सच्चे धर्म को जीवित रखना था।
उन्होंने आगे कहा कि हज़रत ज़हरा (स) का संघर्ष न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी एक महान उदाहरण है। उनका धैर्य, अंतर्दृष्टि और इस्लामी सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता इस्लाम के अस्तित्व के लिए एक आदर्श मार्ग प्रदान करती है।
उन्होंने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि हज़रत ज़हरा (स) का बलिदान और हज़रत अली (अ) का धैर्य इस्लाम के संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। इन दोनों के बलिदानों ने इस्लाम को वह स्थिरता दी जिसके बिना इसका इतिहास कुछ और होता।
आपकी टिप्पणी